प्रमोटी पीजीटी ज़्यादा खतरनाक होता है
केंद्र सरकार का हिंदी पीजीटी हर जगह क्लास लगाने लगता है और हरेक को अपना छात्र, बकवास करने की आदत कहाँ जाएगी यह हिंदी का दोष तो है ही क्षेत्रीयता का भी कलंक है
Shravan ने बहुत सही कहा कि पढ़ाओ माटसाब, सबको बेवकूफ मत समझो, वर्तनी की त्रुटि सुधारना ही मास्टरी है जो कोई भी प्रूफरीडर कर देता है - अख़बारों में रखें ही जाते थे इस तरह के तृतीय श्रेणी कर्मचारी जो आँखें फोड़कर यही करते थे, साहित्य रचना प्रूफ रीडरी से बड़ा काम है जिसके लिए जिगरा चाहिये होता है निंदा रस में लीन होने से अवसाद बढ़ेंगे प्रभु
और नैतिकता ईमानदारी के गुणगान तो कोई करो मत - बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जाएगी
व्यंग्य
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केंद्र सरकार का हिंदी पीजीटी और साहित्य की खैनी
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अपराध बोध,अवसाद और तनाव से ग्रस्त व्यक्ति नीचता की हदें पार करते हुए एक दिन मणिकर्णिका पहुंचा तो वहां भी डोम से उलझ लिया और फिर हाय रे दुर्भाग्य उसे वहां भी जगह ना मिली - चित्रगुप्त से पूछा यमराज ने कहां अटक गई इस कमबख्त की देह
चित्रगुप्त बोला - हे यमराज - हिंदी का पीजीटी है, निंदा रस में लिप्त है अभी , थोड़ी चरस, गाँजा और भाँग का आनंद लेकर , दो चार उल्टे पुल्टे आलेख लिखकर और एकाध पीढ़ी को गरियाकर आएगा हांफते हांफते , फिर भू भाग को देखा और बोले - है प्रभु , प्रभुओं के बीच फँसा है, अपने लिखें को जांच रहा है, एक पुरस्कार भी ना पाने के अवसाद में पानी से पतले पीले बदबूदार दस्त ठीक करता , पांच छह बूढ़ी और चुकी हुई औरतों को आस से देखते हुए निंदा रस में लीन है जैसे ख़ुसरो लीन थे निजामुद्दीन के प्रेम में
इस पवित्र आत्मा को पहले रेवा ने भगाया फिर वाराणसी के अस्सी घाट ने दुत्कारा, मणिकर्णिका के डोम समुदाय ने पनाह नही दी, रामेश्वरम के रेत कणों से बिसराया गया, पशुपतिनाथ ने लौटा दिया कि जाओ वही कंदराओं में डूब मरो, महांकाल ने कहा कि गांजा भाँग प्रेमी यहां वर्जित है और अंत में सोन नदी गया तो नर्मदा रूठ कर पलट गई और केन, बेतवा, कृष्णा, कावेरी, सतलज, माही और महानदी ने भी ठुकराया - इस तरह से हर जगह से चोट खाकर यह प्राणी अब बनारस में "रांड, सांड" से बचकर गुटखा चबाकर चला आ रहा है - हाथ में विजयेंद्र स्नातक कृत हिंदी साहित्य का हिसाब, नामवर, मैनेजर पांडेय, काशीनाथ सिंह , मुक्तिबोध और ना जाने क्या क्या ना बन पाने की अधूरी प्रभु इच्छाएं लिए अलेस, जसम, प्रलेस, अम्बेडकर और गांधी के चूर्णों का गुटखा चबाये, भारतीय शिक्षा की खैनी फाँकते हुए नरक की सीढ़ियां चढ़ गया है पर मज़ेदार है मात्रा की गलतियां ढूंढते हुए अभी भी आश्वस्त है कि अगले जन्म में कॉलेज की प्राध्यापकी मिलेगी
प्रभो, प्रभो, प्रभो .....आप ही सम्हालें ये अनश्वर सत्ता - मैं चला , मुझसे नही होगी किसी हिंदी पीजीटी की ( कु )चरित्रावली पर टिप्पणी, तुलसी, रहीम और सुर को बांचते हुए बर्बाद हो गया मक्कार
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