31% बहुमत में NIA जैसी एजेंसी को गुलाम बना दिया , आईये पूरे देश की ग्राम पंचायतों से लेकर नगर निगमों, विधानसभाओं, लोकसभा और राज्यसभा में इन्हें जगह दे दो फिर देखों नंगा नाच इनका।
देश का जमीर जब मर जाता है और विद्वान् लोग इस फेसबुक जैसे माध्यम पर भी विरोध दर्ज नही करते, उस देश में कोई भी सुरक्षित नही और ना ही उस देश में अब कोई उम्मीद बाकि है।
बेहद शर्मनाक है गुजरात नरसंहार, हत्याओं का प्रणेता सत्तासीन पार्टी का अध्यक्ष हो जाता है, एक प्रधान हो जाता है देश को झांसे देकर, एक गुंडा टाइप शख्स एक शांतिप्रिय राज्य में चुनी हुई सरकार को गिराने का घटिया षड्यंत्र करके देश का समय और रुपया बर्बाद करता है, एक बलात्कारी मंत्री बना रहता है, 56 हत्याओं में शामिल शख्स राज्य का मुखिया हो जाता है, निर्दोष आदिवासियों को जड़ मूल सहित उखाड़ने वाला राज्य प्रमुख बना रहता है, नकली मिलावटी सामान बेचने वाला बाबा हो जाता है, उद्योगपति देश का रुपया लेकर जिम्मेदार मंत्री की शह पर देश से भाग जाता है, बाकि लोग पंत प्रधान के काँधे पर हाथ रखकर बैंकों से लोगों का रुपया हड़प लेते है, जन प्रतिनिधि के भेष में साधू सन्यासी उजबक टाइप बयान देते है, देश में न्याय से लेकर हर व्यवस्था बिकाऊ हो जाती है, क़ानून जेब में रखकर साठ सालों के सत्यानाश को सुधारने आये थे ना आप तो फिर दो साल में ही गुंडों, मवालियों और हत्यारों को छोड़ना शुरू कर दिया !!!
जिस समाज में लोग चुप रहकर रचनात्मक होने और समालोचना के बजाय नपुंसक शिखण्डी का रोल निभाने लगते है, जिस समाज में चौथा स्तम्भ के लोग नोकरी बचाने, मालिकों की हड्डियां चूसने और सत्ता से अवैध सम्बन्ध बनाकर अपने साम्राज्य खड़े करने लगते है, न्यायाधीश सार्वजनिक रूप से टसुये बहाते हो और पुलिस कुत्तों के माफिक सत्ता के आगे हाथ बांधे लार टपकाती हो वहाँ ब्यूरोक्रेसी से उम्मीद करना बेकार है जिनकी रीढ़ ही नही है !!!
भारत के इतिहास में ये सबसे काला दौर है जहाँ घुप्प अँधेरे के सिवा कुछ नजर नही आता और इसके परिणाम हमे नही आने वाली आपकी संततियों को भुगतना पड़ेगा, जब वे पढ़ लिखकर इस देश से बगावत करके किसी और देश में बस जाएंगे।
सूखे, किसान आत्महत्या से लेकर बच्चों के कुपोषण और महिला हिंसा पर ठोस काम करने के बजाय राज्य और सत्ता सिंहस्थ जैसे आयोजनों में जनता का रुपया बर्बाद करें, चांदी के बर्तनों में भोजन करें और करोड़ों रूपये पांडाल बनाने में उजाड़ दें वहाँ अगर आप बदलाव और विकास की उम्मीद कर रहे हो या न्याय की उम्मीद उस देश में कर रहे हो जहां सत्ता बदलते ही NIA दो साल सिर्फ एक मुख्य आरोपी को निर्दोष साबित करने में लगा दें वहाँ आप सांस लेने की भी उम्मीद कर रहे है तो आपको कोई नही समझा सकता, मुआफ़ कीजिये ये हिन्दू राष्ट्र आपको ही मुबारक हो
जैसे अमित शाह और साध्वी प्रज्ञा के दिन फिरें और अच्छे दिन इनकी जिंदगी में आएं वैसे सबके दिन फिरें।
परम पिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि मोदी सरकार शत शत जियें और खूब फलें फूलें ।
अम्बानी, अडानी, माल्या, नित्यानंद, रामदेव, निहालचंद्र, प्रज्ञा से लेकर तमाम गोल्डन और सिल्वर बाबा और जीवराज, अमन सिंह जसुन्धरा सब पापों से मुक्त हो न्याय के दण्ड से आजाद रहें और देश में खुशहाली रामराज्य सी बनी रहें।
आमीन !!!
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ना नितीश कुछ सकते है ना मोदी, जब तक लोग खुद आगे आकर कुछ नही करेंगे तब तक पत्रकार भी मरते रहेंगे, किसान भी आत्महत्या करते रहेंगे और न्याय भी बिकता रहेगा ।
शिक्षा को नए ढंग से क्रांतिकारिता के संदर्भ में परिभाषित करना होगा और अब लोगों को व्यवस्था के खिलाफ खुले रूप में सामने आना होगा और जरूरत पडी तो हथियार भी उठाने होंगे।
इन चुने हुए प्रतिनिधियों से कुछ नही हो सकता साठ सालों में उनको और दो सालों में इनको और नितीश बाबू को भी देख लिया, अब अगर हमने कुछ नही किया तो निशाने पर आप, हम और मैं तो रहूंगा ही !
आईये हाथ उठाये हम भी !!!
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चकमक का मई 16 का अंक कल मिला। एक ही सांस में आज सुबह पढ़ गया। प्रियम्वद की कहानी मुन्ना बुनाईवाले पढ़कर लगा कि हिंदी कहानी में अभी वो क्षमता है जो बहुत बारीक संवेदनाओं को बुनती है और इंसान बनाने का और इंसानियत का ज़ज्बा कायम रखती है। "किसी हूनर का खत्म होना इंसानों की बहुत बड़ी हार होगी" उफ़, यकीन मानिए जिस तरह से चर्च में मुन्ना बुनाईवाले का चरित्र प्रियम्वद ने उभारा और उसके इंतकाल के बाद बेटे का अपने आपको एक हूनर ज़िंदा रखने के लिए नाम भी वालिद का रख लेना शायद संसार के इतिहास में बिरला ही उदाहरण होगा। ये छोटी सी कहानी पढ़कर दो घण्टे लगभग बेसुध रहा और इसके दृश्य चलते रहे और सोचता रहा कैसे हमने बेंत बुनने वालो से लेकर जिल्द चढ़ाने वाले या रजाई गादी बनाने वाले हूनर खत्म कर दिए। बहुत सरल भाषा में बुनी यह कहानी मुझे अंत में रुला गयी, इसका खुमार शायद कई साल ना उतरें ।
सुशील शुक्ल छोटे से संस्मरण कन्छेदी में कहते है "वह सच एक मरी मख्खी की तरह मेरी जिंदगी में आज भी पड़ा है" ।
अपने आप में बेजोड़ और दिनों दिन निखरती जा रही चकमक को संवारने में Sushil Kumar Shukla Shashi Sablok का बड़ा हाथ है ।
कम से कम एक साल सबको जरूर पढ़ना चाहिए चकमक उसके बाद आपको कहने की जरूरत नही होगी। सन 1987 से जो आदत लगी है वह छुटती नही और मैं इसका आजीवन सदस्य हूँ ।
यदि आप चाहे तो भाई Manoj Nigam से संपर्क कर सकते है। एक जमाने में जैसे धर्मयुग हर घर में पढ़ा जाता था, मुझे लगता है ज्ञान, विविधता, जानकारी और रोचकता के स्तर पर चकमक से श्रेष्ठ पत्रिका आज कोई नही है यह सिर्फ चकमक का विज्ञापन नही पर जो खुलापन और अपनत्व आपको वहाँ मिलेगा वह दीगर पत्रिकाओं में अब दुर्लभ है।
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