कल मैं ,बहादुर ,ज्योति, निहारिका और वैभव हिंदी के बड़े कवि स्वर्गीय बालकृष्ण शर्मा "नवीन" के गांव भ्याना, शुजालपुर के पास, गए थे
वहां उनके जन्म स्थल पर ग्राम पंचायत ने एक सामुदायिक भवन बना दिया है, हाई स्कूल में एक स्मारक बना है
गांव में लगभग 2500 की आबादी है जिसमे से आधी आबादी मुस्लिम समुदाय की है परंतु जिस प्रेम और लगन से इन सब लोगों ने नवीन जी की स्मृति को "दादा जी" के रूप में याद रखा है वह अतुलनीय है, बहुत प्यार और सम्मान से इन लोगों ने हमसे चर्चा की, बात करते समय बार-बार यह लगा कि जिस तरह से वे लोग हर वर्ष 8 दिसंबर को नवीन जी की याद में कार्यक्रम आयोजित करते हैं और दूर दूर से लोगों को बुलाकर बढ़िया बातचीत करते हैं वह प्रशंसनीय है , शुक्र यह है कि हवा का जहर अभी गांव में पहुंचा नही है और सांझी संस्कृति, सांझी विरासत गांव में अभी भी जिंदा है
सबसे अच्छी बात यह है कि गांव के लोग अभी भी उन्हें अपने "दादा जी" कहते हैं और उनके परिवार से, नवीन जी की यादों से जीवन्त संपर्क बनाए हुए हैं - वह काबिले तारीफ है
बातचीत करते हुए लगा ही नही कि नवीन जी इस दुनिया में नहीं है, यह विश्वास उन लोगों को भी नहीं है, स्कूल में जब बच्चों से चर्चा की तो उन्हें नवीन जी की कविताएं भी याद है, गांव के लोगों को भी 'हम अनिकेत' जैसी कविताएं कंठस्थ है - यह एक बड़ी आश्वस्ति है कि हिंदी में , जन में ऐसे लोग अभी भी हैं जो अपने पुरखों को, अपनी धरोहर को, अपनी विरासत को और अपने साहित्यकारों को ना मात्र जिंदा रखते हैं बल्कि उन्हें हर रोज पूरी शिद्दत से याद भी करते हैं
सलाम है ऐसे लोगों को और सलाम है ऐसे कवियों को भी
ज्योति का विशेष शुक्रिया कल का दिन विशेष बनाने का और शुजालपुर की मेजबानी का
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