गत पच्चीस वर्षों की शासकीय सेवा में गुलामी उनके तन मन में बस गयी थी जिले के सबसे बड़े अधिकारी होने के बाद भी उन्हें प्रश्न समझ नहीं आते थे या तो वे मुर्ख थे या बनते थे ताकि काम से मक्कारी आकर सके, अपने से युवा अधिकारियों से गालिया खाना उनकी किस्मत में बदा था और फ़िर वो गर्व से कहते ऐसे कई कलेक्टर हमने निकाल दिए है क्या करेगा ज्यादा से ज्यादा निलंबित, बस मुझे आज पता चला कि रिश्वत के रूपयों ने उनकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी है -शर्मनाक(फेसबुक मेंनिया)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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