Skip to main content

अपराधबोध में अपनी ही बिरादरी का कुंठित हो जाना Ravish Kumar 3 Aug 2019


अपराधबोध में अपनी ही बिरादरी का कुंठित हो जाना

रविश भाई, मैग्सेसे पुरस्कार के लिए बधाई . यह पुरस्कार उन सब लोगों का प्रतीक है जो लड़ने के लिए कृत संकल्पित है पर अपनी बात रविश को माध्यम बनाकर कहते है
यह जज़्बा बना रहे और आपकी प्रतिबद्धता ना मात्र जनता के प्रति बल्कि एनडीटीवी से भी सदैव बनी रही, कम से कम आपने एक दो रुपये बढ़ौतरी के लिए चैनल दर चैनल नही बदलें
आपमें लोग अपनी आवाज़ देखते है और अपनी समस्याएं जिस अंदाज़ में खोलकर कहते है वह भरोसा कायम रखियेगा और यही एक दिन काम आएगा, बाकी नदियों का क्या हैं - पानी आता जाता रहता है , कभी कीचड़ भी आता है तो इंतज़ार करने को हम तैयार है - बह ही जायेगा
अशेष शुभकामनाएं
ऐसे ही बनें रहें सहज, सुलभ और उपलब्ध
बहुत स्नेह और दुआएँ
***
◆ आईटी सेल का महकमा निलंबित, कमीने दो कौड़ी की पद्मश्री नही दिला सकें अंजना बैन को - पिछले 5 सालों में - भौंक भौंककर दुबलाई गई छोरी
◆ साला पूरा फेसबुक रँगा पड़ा है -सुधीर, रजत,अर्नब और अंजना टाईप आज कहाँ गायब है , रोटी मांगने और दूध पीने भी नही आये
◆ जनता समझ रही है सब अब कि क्या खेल था सुभाष चंद्रा से लेकर रजत तक का
◆ माखनलाल भोपाल के एक प्रोडक्ट ने फोन करके पूछा दादा ये सीवी रमन की याद में दिया जाता है ना
◆ पत्रकारिता के छात्र उत्साहित खबर पढ़कर फिर स्वप्न देखने सो गए
◆ दक्षिणपंथी पत्रकारों ने अपने सिसकते दर्प को तिलांजलि देकर बधाई लिखा मरता क्या ना करता जात बाहर होना नही
◆ बाकी दो लोग सोच रहें अब क्या करें साला सब चौपट हो गया
◆ इधर हर नत्थूलाल वाट्सएप कर रियाँ है उनकू बोले कि घर आये थे अब्बी चा पीकर गए हेंगे
◆ कुछ वरिष्ठ लोगों को खून चढ़ाना पड़ा हीमोग्लोबिन जलकर खत्म
◆ पत्रकारिता के माड़साब लोग के रिये ये एमजे है नी और ऐसे थोड़े ही देना चईये चाय जिसकूँ
◆ अक्षय कुमार ने फिर मोदी से पूछा जामुन धोकर खाते हो या गुठली सहित निगलने की इच्छा है, आम का मौसम तो निकल गया
◆ अमित भाई ने पूछा ये रबिश जी कौनसा बल्ला से कीरकेट खेलते है , कार का पीछा करने लगाओ और नी समझ आएँ तो कुलनीच को पूछो कोई ट्रक खाली है क्या - साला ईमेज का कबाड़ा हो रियाँ हेगा
◆ कुछ लोग तो दस्त की गोली लिए बैठे है और कुछ डीहाइड्रेशन से परेशान होकर गुलुकोज़ चढ़ा रिये है कम्पाउंडर बबूल जोस्सी के गुमटी छाप किलिनीक में
***
हर आदमी का Ravish हो जाना ही सच्ची पत्रकारिता है
शायद ही कोई होगा जिसका आज दिन ना बना होगा
***
●●●
रवीश कुमार ऐसे छठे पत्रकार हैं जिनको मैग्सेसे पुरस्कार मिला है, इससे पहले अमिताभ चौधरी (1961), बीजी वर्गीज (1975), अरुण शौरी (1982), आरके लक्ष्मण (1984), पी. साईंनाथ (2007) को यह पुरस्कार मिल चुका है - इसके अलावा यह पुरस्कार 40 भारतीयों को भी मिल चुका है

आचार्य विनोबा भावे पहले भारतीय थे जिन्हें इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया था - वहीं, मदर टेरेसा पहली भारतीय महिला थी जिन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था
●●●
चमन सुतियों और कुछ अक्ल के अंधों ने रमन मैग्सेसे पुरस्कार के बारे में विष वमन शुरू कर दिया है और इनके हिसाब से उपरोक्त सभी मूर्ख थे सारी अक्ल इन अक्ल के अंधों को ही है जो आज बिलों से निकल आये फुफकारते हुए

सबको इतिहास मालूम है इसका भी, बुकर का भी, नोबल का भी और साहित्य के दो कौड़ी से लेकर लखटकिया और ज्ञानपीठ या साहित्य अकादमी पुरस्कारों का इतिहास, धन, अर्थ, चयन और शुचिता के बारे में
जो लोग गाली दे रहें है और अपने आकाओं की पोस्ट नकल करके चेंप रहें है वे जान लें कि ये आका लोग सरकारी नौकरियों पर आश्रित है और उन्ही सरकारों का दिया हुआ खाते, ओढ़ते और बिछाते है इसी तन्ख्वाह से परिवार, कुनबा और गाय, भैंस, कुत्ते और बिल्ली पालते है - जिन सरकारों को गलिया कर ये कोरे निपट बुद्धूजीवी होने का स्वांग भरते है - हिम्मत है तो दिखाए मर्दानगी छोड़ दें नौकरियां और करें मैदानी काम , नही जी फिर तो कुतर्क भी जुगाड़ लेँगे
जो पत्रकार जलन कुढ़न कुंठा में मवाद उगल रहें है वे भूल रहे है कि सरकारी विज्ञापनों के लिए बाबुओं के सामने बिछ जाते है, निजी विज्ञापनदाताओं के सामने दांत चिरौरी करके हाथ पांव जोड़ते है और शुचिता की तो बात ही ना करें तो बेहतर है
ये सब उसी सरकार की नौकर गिरी करते है जो इनकी निगाह में फ़ासिस्ट, दमनकारी है तभी मक्कारी करके या करने के लिए कम्फर्ट ज़ोन खोजते रहते है कि काम ना करना पड़े , सरकारी नौकरी पर जाना नही पत्रकार बनकर अधिकारियों को डराना, काम के समय में पूरे समय फेसबुक, वाट्सएप चलाना, ड्यूटी समय में साहित्य सृजन करना या स्टोरी बनाना - कहाँ से लाते हो बै इतनी चरस, गांजा भाँग बो रखा है पूरे परिदृश्य पर
एक भी सामाजिक सरोकार बता दो, कोई एक ठोस काम बता दो या कुछ ठोस उपलब्धि बता दो कमबख्तों, कितना जलोगे - अपनी लाईन बड़ी बनाओ ना
एक एक का इतिहास लिखने बैठेंगे तो सिवाय कीचड़ और मल के कुछ ना मिलेगा बाकी तो जो है हइये है
ख़ैर जाओ कही मुफ्त की दारू ढूंढो और चार गाली और दो रवीश को, तुम्हारी कुंठाएं वाजिब है और बाकी और भी बहुत कुछ है पर ठीक है - हताशा में बस आत्महत्या मत कर लेना, कोई फर्क नही तुम भ्रष्ट तथाकथित वामियों और भक्तों में
***
अपराधबोध में अपनी ही बिरादरी का कुंठित हो जाना
◆◆◆

कल एक पोस्ट लिखी थी -कुछ अज़ीज मित्रों को लगा कि उन्हें टार्गेट किया पर सच में मैंने किसी को टार्गेग नही किया पर बहुतेरे है जो इस पुण्य में लिप्त है, जेपी से लेकर विनोबा तक की कुछ तो समझ रही ही होगी जो उन्होंने यह पुरस्कार स्वीकार किया था
और कुल मिलाकर बात यह है कि रवीश के सरोकार और सामाजिक पैरवी से हम सब वाकिफ है पुरस्कार गलत नही मिला है यह बात लोगों को समझना चाहिए और यह भी कि रजत को जो पद्मश्री मिली थी वो गलत था बस इतनी साफगोई हो यह भी बड़ी बात है
मित्रों ने कहा कि यह मेरी कुंठा है -जहां तक मेरी कुंठा का सवाल है वह लग सकता है पर मैं ना पत्रकार हूँ ना हूंगा कभी, और साहित्यकार होने के मुगालते कभी नही रहें जितना मैंने लिखा या लिखता हूँ उतना तो कोई भी घसियारा फेसबुक पे चेंप देता है, पिछले 36 वर्षों में मैं एनजीओ और शिक्षा में रहा और हूँ पर उनके भी चाल चरित्र इधर बदले है वे काम कम अनुदान और फेलोशिप पर ज्यादा फोकस्ड है इसलिए वह क्षेत्र भी छोड़ दिया है
हाँ पर यह जरूर है कि साहित्य और पत्रकारिता क्या हो इसकी समझ है वामी - दक्षिणी दोनो की लिहाज़ा आईना तो दिखाता रहूँगा - टारगेट करके नही और समय आया तो नामज़द भी लिखूंगा बल्कि लिखता भी हूँ - क्योंकि कोई नृप होय हमें का हानि
रविश को यह मोटी रकम वाला पुरस्कार मिलने से खलबली है और बड़े कद के पत्तलकारों को नींद नही आ रही यह भी परम सत्य है और उनकी इस मूर्खता ने भाजपा और भक्तों को समूचे पत्रकारों को घेरने का मौका दे दिया है वही घटिया साहित्यकारों ने अपनी लार को संयत कर कुंठा के बहाने विष वमन किया है यह भी परम सत्य है, दो - चार कहानियां नौकरी के टाइम में लिखकर और गुलशन नंदा टाईप उपन्यास लिखकर रविश नही हो जाते - यह इन चमन के सुतिया बने ठेकेदारों को समझ नही आ रहा, 74 के मंगलेश जी को ही देख लो बुढ़ापे में छिछोरी हरकतें कर अटेंशन सीकिंग व्यवहार कर अपनी जीवन भर की इज्जत को बाज़ार में ला दिया
काश कि कल सारी पत्रकार बिरादरी खड़ी हो जाती रविश के साथ और पलटकर साहित्यकारों और कुंठित वामियों को एकसाथ जवाब देती कि तुम लोग गलत हो और उनके विकिपीडिया और यहां वहां से चैंपकर लगाये पोस्ट्स को एक सिरे से नकार देती, भक्तों की खबरों को बायकॉट कर देते, आईटी सेल को बेनकाब करते तो मजा आता पर उल्टा हुआ पत्रकार ही पत्रकार को घेरकर पीटने लगे - यह दिखाता है पेशे के प्रति ईमानदारी, प्रतिबद्धता, समझ और सबसे बढ़कर टुच्ची मानसिकता या औकात - ये पैदा ही बिकने के लिए हुए है गलत नही है
बहरहाल, अब विराम

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही