अपनी समस्याएँ इसलिए हल हो पा रही है कि अपना राजा नशे में है और गत आठ वर्षों से खुमार उतर ही नही रहा इसलिए बागों में बहार है और सब चंगा सी
●●●
अरादुस का राजा
----------------------
एक समय की बात है, अरादुस नगर के तमाम वरिष्ठ नागरिक वहाँ के राजा के सामने उपस्थित हुए और उन्होंने नगर के भीतर शराब और अन्य नशीले पदार्थों को वर्जित करने का निवेदन किया।
परन्तु राजा ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया और हँसते हुए वहाँ से चला गया। और तब तमाम बुजुर्ग हताश होकर वहाँ से चले गए।
जब वे वहाँ से निकल कर जा रहे थे तो महल के द्वार पर उनकी मुलाकत राजमहल के एक बड़े अधिकारी से हुई। और उस अधिकारी ने देखा कि वे बहुत परेशान थे, और वह उनके मामले को तुरंत समझ गया।
तब उस ने कहा, यह बहुत दुःखद है मित्रों ! राजा से तुम्हारी मुलाकत यदि उस समय होती जब वे नशे में होते तो निश्चित ही तुम्हारी याचिका स्वीकार कर ली गई होती ।
★★★
◆ मूल कथा - खलील जिब्रान
◆ अनुवाद - डॉक्टर प्रोफेसर - Mani Mohan
***
दिन बेचा है, शाम और रात अपनी है
***
"यह आपने पीडीएफ में क्या भेजा है अंग्रेजी का है और लगभग 500 पन्ने हैं " - उधर लाईवा था फोन पर
"अबै "रेत समाधि" का पीडीएफ है, अभी जो पुरस्कार मिला है ना गीतांजलि को, वही भेज दिए है", मैंने जवाब दिया
"अरे वही है तो हिंदी वाला भेजिए ना, वह क्या है ना - हिंदी पढ़ना आसान होता है भाई साहब " लाईवा बोला
"नहीं, नहीं - तुम्हें जानबूझकर अंग्रेजी वाला भेजा है, 4 दिन से तुम टूम्ब और टॉम्ब पर बहस कर रहे थे ना, फोनेटिक्स का ज्ञान बघार रहें थे ना फेसबुक पर और कवयित्रियों को टैग करके पेल रहें थे ना लम्बी लम्बी, तो सोचा कि तुम्हारी अंग्रेजी बहुत अच्छी होगी और वैसे भी हिंदी कवियों को अंग्रेजी का शौक ज्यादा ही रहता है, ससुरे कभी ना सुने नाम लेकर आतंकित करते है - अब खोलो और पढ़ो उसे, लिखना लंबी समीक्षा चाहो तो किसी पत्रिका में भेज देना" - मैं बोला
"अरे भाई साहब, काहे मजाक करते हो - हिंदी वाला हो तो भेज दीजिए, तीन-चार सौ रुपये इस गरीब आदमी का बच जाएगा " लाइवा गिड़गिड़ा रहा था फोन पर और मैंने फोन काटकर मैंगो शेक का ग्लास मुंह से लगा लिया
***
विशुद्ध चार कलाकारों की निम्न मध्यमवर्गीय कहानी जो शुरुआत में थोड़ी सी बोर पर बाद में हर एपिसोड आपको गहरी समझ दे जाता है, पीड़ा और आँसू में डूबे हम सोचते है कि यह तो मेरी, मेरे माँ - पिता के संघर्ष की कहानी है
यह इतनी पाक साफ सीरीज है कि विश्वास नही होता कि सोनी लाईव पर उपलब्ध है, इतने जीवंत पात्र, कसा हुआ निर्देशन, अभिनय में पगे कलाकार, छोटे से घर की शूटिंग और बहुत कम खर्च में बनी सीरीज़ है
हर डायलॉग, हर दृश्य, हर अदा और कहानी इतनी सीधी और सच्ची है कि इन किरदारों से प्यार हो जाता है, सन्तोष मिश्रा बनकर आप ही घर के मुखिया हो जाते है या अन्नू सी बगावत करने को दिल मचलता है या लकी सी नेतागिरी को आप उछलने लगते हो
अस्सी के दशक की बुनियाद या हमलोग की याद आना स्वाभाविक है, इसमें ये जो है जिंदगी भी झांकती है और नुक्कड़ भी , कही जाने भी दो यारों की धमक और हास्य भी है और उमरठा या अर्थ जैसी गम्भीरता भी
इसका शीर्षक गीत हो या हर एपिसोड में आई कविताओं की मिठास जो शहद सी पवित्र है और मीठी है बगैर किसी समझौते के, इतनी प्यारी सीरीज है कि इसे तो किशोरावस्था के पाठ्यक्रम में समाहित कर दिया जाए ताकि बच्चे केंद्रित होकर पढ़े, समाज को समझे और भगवा यात्राओं में जॉम्बी बनने के बजाय अपना जीवन संवार सकें
***
मेरी लिस्ट में लगभग 35 % UPSC Aspirants थे, जो सदियों से दिल्ली, मुम्बई, इलाहाबाद और बड़े शहरों में रहकर तैयारी कर रहे हैं
आज बीस - पच्चीस को फोन कर लिया अब तक, न जवाब दे रहे - ना फेसबुक पर दिख रहे, एकदम गायब पर हर साल जो कहता हूँ वही आज भी कह रहा हूँ
घर जाओ मित्रों , क्यों बाप - माँ का खून जलाकर रुपया बर्बाद कर रहें हो, रहने दो नही होगा तुमसे - कोटवार, आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, एएनएम, पंचायत सचिव, नर्स, मास्टर, पटवारी, नायब तहसीलदार भी बन जाओगे, खेती करोगे या गांव में नमकीन की दुकान या अंडा या फुल्की की दुकान, टेलर, बढ़ाई, लुहार, पंडिताई या जूते चप्पल या रेडीमेड गारमेंट्स का धंधा भी खोल लोगे तो जीवन चल जाएगा
अभी भी समय है सोचो, दिल्ली लील लेगी जब तक समझोगे ...
Comments