उज्जैन गया था, भीड़ तो जरुर थी पर अब वह जोश नहीं दिखा, साधू संत और कर्मचारी सब थक गए है इसलिए गन्दगी और कूड़े कचरे ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है, सफाई कर्मचारी घाट का कचरा सोरकर नदी में ही झोंक रहे है. पुलिस के जवान भी थके है. जाहिर है सब इंसान है और कितना करेंगे भीड़, धर्म और आस्था के नाम पर, इन पर अब दया आने लगी है.
आज उज्जैन में मुझे सबसे ज्यादा दुःख पुलिस को देखकर ही हुआ, उनकी आँखे लाल थी, नींद ना आने से, रात 12 बजे मुश्किल से ठंडा खाना खा रहे है, सोने की कोई व्यवस्था नहीं है, नहाने को समय नहीं है, लोगों ने उन्हें पागल कर रखा है, कुछ गलीज कमीने लोग वाहन में धक्का भी लगवा लेते है, सामान उठवा रहे है जवानों से अरे जब उठता नहीं तो घर से पूरे जिले का लगेज लेकर क्यों आये? और गालियाँ अलग खानी पड़ती है. बेचारे नई उम्र के अधिकाँश बच्चे / युवा एकदम गल गए है इस गर्मी में , शरीर बेधम हो गया है और ऊपर से निकम्मे साधूओं के नखरे .......उफ़ बहुत बुरी हालत है, सबसे ज्यादा मेहनत और सबसे ज्यदा दुःख पुलिस को, अगर आज व्यवस्थाएं माकूल है और सिंहस्थ सफल है तो इसका सफल होने का पूरा श्रेय पुलिस को जाता है.
इन सबकी मेहनत को सौ सौ सलाम और प्रणाम
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उज्जैन में कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से बातचीत हुए और उन्होंने उदाहरण सहित बताया कि कैसे शोचालय से लेकर खान नदी के डायवर्शन में ढाई मीटर के पाईप डालने से लेकर बड़े कामों में भ्रष्टाचार हुआ और उनका यह मानना था कि प्रशासन से कम से कम एक हजार करोड़ का घपला किया है और नगद रुपया खाया है. सरकार ने जिस अंदाज में संतों को खासकरके सवर्ण संतों को रुपया बाँट कर अपना अजेंडा और थोबड़ा दिखाया है जनता को वो अकल्पनीय है. जिस तादाद में भंडारे खिलाये गए है वो रुपया सन्यासियों और साधुओं के पास कहाँ से आया, और उनके आलीशान पांडाल, उपर से विज्ञापनों के जरिये घर घर से पकड़कर लाये गये लोग.........उफ़ .
लोगों ने कहा कि पिछले अस्सी सालों में ऐसा जलसा नहीं देखा धर्म और पाखण्ड के नाम पर, शिवराज जी ने बार बार आकर जहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराई वही उनकी श्रीमती जी ने बोरा भरकर समेटने में कोई कसर नहीं छोडी, ऊपर से वैचारिक कुम्भ का एक नया तमाशा खडा करके देश को उल्लू बनाया.
सिंहस्थ में मीडिया के कुछ लोगों को अपनी छबि बनाने के लिए भयानक उपकृत किया और इसमे कुछ चैनल्स के पत्रकारों ने भी सात पीढ़ियों का धन धान्य भर लिया जिन्हें अठारह बीस हजार से ज्यादा नहीं मिलते उन्होंने LCD Projector से लेकर चार पहिया वाहन किराए पर चलाये और माल वसूला. बेहद शर्मनाक ढंग से गलीज होकर इन पत्रकारों और कुछ पत्रकारिता के सिद्धहस्त गुरुओं ने भी हद से ज्यादा गिरकर अपनी औकात गिरा ली पर रुपया जरुर बना लिया, एक छापा इनके घरों में भी पड़ना चाहिए कि कैसे ये लोग चार से पांच शहरों में संपत्ति बनाकर बैठे है, और इस सबमे सिंहस्थ, मुख्यमंत्री से व्यक्तिगत समबन्ध क्या भूमिका अदा करते है ?
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