|| कैसे आसमा में सुराख हो सकता नही ||
जोधपुर और दिल्ली आईआईटी के दो होनहार गोल्ड मेडलिस्ट, पढ़ाई के तुरंत बाद नौकरी की, दुनिया घूमें, उत्तरी अमेरिका भी रहें और भारत भर भी, बाद में मप्र के बडनगर जैसे छोटे से ब्लाक में आकर बस गए, कारण था यहाँ की जमीन और खुशनुमा वातावरण –पढाई के दौरान अर्पित का दोस्त यहाँ से था और उसके माता - पिता यहाँ रहते है, बस और कोई कारण नहीं - ना कोई रिश्तेदार, ना ही दोस्त - बस एक परिवार, चार साल पहले यहाँ आये और यही के हो गए, साक्षी बताती है कि आठ साल पहले वह लुन्याखेड़ी आई थी - कबीर जयंती, पर तब ही से मालवा की मिटटी की सौंधी महक हमेशा उसके जेहन में बनी रहती थी, अर्पित से बात हुई जो बाद में एक - दूसरे के हो लिए हमेशा हमेशा के लिए... इस तरह से जमीन और वातावरण में रहकर सिर्फ अपना उगाया हुआ खाने की शुरुवात हुई
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अर्पित और साक्षी ने बडनगर में साढ़े तीन बीघा का एक टुकडा खरीदा और पहले दो साल जमीन को जैविक बनाया, बहुत मेहनत लगी क्योकि जमीन रासायनिक खाद से इतनी परिपूर्ण थी कि इलाज मुश्किल था, इस दौरान दोनों ने कुछ पेड़ लगाए और पिछले हिस्से में एक तालाब बनाया - ताकि खेत पर उपलब्ध बोरिंग में पानी का स्तर बढ़ सकें, धीरे - धीरे पेड़ों की संख्या बढ़ाई,, जब पानी बढ़ा तो छोटे से जमीन के टुकड़े को तीन चार भागों में बांटा और अलग - अलग तरीके से प्लान किया जैसे एक हिस्से में अन्न, एक हिस्से में सब्जी, एक हिस्से में फल और बाकी पेड़ - हाँ बीचो बीच मिटटी का मकान जो दोनों ने मेहनत से बनाया – जब अप्रैल की भयानक चिलचिलाती धूप में मै और अमिट खेत और उनके कामों के बारे में सुन रहे थे तो उस मिटटी के मकान में जाकर जो सुकून मिला वो शायद एसी वाले कमरे में नहीं मिलता
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एक नई तकनीक है “पर्माकल्चर” जिसमे खेत की पूरी जमीन को जैविक तरीके से विकसित करके विभिन्न प्रकार के फलदार पेड़, फसलें और सब्जियां बारहों मास ली जा सकती है, अमित पिछले पांच वर्षों से देवास के पटलावदा में अपनी जमीन पर यही प्रयोग कर जमीन को विकसित करने का काम कर रहें है, परन्तु मप्र में ऐसा कोई दूसरा प्रयोग करने वाला दिखा नहीं था - परन्तु जब हम पेटलावद से लौट रहे थे तो नीलेश भाई ने इन दोनों की चर्चा कि हमने तुरंत फोन लगाया और बात की तो अर्पित ने कहा कि हम खेत जायेंगे पानी देने आप वही आ जाओ और हमें लोकेशन भेज दी
अर्पित और साक्षी की लगन और मेहनत देखकर लगा कि क्लाइमेट चेंज का नारा लगाने वाले जब तक खुद जमीन पर उतरकर काम नही करेंगे तब तक सब बातें हवा हवाई होती रहेंगी. अर्पित और साक्षी अब स्थाई रूप से बडनगर निवासी हो गए है, मकान भी ले लिया है, दोनों इतने सहज और प्यारे है कि कहा नहीं जा सकता, इस समय उनके खेत पर 80 किस्म के पेड़ है इसके अतिरिक्त उन्होंने हाल ही में 40 किलो जैविक गेहूं निकाला है और केले के ढेर है, साथ ही ढेरों किस्म के हर्ब्स भी है; उनका एक ही सिद्धांत है - अपना उगाया हुआ ही खायेंगे और वह भी जैविक रासायनिक खाद या ट्रेक्टर का प्रयोग बिलकुल नहीं होगा , मजेदार यह है कि ये दोनों खुद मेहनत करते है - मजदूर नहीं लगाते, रोज अल्ल सुबह से दोपहर और फिर शाम चार से देर शाम तक काम करते है - चाहे भूसा लाना हो या खुदाई करनी हो या पानी देना हो, हाल ही में उन्होंने खेत के बीच में एक पक्का हाल बनाया है ताकि आने वालो को जो सीखना चाहते है टेंट लगाकर रह सकें और अपना खाना बना सकें.
दस मिनिट का समय हमने लिया था क्योकि घर भी लौटना था, पर दो घंटे कब निकल गए पता ही नहीं चला, आते समय इन दोनों से इतनी मुहब्बत हो गई कि लौटने का मन ही नहीं था, साक्षी और अर्पित आते समय गले लग गये जैसे कोई अपना रक्तबीज हो, कोई सहोदर हो या अपनी बेटी दामाद या बेटा बहू ... बहुत जल्दी लम्बे समय के लिए आउंगा यह वादा करके आंसू पोछते हुए लौट आया, मै दुआ कर रहा था इनके लिए और यह भी उम्मीद कर रहा हूँ कि इस उदाहरण से शायद दो - चार लोग भी अपनी जडो की और लौट सकें, खेती या जमीन पर काम कर सकें तो शायद यह गर्मी, यह अनियंत्रित वातावरण का चक्र और सब कुछ थोड़ा तो ठीक हो, अर्पित और साक्षी का वादा है कि वे उन सबको मदद करेंगे जो भी सीखना चाहेंगे और इसके लिए मूलभूत सुविधाएं वहाँ है, आप लोग जाए, अपनी मेहनत करें, रहें - सीखे और देखे कि सपने कैसे हकीकत में बदलते है, अमित के पास पटलावदा (जिला देवास) भी आ सकते है - जहां सब सुविधाएं मौजूद है – बस शारीरिक मेहनत करने को तैयार रहे और दिल दिमाग खुला हो
अर्पित को अगले दिन आईआईटी गौहाटी में एक व्याख्यान के लिए निकलना था और साक्षी को अपने पेड़ों को पानी देना था, रुपहले सपने आँखों में तैर रहें थे और उन्हें उसी ट्रांस में छोड़कर हम भारी मन से लौट आये पर वो जादू और वो खुमार अभी उतरा नही है तैतींस कोई उम्र होती है कि दुनिया भी घूम लो और इतने कड़े इरादों के साथ बंजर जमीन पर सपनों की फसल उगाने घर द्वार छोड़कर चले आओ पर यह सब हकीकत है.
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