हिंदी के कवि कम विचारक बद्रीनारायण आजकल बहुत कन्फ्यूज है , सम्भवत बीमार हो
आज नईदुनिया में आलेख पढ़ा और पिछले एक डेढ़ साल से लगातार संघ, भाजपा के प्रेमी बन ज्ञान बांट रहें है
जेएनयू गए थे प्रोफेसर बनकर, फिर लौट आये थे - अपने मठ में पुनः झूँसी (इलाहाबाद) के गोविंद वल्लभ पंत संस्थान में निदेशक बनकर, तब से कुछ केमिकल लोचा हो गया है शायद दिमाग़ में
बहरहाल , क्या कहते है अंग्रेजी में Get well soon बद्री भाई
विश्वास करना कठिन होता है कि आप कभी प्रबुद्ध चिंतक और एक्टिविस्ट होते थे, और आज महज बौद्धिक प्रमुख बनकर रह गए है
यह योगी आदित्यनाथ के कारण हुई अस्थाई एवं पेशागत मजबूरी है तो फिर भी ठीक है, पर विचारधारा के स्तर पर मजबूती है तो कुछ कहना भी लाज़िमी नही है फिर
***
जंगल राज में जब अर्थ, शस्त्र, राज काज और समाज की व्यवस्था मूर्ख और उजबक लोगों के हाथों में हो तो जाहिर है ज्ञानी दूर रहकर ही परिश्रम कर यश और कीर्ति अर्जित करेंगें - जंगल के जानवर खुश रहते है कि वे दुनिया के सबसे उन्नत प्राणी है और हर रोज़ खरगोश की बातें सुनकर धूर्त, निकम्मे और आत्म मुग्ध राजा के पास स्वतः मरने जाते है
गिद्ध, नेवलों, लोमड़ियों , उलूक, सूअरों और गधों से घिरा अहम में मदमस्त होकर विभत्स हरकतें कर रहे राजा को भी सत्ता का इतना नशा है कि वह बुद्धिमानों की उपेक्षा कर इन लालची कुत्तों, भेड़ों और सांपों से अपना ही भविष्य नष्ट करने को उतारू है
***
एक बार गौतम बुद्ध ने प्रवचन देना शुरू ही किया था कि एक चिड़िया खिड़की पर आकर चहचहाने लगी, तथागत चुप हो गये और उसका चहचहाना सुनते रहै - सारे श्रोता भी चिड़िया को सुनते रहे, जैसे ही वह चुप हुई, बुद्ध उठे और बोले - आज का प्रवचन समाप्त हुआ
◆ बुद्ध के सत्संग
***
दलित आंदोलन के साथ वामपंथ क्यों नही है या यूं कहें कि दलित आंदोलन वामपंथी क्यों नही है जबकि वे भी पीड़ित, शोषित और आज भी हाशिये पर पड़े तड़फ रहें है और बेचैन है - सत्ता, पद और सामंती व्यवस्थाओं में धंसने को - जो पांच छह पीढ़ी से सब पा गए है उनका " सवर्णिकरण " तो हो ही चुका है
एक जमाने में संसद में 40 के करीब वामपंथी सांसद थे - आज दो भी है नही सब समान है , 30 वर्ष बंगाल में ज्योति बसु ने अकेले और फिर बुद्धदेव ने राज किया, फिर नन्दिग्राम और सिंगुर हुआ और महाश्वेता देवी जैसी महिला भी ममता के समर्थन में आ गई
हुआ क्या ऐसा कि दलित आंदोलन भी वामपंथ आंदोलन से दूर हुआ जबकि वामपंथ के टारगेट ही श्रमजीवी, दलित, किसान, मजदूर, ग्रामीण, स्त्रियां या वंचित थे और वामपंथ को दलित नेतृत्व ने भी नकार दिया
एक चर्चा में आज ये सवाल उठे तो लगा कि मामला गम्भीर है दोनो तरफ के लिए - मेरी सवाल पर समझ ना उठाते हुए अपनी बात रखें और चलताऊ भसड़ वाले लोग स्माइली बनाकर, लाईक कर या घटिया कमेंट ना करें - यदि प्रश्न की समझ ना हो तो निकल लें
और संघी भाजपाई तो बिल्कुल नही , यह प्रश्न तुम्हारे ना बस का है ना समझ आएगा - तुम लोग जिनपिंग के गुणगान करो - बाप आ गया है झालर बेचने और अब मोदी के साथ उसके भाषण सुनो और जेब ढीली करो - वो यहां बासी दशहरे पर किसी को धौंक देने नही आया है बल्कि राष्ट्र प्रेमियों की पेंट उतारने आया है, तुम्हारे बालाकोट प्रेमी इमरान को जादू की झप्पी और पप्पी देकर
***
सुसभ्य, सुसंस्कृत और एलीट लोगों के संगठन और साहित्यिक मंच को गांधी जैसा सॉफ्ट व्यक्ति ही चाहिए और फिर विवाद भी क्रिएट होंगे तभी चर्चा में आएंगे ना
मजेदार यह है कि क्रांतिकारी, बहुत बड़े क्रांतिकारी भी इन मंचों पर सब कुछ वह कहते है जो लोग सुनना चाहते है फिर ये सामाजिक - साहित्यिक क्षेत्र में भले ही दलित, विपन्न, वंचित और तानाशाही के लिए लिखकर ही इन मंचों पर पहुंचे हो
दास्तानगोई है , रुपयों की महिमा और हवाई यात्राओं के सुख की अपनी चमत्कारिक व्याख्याएं और आख्यान हैं
सन्दर्भ - रज़ा का मजमा और जलसा
***
Comments