याद है आपको देश में जब शिक्षा पर बहस हो रही थी तो राज्यसभा में मात्र कुल 35 सांसद मौजूद थे और अगस्ता डील के समय सारा सदन मौजूद था. शिक्षा हमारे लिए क्या है यह देखना हो तो राजनीतिकों और ब्यूरोक्रेट्स के माध्यम से देखना चाहिए.
इस तस्वीर को देखें जो जिला कलेक्टर, खंडवा, मप्र ने सिंहस्थ के मद्दे नजर ओंकारेश्वर में परियोजना अधिकारी शहरी विकास के नेतृत्व में जिले के चार उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के प्राचार्यों की ड्यूटी आने वाले यात्रियों के जूता चप्पल के संधारण में लगाई है.
आश्चर्य नहीं करना चाहिये कि शिक्षकों, प्राचार्यों से गैर शैक्षणिक कार्यों में गाय, भैंस, कुत्ते, बिल्ली गिनने, मुर्गा मुर्गी गिनने, नसबंदी के आपरेशन करवाने से लेकर जनगणना और चुनाव जैसे राष्ट्रीय महत्त्व के कामों में लगाया जाता है, इस कलेक्टर, खंडवा ने देश के इतिहास में पहली बार जूते चप्पल की व्यवस्था की जिम्मेदारी राजपत्रित अधिकारी यानि प्राचार्यों को दी है, पहले मुझे लगा था कि यह फर्जी आदेश होगा पर अभी यह लिखने के पहले वहाँ के जिम्मेदार अधिकारी से बात की - जिन्होंने कहा कि यह गलत छपा है, व्यवस्था में सहयोग करना कोई गुनाह नहीं है.
मेरा सवाल है कि शिक्षक और प्राचार्य की गरिमा और कितनी गिराएंगे, दूसरा सारे डिप्टी कलेक्टर क्या कर रहे है - वे भी तो फुर्सत में बैठे ही रहते है, या और विभाग के अधिकारी क्या करते रहते है.
कलेक्टर, खंडवा थोड़ा दिमाग इस्तेमाल करते तो स्काउट्स, गाईड, एनसीसी या एनएसएस के छात्रों की ड्यूटी लगा देते तो येकर्मठ बच्चे यह काम मजे से करते और उन्हें भीड़ समझने या प्रबंधन में भी सीखने को मिलता या ठेका देकर किसी बेरोजगार को काम दिलवा देते पंद्रह दिनों का, या मनरेगा के तहत ही कुछ लोगों को काम दिलवा देते पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी क्या नहीं कर सकते और उनका मानसिक दीवालियापन कितना है - यह मैंने 7 मई को ही लिखा था कि "प्रमोटी मुल्ला और नायब तहसीलदार से बना आयएएस ज्यादा बेलगाम और निरंकुश होता है".
यह बेहद शर्मनाक है और अब हमें श्रीलाल शुक्ल के राग दरबारी की उक्ति को भी बदलना होगा कि भारतीय शिक्षा सड़क पर पडी वो कुतिया है जिसे हर कोई लात मारकर गुजर जाता है. मै आज यह कहता हूँ कि "भारतीय शिक्षा समाज में पल रहा वह नासूर है जो किसी भारतीय प्रशासनिक सेवा के मानसिक विक्षप्त अधिकारी का समाज को दिया गया सबसे बड़ा सहयोग है"
मै गर्व से कहता हूँ कि मै एक शिक्षिका का बेटा हूँ, खुद शिक्षक और प्राचार्य लम्बे समय तक रहा हूँ, तीस साला नौकरी में मैंने दस साल सीधे शिक्षा में काम किया है, अगर मुझे कोई ऐसा आदेश देता तो नौकरी और इज्जत का मोह छोड़कर उस अधिकारी को सीधे गला पकड़कर सड़क पर जनता के बीच ले आता, और फिर बताता कि शिक्षक की गरिमा और ताकत क्या होती है, इस कलेक्टर के साथ ये चारों प्राचार्य भी लिजलिजे है और बेहद कमजोर अन्यथा मजाल कि कोई इतनी बेइज्जती कर दें. यही कारण है कि शिक्षा डिग्री और योग्यता कीऔकात इन जैसे लोगों ने दो कौड़ी बनाकर रख दी है.
एक ओर सिंहस्थ में उज्जैन में दुनिया भर के लोग आकर गुरुदीक्षा ले रहे है, प्रदेश के मुख्यमंत्री रोज गुरुओं के कैम्प में गुरुओं की चरण वन्दना कर उनके नखरे उठा रहे है, उसी सिंहस्थ के नाम पर यह कलेक्टर, खंडवा इतनी बेइज्जत करके छुट्टियों में प्राचार्यों को सरकारी ताकत का गुरुर दिखाकर और दुरुपयोग करके गरिमा को मिट्टी में मिला रहे है.
कितना और गिरोगे, अब कहिये एम पी अजब है, सबसे गजब है.
भारत माता की जय, यथा राजा - तथा अधिकारी
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ये है लुभावना विज्ञापन प्रधानमंत्री बीमा योजना का जिसमे न्यूनतम प्रीमियम देकर आपको दो दो लाख का बीमा दिया जा रहा है. पिछले वर्ष पूरे देश को बेवकूफ बनाकर किस जमाई की बीमा कंपनी को फायदा पहुंचाया यह आप मे से किसी को मालूम है क्या? बैंको ने थोक में लोगों के, बल्कि सभी ग्राहकों के फ़ार्म भरवाकर बीमे कर दिए, ना उसमे नामांकन था, ना प्राप्ति रसीद दी गयी, ना कोई बीमा की पालिसी दी गयी और ना प्रमाणपत्र.
अभी तीन चार दिन से ये फेंकू विज्ञापन फिर आ रहे है और मोबाईल पर प्रधानमंत्री के गुणगान गाते हुए मेसेज तो तीन दिन से बैंक के चक्कर लगा रहा हूँ कि पिछला हिसाब बताओ और प्रमाणपत्र और पालिसी दो, तो इस वर्ष की राशि दूंगा, बदमाशी इतनी है कि मेरे तीन बैंक में खाते है तीनों ने ये राशियाँ काट ली और अब तीनों बैंक गैर जिम्मेदार तरीके से कोई जवाब देने को तैयार नहीं है.
जब मैंने कहा कि मुझे इसमे नहीं रहना है मेरा पिछला कटा हुआ रुपया (जो भी हो, मेहनत का है) मय ब्याज के वापिस करो और इस योजना से मेरा नाम हटाओ, मुझे किसी फर्जी सरकारी योजना में नहीं रहना तो बैंक अधिकारियों ने स्पष्ट कहा कि हम खुद इसमे करवाकर फंस गए है, और हमारे पास अपने कोई रिकार्ड्स नहीं है. दूसरा कैसे आपको इस योजना से बाहर करें - हमें मालूम नहीं है. कस्टमर केयर से बात करने पर पहले तो गोलमोल जवाब दिया फिर आज जब मैंने एक बैंक की शाखा में बैठकर कडाई से बात की और बैंक के खिलाफ कोर्ट में जाने की धमकी दी और बात कही इस विज्ञापन के हवाले से और बैंक लोकपाल कार्यालय में शिकायत का कहा तो वहाँ से जवाब मिला कि आप एक सादे कागज़ पर आवेदन लिखकर दे दें और इसकी रसीद लेलें और एक निवेदन किया कि मै इस बात को ज्यादा ना फैलाऊं क्योकि हमारे काम और साख पर असर पड़ता है.
अब बताईये, रोज करोड़ों रुपयों देकर छपने वाले विज्ञापनों में कोई सम्पर्क पता नहीं दिया है, ना ही किसी अधिकारी या विभाग का नाम जहां जाकर रोना रोया जाए, और इस विज्ञापन के अंत में कहा गया है कि निकटस्थ बैंक से सम्पर्क करें और बैंक्स की हालत यह है कि वहाँ किसी को कुछ पता नहीं है. सरकारी बैंक में भी चीफ कहता है यार छोटी सी तो राशि है 12/ और 360/- दे दो ना क्या दिक्कत है !!!
सोचिये - कितना बड़ा गेम खेल गयी यह सरकार और अब फिर से 25 से 31 मई 2016 के बीच देश के करोड़ों लोगों को चुना लगाने का काम करेगी. मित्रों, एकबार जाकर अपने बैंक से प्रमाणपत्र, पालिसी और अपने आपको इन दोनों महाफर्जी योजनाओं से निकलने का रास्ता पूछिए - फिर आपको इस मोदी सरकार की नीयत और मंशा समझ आ जायेगी या पूछिए कि सरकार ने किस बीमा कम्पनी में यह रुपया लगाया है और उस जमाई ने बाजार में किन फंड्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर बांड्स में रुपया लगाया है, इसका सार्वजनिक आय-व्यय का लेखा-जोखा चार्टेड अकाउंटेंट द्वारा अभिप्रमाणित किस अखबार में या किस वेब साईट पर उपलब्ध है, हम देखना चाहते है कि हमारे रुपयों का मूल्य आज के जेटलीकृत गिरते बाजार में क्या है ?
क्या मीडिया का कोई अर्थ शास्त्र की थोड़ी बहुत अक्ल रखने वाला (वैसे असंभव है कि इस पर कोई स्टोरी करें - गहराई में जाकर, क्योकि समझ का ही तो टोटा है) काम करेगा और विश्लेषण प्रस्तुत करेगा 20 मई के पहले ताकि करोडो देशवासियों के रूपये बचाए जा सकें.
बोलो सिंहस्थ वाले महाकाल की जय !
बोलो भारत माता की जय !!
बोलो अबकि बार चुना सरकार !!!
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