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आप, तुम और तू का सम्बोधन / जय माता दी - आते बोलो / पटना वाटर लागिंग - बाढ़ नही Sept End 2019

जय माता दी - आते बोलो,
जाते बोलो - जय माता दी
◆◆◆

इतना अच्छा माहौल है बाजार में कि कह नहीं सकता - सड़कों पर भयानक भीड़, साइकिल, कार , बाइक , जीप, ट्रैक्टर , बैलगाड़ी और लालबत्ती दौड़ाते प्रशासन के अधिकारीगण और गाय भैंसों से पूरी सड़क अटी पड़ी है और इस सबके बीच बड़े वाले डीजे लेकर चुनरी यात्राएँ इतनी कि कई लोग खोज रहें है कि बीबी आई तो शांतिपुरे वालों के साथ और अब भवानी सागर वालों के साथ मिक्स हो गई
पुलिस के जवान बेचारे जनता की सेवा कर - कर के थक गए हैं - हर कोई उन पर दादागिरी कर रहा है , हाथ मे मोबाइल लहराते और सेल्फी लेते ये भीड़ अनियंत्रित है पुलिस के हैंडसम जवान कुछ कहते भी हैं तो सुनाई नहीं देता क्योंकि माता रानी के भजन सुनाते भोंगो का शोर है, हर मंच से चीखते हुए संचालकों के आदेश , प्रसाद बांटने के निर्देश, पुलिस में भर्ती हुए युवा सोच रहें है कि वो संविधान में लिखा था " हम भारत के लोग "
राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 3 पर सड़क के दोनों ओर इंदौर से देवास तक साबूदाने की खिचड़ी, फरियाली चिवड़ा , राजगिरे का हलवा, दूध की खीर, सैकड़ों टन केला और चना - चिरौंजी से लेकर आलू के चिप्स और चाय के इतने विशाल भंडार टेंटों में लगे हैं कि लगता है भारत की गरीबी खत्म हो गई है और सारे लोग महादानी हो गए हैं ना बाजार में मंदी का असर है और ना ही कहीं गरीबी है चमचमाहट है , रंगीन बाजार है , शानदार गाने हैं , डीजे है सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेशों की धज्जियाँ उड़ाती भीड़ और व्यवस्था है - जो भी हो इन भंडारों का अमृत भोजन अदभुत है और स्वाद तो लाजवाब है ही - इतने प्यार से और हाथ पांव जोड़कर खिला रहे कि बाप के श्राद्ध में कौव्वे को भी नही खिलाते बापड़े
गजब की भीड़ - जो हर स्टॉल पर रुक कर कुछ ना कुछ फ़्री में मिल रहा माल चबाकर / खाकर जहां खड़े हैं - वही कचरा फेंक कर आगे भाग रही है - शायद उस स्टॉल पर राजगिरे के हलवे में काजू, बादाम डले हो - कुछ हमारे भारतीय तो सेहत को लेकर इतने जागरूक हैं कि वे सिर्फ काजू, बादाम और किशमिश निकाल कर खाते हैं - बाकी का कचरा दोने में ही फेंक देते हैं - जहां खड़े हैं वही, और फिर दोनों हाथ से माणिकचंद या रजनीगंधा निकालकर अपने मुंह में डालते हैं और जय माता दी बोलते हुए आगे बढ़ते हैं दाई और या बाई और यह भी नहीं देखते कि कौन आ रहा है या जा रहा है - अपने मुंह को ट्यूबवेल बनाकर पच्च से थूक देते हैं - इतना कि सड़क का गौरव बढ़ जाता है और भारत देश बारंबार महान होने लगता है इनका यश और कीर्ति पताकायें दुनिया भर में फहरे - यही माता रानी से दुआ करता हूं, नगर निगम के स्वच्छता अभियान की गाड़ियां थक गई है फेंक - फेंककर पर वे कर्मचारी भी चुप है और बेहद समर्पित भाव से काम कर रहें है - आखिर हिन्दू राष्ट्र के सम्मानित नागरिक है और बाबा साहब अम्बेडकर ने उन्हें इसी दिन के लिए तो अनुच्छेद 14, 15, 19 एवं 21 में अधिकार दिए थे - नीली क़िताब में जिसे संविधान कहा जाता है
रहा सवाल ट्रैफिक का, कार का, बाइक का, ट्रैक्टर का, बैलगाड़ी, हवाबाजी करते नई उम्र के लौंडों का और परम पूज्य गौमाता और सौतेली माता भैंस का तो - उनकी तो बात ही मत पूछिए - हमारे देवास नगर निगम ने उन्हें आदेशित किया है कि वे राष्ट्रीय राजमार्ग और ऐतिहासिक टेकड़ी पर जाने वाले रास्ते के सामने पसर कर आगंतुकों का स्वागत करें - ठीक निगम के सामने और एसपी आफिस के सामने बेचारी मुफ्त में ओव्हर टाईम करके भी मेजबानी का धर्म निभा रही है
हर गली मोहल्ले में जो बिजली की सजावट है वह भी राज्य शासन ने मुफ्त देने का वचन दिया है कि तार डालो और ले लो बिजली, अपने बाप का ही माल है - जी भर के जलाओ - ऐसे पुण्य के पुनीत कार्य मे भला बिजली विभाग और जिला प्रशासन की हिम्मत कि ससुरे धार्मिक युवाओं को कुछ कह दें - अभी तो रंजन गोगोई नवम्बर में दूसरी दीवाली मनाने का न्यौता दे रहें है - उसकी तैयारी का लोड अलग है
बहरहाल "आल इज़ फाइन "
जय माता दी
***
आप, तुम और तू का सम्बोधन
◆◆◆

एक करीबी मित्र ने अभी लिखा कि जो आप नही बोलते उनसे बातचीत में परहेज रखता हूँ कम से कम पहली मुलाकात में तो आप ही होना चाहिये जब तक कि दोस्ती या रिश्ता मिठास में घुलमिल ना जाएँ
बात तो सही है पर परिवेश, भाषा को देखना होगा इतना सीधा जनरलाईजेशन नही कर सकते हम, देश के लगभग हर भाग में गत 40 वर्षों में घूमा हूँ - ठेठ आदिवासी इलाकों से सभ्य समाजों के बीच भी पर यह सम्बोधन करना बड़ा दुखदायी करता है, ये जहाँ एक ओर सामंतवाद और जड़ता के प्रतीक है वही दूसरी ओर भाषाई ठसक, ज्ञानी, श्रेष्ठ होने और दूसरों को कमतर समझने के भी द्योतक है
मैं बड़ी मुश्किल से आप बोल पाता हूँ , मराठी भाषी होने से सब कुछ तू पर ही चलता है, हम मराठी लोग अक्सर माँ, पिता, मामा, मौसा या दादा चाचा यानी छोटे - बड़े को भी तू ही कहते है
कॉलेज में पहले दिन गया था तो अंग्रेजी के प्रो स्व अवस्थी जी को स्टाफ रूम में बुलाने गया तो बोला था "तू कितने बजे आएगा" - वे मुस्कुराये और बोले क्यों मराठी हो क्या - मैंने बोला, जी , क्यों
बोले - जाओ आ रहा हूँ , तुम्हारी गलती नही है
आज भी तुम तक अटका हूँ आप बोलने के लिए जद्दोजहद करना पड़ती है और यह आप, तुम और तू के फेर में लगता है बहुत गड़बड़ है, बातचीत का फ्लो टूटता है अक्सर , इसलिए अंग्रेजी या मराठी में वार्तालाप सुहाता है - जहां बगैर किसी भय या लाज के You या तू चल जाता है और फ्लो बना रहता है एकदम सहज तरीके से
बहरहाल, प्रयास जारी है सभ्य बनने का 💝 पर मित्रों की शिकायत होती है , यह लाज़मी भी है पर क्या किया जाये
किसी को तू कहता हूँ तो बेहद अपना सा लगता है और आप कहता हूँ तो लगता है कोई दूसरा है जिससे बात सम्हलकर करनी है और सतर्क भी रहना है
आपण भी बोलते है मराठी वरिष्ठों को , पर 98 % तू ही है "आपण" बहुत ही प्रशस्त और भारी गरिमा वाले को ही बोला जाता है
पर यह भी ऑन रिकॉर्ड कहना चाहूंगा कि तू का अर्थ अपमान नही है ना ही किसी को कमतर आंकना बल्कि बेहद अपनापा , स्नेह और खुलेपन से अपनी बात कहने का माद्दा है और बगैर झिझक और भय के बात कहना सुनना भी है
कोई मराठी आदमी मुझे आप या आपण कहें तो अटपटा लगता है क्योकि अभी इतने सम्मान के लायक हुआ नही, ना डिजर्व करता हूँ
हिंदी की सोहबत और कुछ मित्रों के सुझावों को मानते हुए इधर 20 - 30 वर्षों में आप कहना सीख लिया है और हाँ, उम्र 53 की होने का गुरुर चढ़ ही जाता है, मास्टरी, प्रिंसिप्ली करने का भी अनुभव तो उम्र से छोटों को भांपकर तुम ही निकलता है - यह भी ईमानदाराना कन्फेशन है
कम से कम तू तो नही बोलता किसी को यह कुल जमा हश्र है फिर भी किसी को गलत लगता है तो अपन असभ्य ही ठीक है
मैं ठेठ खांटी आदमी हूँ - ना दिखावा आता है और ना ही कोई नोबल पुरस्कार लेना किसी से
सहज बनकर दो घड़ी किसी से बतिया लें वही ठीक है, हिंदी लिखने में भी इसलिए मात्रा की गलतियां होती है अक्सर
मसलन मराठी स्क्रिप्ट में नागपुर को नागपूर लिखते है , संदीप को संदिप लिखते है - अब प्राथमिक स्तर पर जो भाषाई संस्कार मिलें या मराठी स्कूल में पढ़ा तो यह सब गलत होना स्वाभाविक भी था और फिर कोई टाइपिस्ट या प्रूफ रीडर भी नही - ना ही केंद्रीय विद्यालय में "हिंदी के पीजीटी" जो दूसरों की खामियां खोजते फिरें - ना हिंदी में किसी अगड़े - पिछड़े विवि से हिंदी में चाटुकारिता करके गोल्ड मेडल लिया है - जो गरियाते फिरे जमाने को
और अंत में
तस्लीम फज़िली के शब्दों में आगे कहते हैं -

"प्यार जब हद से बढ़ा सारे तकल्लूफ मिट गये
आपसे फिर तुम हुए, फिर तू का उनवां हो गये"

***
पटना में जो हुआ या हो रहा है वह दुखद है
आज रवीश कुमार ने भी शुरुवात में कहा कि दुख नज़र नही आ रहा
मेरा भी मानना है कि सैंकड़ों चित्र देखें पर जो अफसोस और दुख दिखना चाहिए वह नही है
युवाओं में पानी, नाव प्रेम, अन्न देने का, सामग्री बाँटने का सेल्फी प्रेम रोमांस से ज्यादा नही लग रहा और एक अजीब सा शेख चिल्लीपन दिख रहा है
कृपया अन्यथा ना लें, मेरी समानुभूति सबके साथ है, गहरी संवेदनाएं भी - पर ये जिस तरह की अतिरंजना कर अतिश्योक्तिकरण से दो तीन इलाकों को फोकस करके बताया जा रहा है वह भयावहता की विश्वसनीयता खो रहा है
आज 9 - 12 मित्रों से फोन पर बात की जिनके मोबाइल चार्ज्ड थे, घर में कोई दिक्कत नही, दूध ब्रेड सब आसानी से उपलब्ध है, वे आज काम पर भी गए है और सामान्य स्थिति बताई उन्होंने, दुकानें भी खोली है और ठेकेदारी के काम भी पूरे किए ही है
पानी थमने के बाद का इंफेक्शन, गंदगी, बीमारी और अन्य किस प्रकार की समस्याएं लेकर आएगा यह कहा नही जा सकता पर राजेन्द्र नगर और बाकी दो मोहल्ले पटना नही यह हम भी समझ सकते है - हां आपके लिखने की दक्षता और कौशल की तारीफ है
पता नही सच क्या है पर तस्वीरें पेश करने के अंदाज़ निराले है , ख़ैर, सुशील मोदी के विस्थापित होने से / फंसे होने से यह मीडिया हाइप बना है
हो सकता है मीडिया में खुद को हाइप करके महान बनने की भी एक कोशिश हो, इस बहाने दक्षिण - उत्तर बनाम बिहार पर भी हम सबने बहस कर ली और गरिया भी लिया - पर अब आगे क्या
आज ही लोगों के नाटकों के शो भी है, कल से गांधी पर बड़ा आयोजन भी है पर कुछ निगेटिव नही सुना, कुछ कैंसल हुआ हो यह भी नही सुना
***
हाथी निकल गया और पूंछ रह गई की तर्ज़ पर - लॉ का आखिरी पेपर 9 सितंबर के बाद 16 और फिर 1 अक्टूबर तक टलता रहा - नीमच, मंदसौर और रतलाम में भारी बारिश के कारण और अंत ने आज लॉ के प्रथम वर्ष के दूसरे सेमिस्टर की परीक्षा सम्पन्न हुई
हाथ का साथ ठीक ही रहा खूब मसाज कर करके 35 - 40 पेज भरें और वो भी हाथ से, लिखने से नाता ही लगभग टूट गया था और 1989 के बाद परीक्षा हाल में बैठकर तीन घँटे बगैर बड़बड़ किये , मोबाइल बन्द करके और एक ही जगह पर बैठकर लिखना उफ़्फ़, पर एक सबक मिला कि हाथ से लिखना जरूरी है तकनालाजी पर निर्भर रहना अपंग होने जैसा है, 53 की कोई भला उम्र होती है कि आप कहें हाथ से लिखना दूभर हो रहा है - एक बात जरूर कहूँगा हाथ से लिखने में जो फ्लो आता है वह अप्रतिम है
सबका अच्छा सहयोग रहा और सकुशल निपट गई
अगर पास हुआ तो चार सेमिस्टर और असली वाला एलएलबी भी हो जाएगा 🤣🤣🤣
जॉली वाले तो बहुतेरे हेंगे और लुच्चे, लफंगे और बदमाश भी, अपनी कोशिश रहेगी कि कुछ कर पाएं
इस एक साल में बड़े प्यारे, सहयोगी और सूझबूझ वाले युवा एवं प्रौढ़ मित्र मिलें है, प्राध्यापक मित्रों से फिर मिलकर दिल गुलज़ार हुआ - बहुत अच्छा साल बीता डेढ़ - पौने दो साल में एक वर्ष की परीक्षाएं हुई है और पहले सेमिस्टर का परिणाम आया हैं, अब दूसरे सेमिस्टर के लिए मन्नत मांगने का और हनुमान जी के मंदिर में कल से नारियल फोड़ने का क्रम शुरू कर रहा हूँ 💖💖💖
भगवान भला करें
सीखते रहें, पढ़ते रहें - कुछ नया ही मिलेगा
***

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