|| ईद की दिली मुबारकबाद ||
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और आख़िर चाँद दिख ही गया, ख़ुशी हुई
इस बार पूरे माह रमज़ान के रोजों ने तड़फा दिया था, रोज शाम होते ही रोज़ा छूटने का इंतज़ार रहता कि अब सब लोग पानी पी सकेंगे, इफ्तारी करेंगे - दिन भर की चिलचिलाती धूप, गर्मी, पानी और बिजली की दिक्क़तें इस सबके बीच कड़क रोज़े और रोजेदारों का धैर्य एक कड़ी तपस्या ही है और हर साल यह परीक्षा कड़ी होते जा रही है जैसे जैसे धरती का तापमान बढ़ रहा है, पूरे माह अपनी कक्षा के मित्रों को, प्राध्यापकों को, मित्रों को, बचपन के दोस्तों को, काम से जुड़े और प्रोफेशनल रिश्तों से जुड़े मित्रों को फोन लगाकर ख़ैर खबर लेता था कि सब भालो ना
बहरहाल, एक पाक माह गुजर गया और अपने पीछे लाखों किस्से छोड़ गया, देश दुनिया ने इतना कुछ देख समझ लिया और भुगत लिया कि कहना मुश्किल है, यूक्रेन - रूस युद्ध से लेकर खरगोन और दिल्ली के प्रायोजित दंगों ने मन खट्टा कर दिया था, दुर्भाग्य देखिये कि खरगोन में कल ईद बंदूक और कर्फ़्यू के साये में मनेगी , कैसा दहशतज़दा और मनहूस समय हमने बना दिया है
ख़ैर, ईद की दिली मुबारकबाद सबको और बधाईयां भी - दिल के दाग़ धो - पोछकर ईद मनाये, ख़ुश रहें और खुशियाँ बांटें सभी में - जो कुछ भी हुआ उसको लेकर एक नागरिक के तौर पर मैं बेहद शर्मिंदा हूँ और अफसोस प्रकट करता हूँ पर हम सब एक है और ये चंद सिरफिरे लोग और पथ से भटके सत्ता के भूखे नुमाइंदे कुछ नही कर सकते, सदियों पुरानी हमारी एकता, गंगा जमनी तहज़ीब इनसे नही टूटने वाली है
ईद मनायें, खुशियाँ बांटें और यह समझे कि सिवइयां रिश्तों की तरह ही नाजुक होती है उन्हें मिठास, दूध और मेवों से ही बचाया जा सकता है
आप सबको खूब प्यार, मोहब्बतें और दुआएँ
पुनः सबको ईद मुबारक, यह हम सबका त्योहार है जैसे वाल्मीकि जयन्ति, बिरसा मुंडा जयन्ति, दीवाली, होली, क्रिसमस, गुरुनानक जयन्ति या कोई और त्योहार
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"साले इतने जूते पड़ेंगे ना कि अगले हजार वर्षों में कोई कविता नही लिखेगा खानदान में तेरे" आज इसको सुनाना ही थी , सो फोन लगाया भर दोपहरी में
"अग्रज हुआ क्या, इतना गुस्सा क्यों" - लाईवा ने जवाब दिया
"साले हरामखोर, ये ऑर्गेनिक कविता क्या होती है बै - 155 कविताओं का पीडीएफ अभी भेजा तूने, एक तो वैसे ई गर्मी ऊपर से ये ऑर्गेनिक, तू है कहाँ ये बता " - मेरे तन - मन मे आग लगी थी
"अच्छा, वो पीडीएफ, अरे आजकल सब ऑर्गेनिक ऑर्गेनिक करते है - आम, जाम, फल - फूल, पेड़, घोंसले, सब्जी, राशन, खेती, कपड़े और दवाई भी, तो मैने सोचा कि क्यों न कविताएँ भी ऑर्गेनिक हो - ताकि पचने में सहज और सुलभ होगी सबको, बस यही सोचकर ऑर्गेनिक कविताएँ आपको भेजी, एक बार पढ़िए तो सही, चाँदनी सी शीतलता महसूस होगी" - लाईवा जोश में था
"ठहर तेरी ईद मनाता हूँ, अभी तेरे घर पर आता हूँ" - मैं बगैर लायसेंस का कट्टा ढूंढ रहा था आलमीरा में अब
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