युवा साथियों हिंदी, अंग्रेजी या उर्दू में खूब लिखो - खूब पढ़ो, बस दिल्ली की कुछ तथाकथित बड़ी और भद्दी कवियित्रियों से बचकर रहना - ये आपस मे तो चुगली करती है पीछे से एक दूसरी को काटती है पर बहनापा जताने बहुत जल्दी आ जाती है, कल मेरी एक पोस्ट पर हंगामा किया था इन 3, 4 कुकवियित्रियों ने और इनबॉक्स में आकर 13 ने एक दूसरे के बारे में जो बोला वह शर्मनाक है अपठनीय और अविश्वसनीय भी है, इनका एक गैंग है जिसकी सरगना धमकी देती है कि दिल्ली आओ तो वेलकम करती हूँ - अब ये निकलेगी दिल्ली से तलवे चाटने और घिसने, इन 13 के स्क्रीन शॉट्स भी है
एकाध दल्ला इनके आंचल में "अले अले करके सुबकता हुआ सुसु और पॉटी करते" हुआ चला आता है फिर सबकी सब उसे घेरकर कृष्ण भक्ति दिखाते हुए रास लीला करती है
बस इन 3, 4 के खिलाफ कानूनी कार्यवाही कर रहा हूँ दो चार दिन में इनके किस्से और नाम जाहिर करूँगा
महिलाओं के लिए पूरा सम्मान है और उनकी क्षमताओं पर भी भरोसा है पर ये 3, 4 जो पुरस्कार लेने के लिए पैदा हुई जुगाड़ू और सेटिंगबाजों को छोडूंगा नही - ना जीवन भर कोर्ट कचहरी के चक्कर खिलवाये तो देखना
[ अभी किसी ने पूछा कि क्या, कैसे और किस भाषा मे लिखूँ तो यही जवाब दिया ]
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कुछ अधेड़ पर अपढ़, अशिक्षित एवं अपरिपक्व महिलाएं ट्रोल कर रही है कविता कहानी को लेकर और ये सब हिंदी की नकचढ़ी और कुंठित महिलाएं है , यह साइबर बुलिंग का सीधा सीधा केस है , और अब मैं उन सबके खिलाफ एफआईआर लिखवा रहा हूँ, अधिकांश को तो जानता भी नही हूँ
भारतीय दंड संहिता की धारा 499, 500 और उपताप यानी न्यूसेंस क्रिएट करने के तहत धारा 268, 290 , सीआरपीसी की धारा 133 के तहत 3 महिलाओं और अन्य 37 लोगों की शिकायत सायबर सेल में कर रहा हूँ , एक दिल्ली की जिसने कल रात यह शुरुवात की, दूसरी मेरी पोस्ट का स्क्रीन शॉट लेकर लोगों को भद्दे कमेंट करने को साशय उकसाया और आज दिन भर मुझे ट्रोल किया - अब इन्हें ना कोर्ट कचहरी में चक्कर लगवाए तो देखना, जबकि इन दो - तीन महिलाओं का कोई मुझसे या उस पोस्ट से सम्बन्ध नही था, फिर ये उचककर आई है बीच में और जबरन ज्ञान बाँट रही है
जरूरत पड़ने पर इनके नाम भी यहाँ लिखूंगा इनके विवरण के साथ, मेरी पोस्ट में किसी का नाम नही है तो किसी को मेरा नाम लिखकर ट्रोल करने का कोई अधिकार नही है , अब इन्हें छोडूंगा नही
सारे स्क्रीन शॉट्स रख लिए है और अब कानूनी कार्यवाही होगी इन सबके खिलाफ , वकालत सिर्फ पढ़ने के लिए नही पढ़ी बल्कि अब इसका इस्तेमाल भी होगा
ध्यान रहें कि अब यह सब बर्दाश्त नही होगा
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जंगल के जानवरों ने एक वाट्सएप ग्रुप बनाया जिसमे एक गधे, एक सूअर और एक कुतिया को एडमिन बनाया और अब वे रोज साहित्य, संस्कृति, बाज़ार, अर्थ शास्त्र, हिन्दू राष्ट्र और राजनीति पर बात करते है दिन भर
लोमड़ियां, भेड़िये, कुत्ते, खरगोश, उल्लू, कौव्वे, सियार और तीनों एडमिन ढेर कविताएं और कहानियां ठेलते रहते है और भैया, भाई जी, दीदी, जिज्जी और माताजी के रूप में खूब ठिठोली होती रहती है , कोई शेर या शेरनी इस ग्रुप में आ जाएं तो ये एडमिन जो कुंठित किस्म के तृतीय श्रेणी के बाबू या घरेलू है - ग्रुप से निकाल कर संतुष्ट होते है
सबसे ज़्यादा सक्रिय कुतिया रहती है और हिन्दू राष्ट्र, नेपाल से लेकर तमाम जगहों से चोरी की हुई,अनुदित रचनाएं पेलती रहती है क्योंकि गधा और सुअर तो जंगल विभाग के भ्रष्टाचार में इतने संलग्न रहते है कि ठिलवई करने रात को ही आ पाते है - जंगल की गंदगी और विष्ठा भकोसकर
सेवा जारी है
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फेसबुक देखने का अर्थ नही आज, सारी सुहागिनें छलनी से पति को ताक रही है, डेढ़ किलो मेकअप, पांच किलो मेहंदी लगाकर समानता और जेंडर इक्विटी की बात करने वाली और खुले प्रगतिशील कामरेडी पति के फोटो देखकर दिमाग की हार्ड डिस्क भरना बेमानी है
अभी छठ आएगा फिर गुलज़ार होगी फेसबुक और ढेरों फोटो चेंप दिए जाएँगे
जिस समाज मे एकल स्त्री, विधवा और परित्यक्ता या बांझ ( यह बेहद आपत्तिजनक स्वीकृत शब्द है किसी स्त्री के लिए ) के साथ धार्मिक और सांस्कृतिक भेदभाव किया जाता हो इस तरह के त्योहारों के नाम पर और वो भी सधवा महिलाओं द्वारा - वो देश और समाज की पुरुष प्रधान सत्ता क्या महिलाओं को बराबरी का हक देगी, यह आधी आबादी को आपस में लड़वाकर और स्त्री के भीतर ही कुंठा और कमतर होने के मूल्य विकसित कर अपनी सत्ता बनाये रखने का दुष्कर्म है और मज़ेदार यह कि पढ़ी लिखी और सोच समझ वाली स्त्रियों की भी स्पष्ट मान्यता और स्वीकृति है इस विभाजन को लेकर -अफ़सोस
कल देख भी लिया कि हिंदी की कुछ नामी गिरामी और छपास की भूख लेकर पैदा हुई लेखिकाओं की समझ भी किंतनी है, पढ़ना लिखना और छपना सब विशुद्ध मूर्खता के अलावा कुछ नही, दिल्ली में रहकर और बड़े बड़े विवि ने पढ़कर गंवार रही है आज तक तो इनसे क्या सीमोन, मैडम क्यूरी, कल्पना चावला या सुनीता विलियम्स के स्तर की उम्मीद करना
आखिर में विश्लेषण करें तो पाएंगे कि महिलाएं ही भूखी रह रही है और पति, पुत्र के लिए दुआएँ कर रही है - दिक्कत इसमें भी नही है, असली दिक्कत यह है कि पुरुषों द्वारा संचालित बाज़ार का सबसे सॉफ्ट टारगेट बन गई महिलाएं अपनी भावनाओं , विचार और मनुष्य होने को भूलकर इस संजाल में फंसकर इस अत्याधुनिक युग में भी मजाक बनकर रह गई है
ख़ैर, खुली आँखों से मख्खी निगलने को कोई बेताब हो तो बाज़ार को तो यह चाहिए ही
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पहले, जब पत्रकारों की हैसियत एक साइकिल रखने तक की नहीं थी, तब एक व्यक्ति ने खुश होकर एक पत्रकार को साइकिल भेंट की पर उसमें कैरियर नहीं था।
कुछ दिनों बाद पत्रकार कैरियर लगवाने दुकान पर गया। दुकानदार ने कैरियर तो लगा दिया, लेकिन साइकिल से स्टैंड हटा दिया। पत्रकार ने कारण पूछा, तो दुकानदार बोला.....
"पत्रकार का कैरियर और स्टैंड दोनों एक साथ नहीं हो सकते। 'स्टैंड' लोगे, तो समझो 'कैरियर' गया और अगर 'कैरियर' बनाओगे तो 'स्टैंड' नहीं ले सकते
[ पत्रकारों के बदले साहित्यकार भी रख कर पढ़ सकते है ]
Copied
Interesting
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हिंदी में शीघ्र पतन के दावेदार
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रज़ा फाउण्डेशन के भारी भरकम कार्यक्रम, भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कारों के श्रृंखलाबद्ध पाँच वर्षों के "अनारक्षित और आरक्षित श्रेणी" के पुरस्कार वितरण एवं गांधी पर प्रलाप / भड़ास के बाद कल घोषित हुए अमर उजाला के पुरस्कार वितरणों ने हिंदी जगत के (अ)गम्भीर, अकादमिक और फेसबुकिया जगत में आग लगा दी है
विश्व विद्यालयों और शोध संस्थानों में आग लगी है - गाइड हैरान है और पत्रिकाओं के निठल्ले सम्पादक परेशान कि जे का हो गया - सेटिंग काम ना आई और ज्ञान रंजन जैसा आदमी जो पिछले वर्ष निर्णायकों में बैठा था - आज पांच लाख का पुरस्कार लेने पँक्तिबद्ध हो गया, जिसे ज्ञान रंजन ने अपनी ही पत्रिका की कहानी के शीर्षक वाले संग्रह को श्रेष्ठ संकलन मानकर लख टकिया दिला दिया और खुले आम बड़ा सप्लाय करने वाली पापड़ - बड़ी की फैक्ट्री खुलवा दी कहानी की - वो भला बताएं कि पिछले पांच वर्ष में उसने यानी ज्ञान रंजन ने क्या लिखा है या कौन क्रांति की पताका लहराई या लघु पत्रिका के आंदोलन को दिशा दी - बल्कि 'पहल' की दशा खराब कर दी - गज़ब की समझ और समझाइश है
सही भी है हिंदी के सारे चुके हुए चौहान ज़िंदगी भर तो निठल्लई में रहें और अब पांच सौ से लेकर इक्कीस लाख लेने के लिए पुराने रिश्तों की दुहाई देकर मरने से पहले सब कुछ हथियाकर पा लेना चाहते है और दौड़ रहें है दिल्ली , मुम्बई ,पटना ,भोपाल, लखनऊ, ईटानगर ,लेह ,लद्दाख से लेकर हाटपिपल्या, कालूखेड़ी और रामभरोसे धर्मशालाओं तक और साथ खड़े हो रहें है - इनकम टैक्स के कमिश्नरों, कॉमरेडों, सड़कछाप बिकाऊ मिडियाकरों से लेकर निक्कर छाप देश प्रेमियों के साथ
अब मुझे इंतज़ार है कवियों, कहानीकारों, प्रकाशकों के पिठ्ठू आलोचकों और युवा शोधार्थियों की आत्महत्या की खबरों का
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द्रोपति सिंगाड़ , तोताबाला और सौ - पचास प्रोफाइल बदल - बदल कर हर बार नए अवतार में आने वाले कवि, चिंतक, व्याख्याकार, कहानीकार, व्यंग्यकार, नोबल विजेताओं और विश्व साहित्य की रद्दी डबल भाव पर बेचकर दुनिया में मंदी लाने वाले और सेल्फी उस्ताद के मालिक और बेहद लोकप्रिय जनता की मांग पर गायब हो जाने वाले और पुनः अवतरित होने वाले अंबर रंजना पांडे को "अमर उजाला - थाप पुरस्कार 2019" मिलने की हार्दिक बधाई
यह पुरस्कार सिर्फ पुरस्कार नहीं, बल्कि 'कोलाहल की कविताओं' का प्रतिसाद और प्रतिफल भी है , अंबर न मात्र एक संवेदनशील कवि और व्यक्ति हैं बल्कि बहुत बारिक और छिद्रान्वेषण करने वाले कहानीकार है - जो इतिहास और विभिन्न भाषाओं , संदर्भों से ऐसे प्रसंग उठाकर लाते हैं कि हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू , मराठी, संस्कृत या पश्तो के लोगों, ज्ञानियों, मास्टरों और प्राध्यापकों के छक्के छूट जाते हैं और फिर बेवजह बहस के साथ-साथ ज्ञान की भी एक प्रतियोगिता अपनी वाल पर आरंभ करवाते हैं जहां पर उण्ठित - कुंठित लोग आकर अपनी - अपनी भाषाई सीमा और समझ दिखा कर जाते हैं
अंबर को बधाई और बहुत-बहुत शुभकामनाएं - इस उम्मीद और आशा के साथ कि उनकी किताब की कॉपी जो मेरे लिए है, उनके पास पड़ी हैं और वे समय रहते मुझे दे दें - वरना मेरे पास बहुत सारी राज की बातें है
Jokes apart, मजाक छोड़ - गंभीरता से कह रहा हूं अंबर मेरा लाडला कवि और प्यारा मित्र है, वह मेरा मानस पुत्र ही नहीं - बल्कि इमोशनल एंकर भी है , इस समय में लगभग तीसरे दशक में हमारी दोस्ती प्रवेश कर रही है और दुआ है कि वह जल्द ही पुरस्कारों को प्राप्त करते - करते प्रांत और देश की सीमाएं छोड़कर बुकर या नोबेल तक पहुंचे इससे ज्यादा कहने को मेरे पास और कुछ नहीं है, यह पुरस्कार कविता को समृद्ध कर रहा है और सालों बाद यथा योग्य व्यक्ति को दिया गया पुरस्कार है - यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नही है
दिल से दुआएँ अम्बर प्यारे, जियो और खूब रचो, खूब यश कमाओ और कीर्ति पताकाएं चहूँ ओर फैलाओ
इस खुशी में मित्र उत्पल बैनर्जी को भी अनुवाद के लिए पुरस्कृत किया जा रहा है यह भी एक बड़ी खुशी है, उत्पल ने अनुवाद के जरिये बंगाल की विपुल साहित्य और संस्कृति की धारा हिंदी के विशाल क्षेत्र में छोड़ी है जिससे हम जैसे लोग सीख रहें है, उत्पल का हिंदी में होना एक आश्वस्ति है कि यह काम और बड़ा होगा और हम सबको बहुत कुछ प्रामाणिक पढ़ने को मिलता रहेगा
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