घटिया से कस्बे में कब प्रतियोगिता हो जाती है और कब परिणाम घोषित हो जाते है मालूम ही नही पड़ता, कविता प्रतियोगिता के ईनाम घोषित हुए तब अखबार से मालूम पड़ा कि एक ही कवि को ग़ज़ल, अतुकांत, छंद और गीत के लिए प्रथम, द्वितीय और तृतीय के साथ सांत्वना भी दे दिया, सिर्फ अखबार में आया
मालूम पड़ा कि कुल 3 - 4 इंट्री ही आई थी तो आयोजक भी क्या करते - ख़ैर, पुरस्कार वितरण समारोह में { जिसमें 20 टुच्चे लोग चाय सुड़कने आये थे } में बापड़े कवि को एक बेशर्म का फूल भी नही दिया, आयोजक ने खुद ही नारियल पकड़कर, शाल ओढ़कर और दस रुपये वाला हार पहनवा लिया दो चार लोगों के बीच
इसे कहते है कवि की भयंकर वाली बेइज्जती पर आत्म मुग्ध तो तब भी हुआ जा सकता था, कवि के लँगोटिये ने जब मामला समझा तो सोशल मीडिया पे पेला, ठेला कि बहुमुखी प्रतिभा के शनि सॉरी, धनी को 5 पुरस्कार मिले तब कही जाकर कुछ लाइक - कमेंट आयें और पुरस्कृत कवि को कब्ज के बाद साफ शौच हुई बगैर इसबगोल लिए
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कार्यक्रम में यदि किसी राजनैतिक पिठ्ठू और आर्षद पार्षद टाईप को भी बुला लें आयोजक तो कार्यक्रम दो घँटे लेट होगा, इसके अलावा इनके लग्गू भग्गू और चूतिये टाईप छर्रे कार्यक्रम की मैय्यत ही निकाल देते है - ऊपर से इनके श्रीमुख से निकले उद्बोधन तो राम नाम सत्य से भी भयावह होते है
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संचालक यदि गधे से भी गया बीता हो तो उसे उसी मंच पर उल्टा लटकाकर मिर्ची की धूनी दे देना चाहिए, बेवकूफ किस्म की हरकतें करता रहता है - महिलाओं को ताकते हुए और माईक को दोनो हाथ से पकड़कर ऐसे चिपक जाता है जोंक की तरह कि ससुरा हटेगा ही नही
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किसी भी कार्यक्रम में मुख्य कार्यक्रम और मुख्य अतिथि को छोड़कर स्थानीय लफंगे और उजबक टाईप के मूर्ख बकलोली करते है और बारी बारी से खुद को हार फूल और कफ़न ओढ़वाते रहतें है - वह अक्षम्य है, ये मूर्ख लोग मंच पर बैठकर लोगों को प्रताड़ित करते रहते है
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प्रायोजित सम्मान कितने भद्दे लगते है और लेने वाले कितने गलीज हो जाते है लेते समय, उनके चेहरे पर जो भाव चिपके होते है वे अश्लीलता से भी भयानक है
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एकदम चोखे धन्धे की जगह थी जहां एक बड़ा सा हाल था कवियों - कहानीकारों के लिए, चारो तरफ गुटखा तमाखू की दुकानें थी, पेट्रोल पंप था लगा हुआ और सामने सांची पॉइंट और हाल के ठीक नीचे खाना बनता था , चौराहे के दूसरी ओर सोमरस, आमरस भी उपलब्ध होता था
कविता की आत्माएं हाल में बिल्कुल कम, गुटखा तमाखू की दुकान पर थोड़ी, साँची पॉइंट पर और ज़्यादा और खाना बनने वाली जगह पर सबसे ज्यादा घूमती थी अतृप्त मानो सारे खण्डकाव्य आज खा - पीकर ही मानेंगी
इस तरह हिंदी कविता का उत्तरोत्तर विकास हो रहा था
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23 लोगों की भीड़ में कहानी पाठ कर रहे रचनाकार को शुगर की बीमारी थी और वह 47 पेज की एक छोटी सी लघुकथा पढ़ने के दौरान 3 बार पेशाब करने गया, हाल से लगे पेशाबघर में जिसकी बजबजाती खुशबू पूरे वातावरण को रोमांटिक बना रही थी, जब चौथी बार जाने लगा तो साढ़े तीन महिला कवि हंस दी - तो उठने के बजाय उसने कहानी पढ़ने का स्वांग फिर चालू कर दिया
थोड़ी देर में नत्थूलाल की कचोरी वाली दुकान के ओटले जैसे बने स्टेज से नाला बह निकला और सारे श्रोता नाक पे उंगली रख च - च - च करते निकल पड़े
कहानी के पौने सैतींस पेज बाकी थे
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और फिर शहर के टूच्चो ने तेजी से वट वृक्ष बनते जा रहे कवि की सारी मौलिक रचनाओं को मलयालम, पश्तों से अनुदित करार देते हुए उसकी हत्या कर दी
बाजारीकरण के कठिन दिनों में आजकल वो चिर युवा "अपना स्वीट्स" के एकदम ताज़े खुले आउटलेट पर वेरी नाइस तरीकों से लहसन की सेंव और सोन पापड़ी तौलकर बेचता है
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फिर रचनाकार उर्फ कवि ने अपनी 13 कविताएं पेलकर आहिस्ते से लजाते हुए कहा कि आज इस अगस्त ऑडियंस से भरे सभागार में जो सुख मिला वह अप्रतिम है और आप सबको प्रणाम करते हुए मैं अध्यक्ष जी और अग्रज संचालक की अनुमति के बगैर अपनी नन्ही सी कोमल बिटिया को मंच पर बुला रहा हूँ कि वो आये और आप सबका आशीर्वाद लें
यह धृष्टता करने की माफी पर अभी अभी इसने 153 कविताएं पूरी की और आपके बीच बैठे जगत प्रसाद जी जो प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय पत्रिका "निर्गुणी" के संपादक है , ने बिटिया से कहा था कि कभी सुनाए कुछ - तो उनके आग्रह पर बिटिया को बुला रहा हूँ , आप सबकी दुआओं से यह पटना भी जा रही है 26 जनवरी को कविता पढ़ने
आपका सबका आशीर्बाद और दाद चाहूँगा - अपनी डायरी सम्हालते वे मुश्किल से माईक छोड़कर मंच पर बैठ गए
श्रोताओं में बैठे वसन्त सकरगाये ने भिन्नाते हुए चिल्लाकर पूछा लड़का पैदा नही किया क्या , चार पांच सम्पादक और बुला लेते , और इस कविता पेलू कवि की नसबंदी हुई कि नही या अभी भी चल्लू है काम काज
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