किसने किसको मारा - समाज,जाति ने या फ़ालिज ने
सूनी सड़के नही बताती
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मंगला भाभी
यही नाम था उनका ? पता नही पर हम भाभी ही कहते थे, पिछले 30 वर्षों से कॉलोनी में आ रही थी, बेहद शालीन, स्वाभिमानी, सौम्य और व्यवहार कुशल
कॉलोनी की सड़क पर हमारी की हुई गंदगी की सफाई उनकी जिम्मेदारी थी, जब कॉलोनी में घर बढ़े और सड़कें पक्की हुई तो तीन चार और महिलाएं साथ आने लगी, रोज़ सुबह आती थी और सामान्य बातचीत, हालचाल के बाद काम करती थी, घर के बाहर जगह है और गुलमोहर का पेड़ भी, तो सब लोग यही बैठती थी और खाना भी खा लेती थी
मेरे यहाँ ही अधिकार से पीने का पानी या भैया चाय बना दो आज सर्दी बहुत है, आज नाश्ता करवा दो पर कही भी दुराग्रह नही एकदम जैसे घर की कोई सदस्य हो लाड़ और अधिकार से कहती थी और हम भी घर की ही मानते थे उन्हें
पिछले 30 वर्षों में मैं बड़ा हुआ और वो थोड़ी बूढ़ी, अपने घर परिवार , सुख दुख, नगर निगम के किस्से , शुगर की जांच और मात्रा नियमित बताती और मुझे भी डाँट लगाती कि क्यों इतना आम खाते हो,क्या दवा ले रहे हो
सुबह जल्दी उठ जाता था माँ और मैं - तो तीन फीकी चाय बनती थी, माँ की, मेरी और मंगला भाभी की - कभी याद ही नही रहा उनका कप कौन सा था और जग - ग्लास कौन सा , शुरू में वो कहती कि कप यही धोकर बाहर रख दूंगी - कल इसी में दे देना पर मुझे समझ नही आता कि ऐसा क्यों, कालांतर में उन्हें बताया कि मैं और माँ यह सब नही मानते
फिर कभी कप ना रखा गया विशेष, ना ग्लास , वे घर परिवार सफाई में लगी महिलाओं के दर्द, दारोगाओं की मक्कारी और कचरा गाड़ी वालों के किस्से सुनाती रहती थी, रोज़ सुबह आवाज देकर बातचीत करती थी और चाय का दौर , कभी नाश्ते का दौर साथ होता था
माँ के 2008 में जाने के बाद उन्होंने धीरज बंधाया था और घर की देखभाल में उनका ध्यान बढ़ गया था, छोटे भाई की मृत्यु के बाद 2014 से वे भाई के बेटे पर भी निगाह रखती थी और बड़े वात्सल्य भाव से ओजस - ओजस करती थी कि कॉलेज क्यों नही गया, रिजल्ट का क्या हुआ, गाड़ी क्यों तेज़ चलाता है आदि, घर में ताला रहता तो दोपहर तीन बजे तक ठीक दरवाजे के पास अंदर गुलमोहर की छांव में बैठी रहती थी
इधर शुगर ज्यादा बढ़ने लगी थी तनाव भी बहुत था, दस दिन पहले कह रही थी कि देवास सफाई में दसवें स्थान पर आया सरकार ने सबको ₹ 5000 एक्स्ट्रा दिए है, बहुत खुश थी कि इस बार तनख्वाह बढ़कर मिली पर तनाव बना हुआ था
मंगला भाभी की बिटिया ने अपनी पसंद से राजस्थान के किसी युवा को चुना था - जीवन साथी के रूप में जो कुम्हार जाति से था , यहां देवास में सबने मिलकर उसकी शादी कर दी थी, लड़के के परिजन ख़ुश नही थे पर दोनो मियाँ बीबी ख़ुश थे, देवास में ही उनका दामाद कुछ कर रहा था
पिछले दिनों वह अपनी गाड़ी लेने घर गया राजस्थान और थोड़े दिन बाद मंगला भाभी को "वाट्सएप पर सूचना मिली कि वह डूबकर मर गया" आगे - पीछे और कोई सूचना नही, बिटिया गर्भवती है उनकी इन दिनों और यह हादसा हुआ
वे बेटी को हिम्मत देती थी कि मैं हूँ चिंता मत कर, पर अपना दुख किसी को बांटती नही, आखिर तनाव बढ़ा ; दिल -दिमाग से होता हुआ शरीर पर आ गया और दस दिन पहले लकवा मार गया और पिछले मंगलवार को दो अटैक एक साथ आये और मंगला भाभी का किस्सा खत्म
मंगला भाभी नही रही - यह सूचना मिली दूसरी महिलाओं से जो एक दिन छुट्टी मारकर काम पे लौटी, बोली - बहुत तनाव में थी, सबको याद कर रही थी, बेटी को भी हिम्मत दिलाती रही, पर खुद ही हार गई
माँ की बरसी पर मैं हमेशा उन्हें अच्छी साड़ी खरीदने के लिए पर्याप्त रुपये देता था, इस 26 जुलाई को वो आई ही नही, इंतज़ार था, रुपये रखें है अभी भी पर मंगला भाभी नही है बस, ना अब कभी आएंगी, माँ और मंगला भाभी को जुलाई ने लील लिया जुलाई को कभी मुआफ़ नही करूंगा मैं
कौन मरा, किसने - किसको मारा, मेरे पास सवालों का जवाब नही पर एक बेटी जाति के नाम पर जीवन भर भुगतेगी, एक भली और प्रशस्त महिला को मरना पड़ा - जबकि वो पूरी कॉलोनी में दो बार सफाई करती थी - मैं कह सकता हूँ कि इतना वर्क आउट करने के बाद शुगर की मजाल नही कि जान ले ले पर समाज , रीतियाँ और जाति ने या यूं कहूँ कि ऑनर किलिंग वाले फैशन के इस दौर ने दो जान ले ली , दामाद मरा या नही इसका मेरे पास प्रमाण नही पर मंगला भाभी का देहावसान हो गया यह सच है
क्या लिखूं नमन, श्रद्धांजलि या RIP मंगला भाभी
हम सब एक कुंठित और बीमार समाज में जिंदा है - जितनी जल्दी हो सकें इसे बदल दो और यह हमें ही करना होगा सरकारें तो कुछ नही करेंगी
सड़कें सूनी है और गुलमोहर का पेड़ उस हंसी के इंतज़ार में है जो सूनी दोपहरों को गुंजायमान कर देती थी, चौकस निगाहें अब नही है , और आठ दिनों से चाय अकेला पी रहा सुबह की, लगा था कि वे आ जाएंगी कोई कागज़ लेकर कि देखना भैया ये क्या आदेश है अब हमारे लिए
नमन
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