SNCU यानी नवजात शिशुओं की देख रेख की विशेष इकाई।
देवास में जनवरी से 29 मई 2016 तक कुल 505 नवजात भर्ती हुए और 87 बच्चे मर गए , 39 बच्चों को रेफर किया गया।
अब बताईये, बच्चे सिर्फ एम व्हाय में नही मर रहे, रीवा में जलने के खतरे पर नही, सब जगह यही हालत है। देवास में यह इकाई #यूनिसेफ के सहयोग से चल रही है पर पिछले कई माहों से इसमें ना डाक्टर है और ना ही उपकरणों की मरम्मत हो रही है, अप्रशिक्षित और तदर्थ डाक्टरों के भरोसे चल रही है यह यूनिट। सब उपकरण खराब पड़े है - 20 में से 8 वार्मर, सक्शन 5 में से 4, सी पॉप मशीन दोनों, सीरीज मशीन 14 में से 5, एसी 11 में से 9, और मल्टीपेरा मीटर 5 में से 3 खराब है महीनों से ऐसे में आप उम्मीद करते है कि जो बच्चे भर्ती है या रोज लाये जा रहे है इलाज के लिए वो ज़िंदा बचेंगे ? अधिकाँश अनट्रेंड स्टाफ बच्चों को डील कर रहा है।
जो राज्य अपने बच्चों के सुरक्षित जीवन के लिए पहल नही कर सकता या माकूल इंतजाम नही कर सकता वह घोर लापरवाह और निकम्मा राज्य है और वहाँ का पूरा प्रशासन हत्यारा है इन पर बाकायदा रिपोर्ट की जाना चाहिए।
इसी राज्य ने आठ दिन पहले तक साधू संतों की सेवा के लिए दुनियाभर की पुलिस, प्रशासनिक अधिकारी, रुपया और विदेशी लोगों के विशेषज्ञ बिठा दिए थे उज्जैन में तब कैसे मैनेज हुई सब बातें।
मित्रों, यूनिसेफ को मैं कोट करता हूँ तो निंदा के लिए बल्कि इसलिए कि वहाँ संवेदनशील लोग, बड़े भाई अनिल गुलाटी जैसे बेहतरीन शख्स बैठे है और इस पूरे अंधियारे में उम्मीद की किरण सिर्फ वही नजर आती है पर जब उनके प्रभारी सलाहकार, जो निश्चित ही होंगे, भी कुछ नही कर पा रहे, तो फिर मैं जो इस नाकाम तन्त्र को थोडा बहुत समझता हूँ किससे उम्मीद करूँ या किस ओर देखूँ।
और मामला बच्चों का है, मिलेनियम गोल की अवधि खत्म हो गयी पर शिशु मृत्यु दर कम नही हो रही। जब जिला स्तर के अस्पताल की यह हालत है , वो भी देवास जैसे जिले की जो पहुंच में है, कोई मण्डला डिंडौरी की बात नही कर रहा मैं , तो फिर बाकि ब्लाक और अन्य पिछड़े जिलों का क्या होगा।
बेहद हालात खराब है और सच लिखने पर निगेटिव, फ्रस्ट्रेशन और भाजपा विरोधी करार दे दिया जाता हूँ और अब इससे मुझे भी लगने लगा है कि क्या मैं सच में विकास विरोधी हूँ ? पर इन सब सत्यों का क्या जो सामने है ?
Sorry for tagging you Sachin Kumar Jain , since you are working on IMR rigorously, hence thought to put these harsh facts that infants are not dying merely because of calamity or irresponsible acts of doctors in Indore or Rewa but the system and state is delibrately attempting to kill them, I dont know why.
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हिंदी कविता के कुछ लोगों को छोड़ दूं तो बहुत गलीज लोगों से घिरा हुआ पाता हूँ कविता को जो बेबस है और मुक्ति की कामना में तड़फ रही है। ये वही लोग है जो अंदर से इतने घटिया और गन्दे है कि कवि तो दूर इंसान होने लायक नही है चापलूस, मक्कार, रीढ़विहीन, दोगले, जहर और बदले की भावना से भरे हुए और एकदम घटिया इतने कि आप जान जाए कि ये कवि है तो कविता पढ़ना छोड़ दें । हाँ दूसरों के दोष निकालने और सम्बन्ध बनाने में सिद्धहस्त और बटोरने में पारंगत चाहे फिर वो कूड़ा हो या दलाली या रास्ते में पडी भोग योग्य सामग्री !!
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हिंदी के स्थापित या घोर छपासू लेखक के काम को आगे बढ़ाने के लिए उसके घर में तीन चार लेखक होना जरूरी है यह काम कोई भी कर सकता है - बेटा, बहू, बेटी, दामाद, पोता, पतोहू या गिलहरी, बिल्ली, तोते या पालतू .....
ध्यान रखिये यह लेखन की पहली शर्त है !!!
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