Skip to main content

प्रेम की वर्तनी - ज्योति देशमुख का पहला कविता संकलन 3 Aug 2019

Image may contain: plant and text

कविता प्रेम के उफान की आकस्मिक सूचना है और किसी कवि का संग्रह उसके उद्दाम वेग का दस्तावेज़ , ज्योति का संग्रह जीवन के शुरू होते पाँचवे दशक का दस्तावेज है - जहां वो अपनी कल्पनाएं और अनुभव संजोकर एक क़िताब की शक्ल में लेकर पहली बकर आई है, सब कुछ छोड़ भी दे तो एक आश्वस्ति है कि यह संग्रह जीवंत और धड़कते दिल का सबूत है और कविता में होने का अर्थ
◆◆◆
"अब के जाओ तो छूकर देखना उन्हें 
महसूस होगा मेरी सांसो का ताप
मेरी आवाज का कंपन
और वह रंग
जो मेल खाता है मेरे रंग से"
- पीले फूल
◆◆◆
"प्रेम उसकी सबसे कमजोर रग
जिसे बचा लेना चाहती है वह हर चोट से
सो ढाँके रखती है उसे तिरस्कार के आवरण से
तुम्हें हटाना होगा उस आवरण को
बिल्कुल वैसे जैसे हटाती है धूप
अंधेरे को धरती से"
- उसका लोहा
Book on the table
ज्योति देवास में रहती है इधर दो तीन वर्षों में उन्होंने बेहतरीन कविताएं लिखी है, रश्मि प्रकाशन से उनका संग्रह " प्रेम की वर्तनी " आया है, कल उन्होंने बड़े स्नेह से दिया है
मदन कश्यप जी ने आमुख लिखा है, अभी इतना ही - बाकी पढ़ने के बाद
शुभकामनाएं Jyoti Deshmukh
Image may contain: Jyoti Deshmukh

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही