Skip to main content

Posts of 16 to 23 Oct 2019

मैं कतई स्वच्छता का विरोधी नही
लड़कियों के लिए अलग से बहुत अच्छी क्वालिटी के शौचालय होना ही चाहिये - गांव हो, बस्ती, झुग्गी या बड़े महानगर - वे सुरक्षित भी होना चाहिये और खुले भी हो - ये नही कि माड़साब ताला लगाकर रखें और महिला शिक्षकों को भी इस्तेमाल के लिए ना मिले
बस एक सवाल है छोटा सा
पिछले तीन वर्षों से लगभग हर जगह बन गए है , क्या लड़कियों की संख्या स्कूलों में शौचालयों से बढ़ी है -[पहली से बारहवीं तक के स्कूलों में ]
◆ नामांकन में - Enrollment
◆ संतोषजनक उपस्थिति प्रतिदिन - Satisfactory attendance every day
◆ ठहराव में - Retention
◆ उत्तीर्ण होने में - Qualifying in exams
◆ कितनी लड़कियां पांचवी से आठवीं और आठवीं से बारहवीं में आ गई है - Number of Girls promoted and retained in schools in higher classes
◆ बालिका शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ शौचालय बना देने से कितना पूरा हो पा रहा है - Is objective being fulfilled by toilets
◆ कितनी महिला शिक्षिकाएं लड़कियों के शौचालय से संतुष्ट है और मानती है कि यह उपस्थिति बढ़ाने का वरदान साबित हुआ है - खास करके किशोरियों के मासिक स्राव आदि के दौरान उपयोग के संदर्भ में
शिक्षक साथियों, ग्रामीण क्षेत्रो या समुदाय के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के मुद्दों पर काम करने वाले ज़मीनी साथी जवाब दें
ज्ञानी, पॉलिसी मेकर्स, बुद्धिजीवी और भयंकर किस्म के शिक्षाविद दूर रहें
***
परसों एक मैयत में गया था , रास्ते में 5 - 6 बाइक वाले अर्थी के आगे जाने के लिए बेताब थे और इतने कर्कश स्वर में हॉर्न बजा रहे थे कि बता नहीं सकते . एक का हैंडल मैंने पकड़ लिया और उसको अर्थी की तरफ इशारा करते हुए बहुत सरल भाषा में पूछा कि इसके आगे और कहां जाना है- कहने लगा अर्थी अड़ रही है रास्ते मे - अब क्या बोलूं उससे
पता नहीं कौन सी दौड़ है, कहां जाना चाहते हैं , किससे आगे जाना चाहते हैं, वहां जाकर क्या प्राप्त कर लेंगे - मालूम नहीं पर सबको तेज दौड़ना है , बहुत तेज दौड़ना है , एकदम समय पर - सब काम तेज करना है - जबकि वहां पहुंच भी जाएंगे , सब समय पर हो भी जाएगा तो कुल हासिल क्या होगा - यह नहीं मालूम और शायद यह देखने के लिए जिंदा बचेंगे भी कि नहीं - यह भी नहीं मालूम , पर तेज जाना है , तेज दौड़ना है , हर कुछ जल्दी प्राप्त कर लेना है - समय से पहले प्राप्त कर लेना है और बाकी तो फिर सब चलता ही रहता है
क्या किया जाए कोई जवाब नहीं है
***

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही