सिर्फ बिहार को टार्गेट करके नक़ल हल्ला मत मचायिये, मप्र , उप्र, राजस्थान और यहाँ तक कि महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के भी कुछ हिस्सों में नक़ल बाकायदा एक सेवा की तरह से होती है. एक प्रांत विशेष को टार्गेट करके इस तरह से वहाँ की मेधा को और प्रतिभा को बदनाम करना बेहद अपमानजनक है और शर्मिन्दगी भरा कृत्य है.
जवा ब्लाक, रीवा में मप्र विधानसभा के पूर्व स्पीकर श्रीनिवास तिवारी के कई निजी स्कूलों में और महाविद्यालयों में नक़ल ठेके पर होती थी, और रीवा - सतना इसलिए बदनाम थे. विक्रम विवि उज्जैन के छात्रों को तो किसी प्रतियोगी परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं थी, और लिखा जाता था विज्ञापन में कि विक्रम विवि उज्जैन के छात्र आवेदन ना करें, क्योकि यह समझ थी कि यहाँ सब नक़ल से पास होते है बाद में तत्कालीन कुलपति डा शिव मंगल सिंह सुमन ने एक याचिका लगाकर इस तरह के विज्ञापनों पर रोक लगवाई. इस तरह की घटनाएँ मीडिया को मालूम नहीं है या जानबूझकर हकीकत से मुंह मोड़ना चाहते है?
इससे बेहतर है कि आप पुरी शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्न कीजिये पूछिए NCERT, CIET, NIEPA, SCERTS, SIET, PGBT Colleges में और देश के सभी शिक्षाविदों से कि क्या किया उन लोगों ने ?
लाईये कृष्ण कुमार से लेकर बी के पासी, डी एन सनसनवाल, उमराव सिंह चौधरी, शोभा वैद्य, पद्मा सारंगपानी, डा गोविंदा, डा अनिल सदगोपाल, स्व आचार्य राममूर्ति और तमाम मिशनरी, मदरसे, गुरुद्वारे और विद्याभारती चलाने वालों को कटघरे में और इसके साथ तमाम तरह की नवाचार के नाम पर शिक्षा की दूकान चलाने वाली बड़ी बड़ी संस्थाओं को भी अदालत में खींचिए, जो अरबों रूपये डकार गयी सन 1972 से अभी तक और अभी भी प्रकाशन गृह खोलकर अपनी बिक्री और दुनिया में सदियों पुरानी किताबों का अनुवाद करके बुद्धिजीविता झाड रही है.
पूछिए रतन टाटा, फोर्ड, दोराबजी टाटा, नोविब, ओक्सफेम, एक्शन एड, एड एट एक्शन, अजीम प्रेम फाउन्डेशन जैसी संस्थाओं से जो कईयों को रूपये देकर देश का उद्धार करने चले थे और अपने नाम की वाह वाही में सिमट कर रह गए. सभी एनजीओ को भी घसिटीये जो सड़क छाप अंगूठा टेक और दसवीं बारहवीं पास कार्यकर्ताओं और लोगों को रिसोर्स पर्सन बनाकर स्कूलों में गन्दगी फैला रहे है. ये लोग जो खुद शिक्षा का श ना जानते हो पर स्कूलों में डा. दौलत सिंह कोठारी के बाप बन जाते है.
एक बिहार के केस को और एक चित्र को दुनिया को दिखाकर आप अपने होने पर सवाल उठा रहे है, सवाल यह है कि नवोदय विद्यालय और केन्द्रीय विद्यालय जैसे संगठनों ने क्या किया बहुत मार्गदर्शन और परामर्श का पाठ्यक्रम चलाते है, फोन लाइन और बच्चों किशोरों की काउन्सलिंग करते है, सी बी एस ई क्या कर रही है, राज्यों के बोर्ड और ओपन स्कूल, राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय और ना जाने क्या क्या.........कितना कचरा फैला रखा है आपने कभी सोचा है ?
ऐसे चित्र दिखाकर मेरे अच्छे दोस्त, अच्छे साथी जो मेहनत और परिश्रम करके और बिना आरक्षण के आज अच्छा काम ईमानदारी से कर रहे है उनपर आप सवाल उठा रहे है. शर्म आनी चाहिए , ज़रा एक बार अपने गिरेबाँ में झांककर देखें....
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