बचपन में स्व सुधीर फड़के की गीत रामायण हर मराठी घर मे बजती थी 12 कैसेट का सेट आता था, मेरे यहाँ अभी भी पड़ा है, सुधीर फड़के इस धरा पर तब तक जीवित रहेंगे जब तक संसार है और यह सिर्फ गीत रामायण की वजह से - एक आदमी एक जीवन में कितना काम कर जाता है
दादी, नानी सुनती थी, सुबह पाँच बजे से ये कैसेट शुरू हो जाते थे, बाद में माँ ने भी यह परम्परा जारी रखी, कई मराठी घरों में सुबह गीत रामायण और शाम को दिया बत्ती के समय राम रक्षा का पाठ आज भी होता है बस अब मोबाइल, तुमनली { youtube} पर बजते है
आज देवास के राजकवि स्व झोकरकर जी की पुण्यतिथि पर उनके परिवार ने सुधीर फड़के के सुयोग्य पुत्र और प्रसिद्ध संगीतकार श्रीधर फड़के का गीत रामायण का कार्यक्रम रखा है
अदभुत है यह कार्यक्रम - अभी लाइव सुन रहा हूँ तो स्मृतियों के कोनो कोनो में पड़े गीत, सुमधुर धुनें याद आ रही है, हॉल भरा हुआ है , हिंदी मराठी मिलाकर दो हजार लोग होंगे - सबके मुंह से गीत निकल रहें है
लोक धुनें कितने गहरे घर कर जाती है बचपन में सुनी हुई - यह एहसास हुआ आज
फिर कहता हूँ कि गायक हमेंशा ज़िंदा रहना चाहिए और सिर्फ गाये, राजनीति नही करें कम से कम
***
लीजिये जनाब पेश है - शाही करेला
◆◆◆
◆◆◆
● करेले को बारीक काट लें, और फिर उसमें नमक, नींबू का रस और हींग स्वादानुसार मिलाकर दो घँटे ढाँककर रख दें - इससे कड़वाहट निकल जायेगी और दिव्य स्वाद हो जाएगा
● राखी पर आयें नारियलों में से एक को फोड़कर बारीक टुकड़े कर लें, चार छह हरी मिर्च, दो इंच अदरख के साथ मिक्सी में थोड़ा सा पानी मिलाकर बारीक पीस लें
● कढ़ाई में सरसों का तेल गरम करें, राई, जीरा और साबुत मैथीदाने के बीज का तड़का लगाएं अब इसमें करेले डाल दें
● दस मिनिट बाद बारीक किया नारियल, अदरख और मिर्ची का पेस्ट डालकर लाल मिर्च, हल्दी, धनिये का पाउडर डालें और थोड़ी देर बाद गर्म मसाला और स्वादानुसार नमक डाल कर रख दें
● लगभग पंद्रह मिनिट में कुरकुरे शाही करेले की सब्जी तैयार हो जाएगी - यह बहुत स्वादिष्ट, पौष्टिक और स्वास्थ्य वर्धक है, इसे घी लगी गर्मागर्म रोटी के साथ खाएं
सावधानी - सब्जी को चलाते रहें वरना जल गई तो बदबू से स्वाद बिगड़ेगा और मजा नही आएगा खाने में , गैस की आँच मद्धम रखें
असल में राखी पर 20 के करीब नारियल आते है, इनका सही उपयोग नही करेंगे तो सूखकर सड़ जायेंगे और बर्बाद होंगे - बेहतर है कि कुछ ना कुछ चटपटा बनाकर खा लिया जाये जो शरीर को भी लगें
आज के आनंद की जय
***
कल जल संरक्षण पर विधि महाविद्यालय में भाषण प्रतियोगिता हुई, अपुन ने भी भासण दिया, अपने 34 साल के अनुभव, देश दुनिया में जल संरक्षण के उपाय एवं किये जा रहे प्रयासों के बारे में साथ ही नर्मदा आंदोलन, जल भराव से बड़वानी के गांवों में हो रही हानि पर बात की, इस तरह से ज्ञान गंगा बहाकर अपुन पेला नम्बर ले आये भिया
हवो, मजा आया खूब 🤣🤣🤣🤣
***
गुड़, गोबर, गौमूत्र, गौशाला और नारद मुनियों के बीच हिंदी अख़बार
◆◆◆
◆◆◆
रविश कुमार ने आज आर्थिक विश्लेषण करते हुए कहा है कि अंग्रेजी पढ़िये, हिंदी अख़बार यह सब नही बताएंगे
हिंदी अख़बार है कहाँ - जैकेट के पुलिंदे है , गुप्त रोग, संगम और जापानी तेल, डाक्टर शाहनी या चोपड़ा के विज्ञापन, लिंग वर्धक उपकरण, मनपसंद बातें करें के फोन नम्बर, फिल्मी पेजेस और शादी डॉट कॉम से भरे है - बाकी जो भी न्यूज़ है वह लिफाफों की बदौलत है और फीचर, सम्पादकीय सब प्रायोजित है ; जब मीडिया हाउसेस के सीईओ अपने पदनाम के साथ हफ्ते में 3 दिन फीचर लिखें तो लेखक, विचारक की जरूरत क्या है, अखबार में बैठे स्तम्भ के मालिक अपने चाटुकारों को उनके कुत्ते बिल्ली और सूअरों के नाम से भी आलेख हफ्ते दर हफ्ते लगाने लगे - बच्चों, पत्नियों को तो छोड़ दीजिए, न्यूज़ चैनलों से हकाले गए चोर उचक्कों की बनाई न्यूज एजेंसियों की मनगढ़न्त खबरे उठाकर चेंप दे तो क्या उम्मीद करें मीडिया से
पत्रकारिता के प्राध्यापक विधुर होकर प्रजापति ब्रह्मा कुंआरियों के आश्रम में शरण ले लें और कमरों में , पीपल बरगद के नीचे उन्हें भूत चुड़ैलें नाचती दिखाई दें और वे बेहद आक्रामक होकर वर्जनाएं तोड़कर बेशर्म हो जाये तो आप छात्रों से क्या उम्मीद करेंगे
विवि में अकादमिक ज्ञान के बजाय गौशाला, गोबर और गौमूत्र पर चर्चा हो और कुलपतित पर गिरफ़्तारी के वारंट जारी हो तो क्या कौशल, दक्षता और ज्ञान की उम्मीद आप अख़बारों से करेंगे जिनके छात्र अखबारों में आकर धंस जाते है किसी बीट पर, डेस्क या पेज पर अंगद की तरह
पत्रकारों ने पढ़ना छोड़ दिया, हिंदी नही आती, मातृभाषा नही आती - अंग्रेजी तो छोड़ दीजिए , मुंह मे गुटखा, बगल में मसाले या गुलाब का देशी पाव दबाएं थानों और दफ्तरों के बाहर मिमियाते ये लोग है क्या - विशुद्ध दलाल
और अंत में प्रार्थना - बाकी सब तो है ही नारद भगवान के भरोसे सम्पूर्ण पत्रकारिता जगत और इन्हीं को इष्ट मानकर पत्रकारिता विश्व विद्यालय चलने लगें तो क्या कहना फिर हिंदी अखबार की क्या औकात गौ पट्टी में
***
एक विधि के प्राध्यापक का ज्ञान
मदर टेरेसा मद्रास की थी, पंजाबन थी और जीवन भर अस्पताल में सेवा करती रही, अंत में उसकी चर्च में हत्या हो गई तो ईसाई घोषित कर दिया
●●●
सल्फास है क्या किसी के पास, बहुत मन है खाने का - अब दिल नही लगता ज्ञान में
***
नया शब्द बनाया है हम कुछ भी करें नाटक, गाना - बजाना, गीत कविता, कहानी या बैंड बाजा बारात और जहां डालें वहाँ आप देखें उसे आज से कहा जाये
"तुमनली" अर्थात - Youtube
बॉस अपुन का कॉपी राइट है समझे ना
***
*देश को इस समय लाखों हिमांशु चाहिए ❤️
◆◆◆
अंकित चड्ढा के बाद दास्तानगोई में अभी कोई युवा उस्ताद है तो हिमांशु वाजपेयी - किस्सा किस्सा लखनौवां के लेखक और फन में माहिर
दो दिन से इंदौर में थे किस्सागोई करते पर जाना कल ही हो पाया, राखी के कारण घर मेहमानों से भरा था, पर कल थोड़ा सुकून मिला तो पहुंचा
प्रजातंत्र अखबार का आयोजन था, बहुत लोग थे - ख्यात लोग राजनीति, समाज सेवा और मीडिया के भी, कई मित्रों से लंबे समय बाद मुलाकात हुई
हिमांशु ने बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां और काकोरी कांड को लेकर बात करते हुए लगभग ढाई घँटे की प्रस्तुति दी, वेदांत भारद्वाज के गीत, अजय टिपानिया , देवकरण और युवा तबला वादक शायद शिवार्ध की संगति ने ऐसा समां बांधा कि हॉल गूंजता रहा, पूरे शो में सब था - इतिहास, राजनीति, मजाक, इमोशन का तड़का, हंसी, गीत, दुख, ज्ञान, विचारधारा, भावुकता और तारीखें जो कभी मरा नही करती और वो दास्तानें जो बार - बार कब्र से भी निकलकर बारम्बार आती है और इंसानी मज़हब और तरक्की का कॉलर पकड़ती है - पूछती है कहाँ, किधर जा रहे हो, क्या इसी के लिए लाखों लोग शहीद हुए थे, क्या इसी दंगाई माहौल को बनाने के लिए बिस्मिल और अशफ़ाक ने दोस्ती को सर्वोपरि रखा, क्या युवाओं ने आजादी को महज नुक्ती समझ रखा है और बेहतरीन शोषण मुक्त भारत का स्वप्न भूला दिया है और अब एक अंधी भीड़ में अनुयायी बनकर खिलौना बन गए कठपुतली नुमा - सिर्फ दस युवाओं ने सरकारी खजाने को लूटकर ब्रिटिश साम्राज्य के सूरज पर बादल तान दिए थे फिर आज दुनिया के सबसे ज़्यादा युवा संख्या में होते हुए क्यों देश बदहाल है और पूरी व्यवस्था शोषण, भेदभाव भरी और साम्प्रदायिक हो गई है
हिमांशु की हिम्मत की तारीफ करना होगी कि सुमित्रा महाजन से लेकर तमाम भाजपाई विधायकों और भक्त वृन्द के सामने जिस अंदाज से अस्पृश्यता, छुआछूत, हिन्दू मुस्लिम एकता की बात कहते हुए एवं अपनी लाईन देते हुए बिस्मिल और अशफाक की वसीयत लोगों में बांटी और कहा कि एक शहीद की विरासत लेकर जाईये - समता मूलक समाज और शोषण मुक्त समाज का जो सपना है , जिस हिन्दू मुस्लिम - एकता के लिए शहीदों ने कुर्बानियां दी है, उसे मत भूलिए और फिरका परस्त ताकतों को परास्त कर खुशहाल भारत बनाइये - वह गजब था, यह साहस मुझे अभी के परिदृश्य में कही नही दिखता है
पूरे आयोजन में प्रजातंत्र के हेमंत शर्मा जी की सूझबूझ, प्रकाश हिंदुस्तानी जी का संचालन और पूरी टीम का सहयोग और संयोजन काबिले तारीफ था , भयानक बरसात में हॉल भरा होना सफलता की निशानी थी
हिमांशु यारां एक ही दिल है कितनी बार लोगे, लव यू - गज़ब के बंदे हो - खूब जियो और यश कमाओ
***
जितने दिन तक बचा सको
बचा लो - स्वतंत्रता
बचा लो - स्वतंत्रता
समता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व
सहेज सको तो बचा लो
सहेज सको तो बचा लो
सोचना कि जो अधिकार खुद के मिलें है
दे जाना अपनी आने वाली पीढ़ी को
दे जाना अपनी आने वाली पीढ़ी को
बाकी तारीखों का क्या
आती जाती रहती है
आती जाती रहती है
15 अगस्त महज एक तारीख है
आजादी तारीखों की मोहताज नही
वो एक मूल्य है जिसकी समझ
मुश्किल है और हरेक के लिए नामुमकिन भी
आजादी तारीखों की मोहताज नही
वो एक मूल्य है जिसकी समझ
मुश्किल है और हरेक के लिए नामुमकिन भी
बहरहाल , जश्ने आजादी मुबारक
***
सबसे ज़्यादा भ्रष्ट और अव्यवस्थित, ढीली और घटिया ज्यूडिशियरी से आपको न्याय की उम्मीद है - जो लोवर से उच्चतम स्तर तक की न्यायपालिका वकीलों की दलाली पर चलती है उससे क्या आप पारदर्शिता और न्याय की उम्मीद करेंगें, जहां वकील एक हियरिंग के पांच लाख लेते है वहाँ आप गरीबों को न्याय दिलाने की या विधि के समक्ष सबको समान मानने की बात करते हैं अनुच्छेद 14 - 15 में
जब दस साल एनआईए प्रज्ञा के ख़िलाफ़ कोई भी सबूत अदालत में नही दे सकी, सोचिए एनआईए को दस साल तक कितनी तनख्वाह दी गई होगी और वे बरी हो गई तो पहलू खान के लिए रोना बन्द करिये
आज भी अदालत को कोई सबूत नही मिला यह जाँच एजेंसियों की कुशलता और योग्यता पर सवाल नही उठाता, वीडियो से ज्यादा महत्वपूर्ण है वीडियो बनाने वाला उपस्थित नही था - यह कुतर्क कहाँ का है मतलब व्यक्ति को मारा गया है साक्ष्य मौजूद है पर साक्ष्य बनाने वाला अदालत नही आया है
फैसला अभी पढ़ा नही है पर जो खबरे आ रही है उससे यही लगता है कि लोवर कोर्ट में कुछ भी जाँच एजेंसी दे नही पाई - आजादी का यह तोहफ़ा मुबारक हो
भामाकीजै
***
अपनी मेधा नष्ट ना करो, पाट दो अब इसे
◆◆◆
◆◆◆
मप्र के नर्मदा बांध प्रभावित क्षेत्रों में मौत का साया है इन दिनों, दो युवा अभी मर चुके है, क्या फर्क पड़ता है किसी को, मुझे भी नही पड़ा बस यह है कि ससुरे सीमा पर मरते तो एकाध करोड़ मिल जाते घर वालों का - देशभक्ति का अखंड चुतियापा है इस देश मे और बुद्धिजीवियों का भी शगल है यह
नर्मदा नेत्री मेधा पाटकर ने एक अपील की है जिसका वीडियो देखा जा सकता है, यह अपील कम मप्र बनाम गुजरात और राज्य बनाम केंद्र के बीच लड़ाई की अपील ज़्यादा करती है , मेधा 36 वर्षों से घाटी में है और संविधान, न्याय, प्रशासन, मीडिया और आदिवासियों को बखूबी जानती है इसके बाद भी अपील मार्मिक और भावुक बनाते हुए जिस अंदाज में कहती है वह आश्चर्यजनक है
एक बात साफ है सरकार कोई भी हो - विकास सर्वोच्च प्राथमिकता है फिर कोई मरें या मारना पड़े बाकी सब बकवास है, घाटी में मुआवजें का बंटवारा हो गया है , जैसे भी हुआ हो वैसे, गुजरात ने निर्णय लिया है कि बांध पूरा भरेंगे तो भरेंगे, कमलनाथ जी का कोई वक्तव्य नही है तो नही है और मीडिया नही उठाएगा तो नही उठाएगा यह मुद्दा -इसलिए शूरवीर लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय है जिसका कुल जमा हश्र लाइक्स, कमेंट्स और व्यर्थ की बहस है
एक्टिविज्म, गांधियन विचारधारा अब स्वप्न है बल्कि हकीकत यह भी है कि ये लोग अब ज़्यादा हिंसक भी है - विचार और कर्म के स्तर पर , ख़ैर 36 साला एक असफल आंदोलन के पुरोधाओं को सोचना भी चाहिये कि आखिर आज उनके ही साथ काम करने वाले कहाँ है, राजधानी में , बड़े शहरों में या अंतरराष्ट्रीय फेलोशिप लेकर कार्पोरेट्स के पठ्ठों के संग प्रशिक्षणों में या टूट पुंजिया राजनीति में
समय यह है कि किसी को किसी के दर्द का एहसास नही है और देश भर में एनरॉन से लेकर विस्थापन की समस्याओं तक के प्रदर्शन में घूमने वाली शेष बची एकमात्र जीवाश्म मेधा भी हैरान है कि क्या किया जाये - कुछ नही , छोड़ दो इन्ही आदिवासियों ने मप्र से केंद्र में जो प्रतिनिधि भेजे है उनके हवाले कर दो , यही है वे लोग जिन्होंने मेधा को 10000 के ऊपर वोट नही दिए थे मुम्बई में तो अब क्या लड़ना इनके लिए, यही वे लोग है जो साल में 10 माह गुजरात जाते है पलायन पर और लौटकर गुण गाते नही अघाते
सरकारें निजी संपत्ति है अमित शाह, मोदी या अम्बानी या अडानी जिंदल की, अब विश्वास नही है फालतू के आंदोलनों और जल जंगल जमीन के मुद्दों पर - जिस देश मे सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रपति से लेकर मुहल्ले के पार्षद ही कुछ करने लायक नही वहां क्या खाक कुछ चमत्कार होगा खासकरके उन लोगों के बीच जो बेहद दोगले और मक्कार हरामखोर है जो 360 के करीब मेंडेट उन्हें देते है जो उन्ही को विस्थापित कर उजाड़ने में लगे है
चलिए घर जाईये, खेल खत्म हो गया है
***
कुरकुरा स्वादिष्ट और पौष्टिक कद्दू
◆◆◆
कद्दू आमतौर पर पसंदीदा सब्जी नही होती घरों में
इसकी खीर या परांठे ही भाते है अक्सर , उपवास के दिन मूंगफली मिलाकर स्वादिष्ट सब्जी बनती है, आज हम कुरकुरा, स्वादिष्ट और पौष्टिक कद्दू बनाना सीखेंगे
---
◆ आधा किलो कद्दू को छीलकर चौकोर आकार में काट लें छोटे टुकड़ों में
◆ एक गर्म कढ़ाही में तेल गरम करके राई, जीरा और एक बड़े चम्मच मेथीदाना से बघार दें
◆ खूब सारा हींग, साफ धोकर सूखाया हुआ कढ़ी पत्ता, एक छोटा प्याज और दो बड़ी हरी मिर्च डालकर पांच मिनिट पकाएं
◆ अब कटे हुए कद्दू डाल दें और दो मिनिट ढांक दें
◆ अब इस मिश्रण में दो चम्मच साफ किये सफेद तिल, दो बड़े चम्मच नारियल का बुरादा डाल दें और हिलाकर पांच मिनिट ढांक दें
◆ अब इस मिश्रण में आधा चम्मच हल्दी, बारीक कुटी हुई 7 - 8 काली मिर्च और स्वादानुसार नमक डाल कर पुनः पांच मिनिट के लिए ढांक दें, ध्यान रहें कि लाल मिर्च का पाउडर, धनिया पाउडर या गर्म मसाला नही डालना है
◆ अब इसे नीचे उतारकर कोथमीर { हरे धनिये की पत्तियां } से सजाएं और नींबू का रस निचोड़कर परोसे, इसे आप स्नैक्स के रूप में भी खा सकते हैं
[ पोषण बढाने के लिए सहजन या मुनगा के पत्ते भी डाल सकते है इसमें ]
Comments