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आखिरी दिनों में पिता

आखिरी दिनों में बिना आँखों के भी

जिंदगी को पढ़ -समझ लेते थे

कापते हाथो से भी बताई जगह पर

हस्ताक्षर कर देते थे

छुट्टी की अर्जी

मेडिकल के बिल

बैंक का लोन

ज्वाइंट अकाउंट का फ़ार्म

आखिरी दिनों में पिता की

आँखें काम नहीं कर पाती थी

में, माँ भाई उन्हें देखते थे

और पिता देखते थे हमारी आँखों में आशा, जीवन, उत्साह

अस्पताल के कठिन जांच प्रक्रिया

लेसर की तेज किरणे

पर आँखों का अन्धेरा गहराता गया

पिता

तुम आखिरी दिनों में कितना ध्यान रखते थे हमारा

स्कूल से आने पर पदचाप पहचान लेते थे

हमारे साथ बैठकर रोटी खाते

और हाथों से टटोलकर हमें

परोसते

माँ के आंसू की गंध पहचानकर

डपट देते थे माँ को

पिता का होना हमारे लिए आकाश के मानिंद था

ऐसा आकाश जिसके तले

हम अपने सुख दुःख

ख्वाब, उमंगें

उत्साह और साहस

भय और पीड़ा

भावनाए और संकोच

रखकर निश्चित होकर

सो जाते थे

पिता हर समय माँ से हमारे बारे में ही बाते करते थे

हमारी पढाई, हिम्मत

तितली पकडना

पतंग उड़ाना

कंचे खेलना

बोझिल किताबे

टयुशन और परीक्षाए

नौकरी और शादी

माँ कुछ भी नहीं कहती

तिल-तिल मरता देख रही थी

घर से अस्पताल

अस्पताल से प्रयोगशाला

प्रयोगशाला से घर

एक दिन रात के गहरे अँधेरे में

आँगन की दीवार को

पकड़ कर खड़े हो गए

पिता की ज्योति लौट रही थी

हड्बड़ाहट सुनकर

माँ जाग गयी थी

एक लंबी उल्टी करके गिर गए थे

पिता

माँ कहती थी

आखिरी समय में

नेत्र ज्योति लौट आई थी

पिता तुमने कातर

निगाहों से माँ को देखा था

माँ के पास हममे से किसी को

ना पाकर तुम्हारी आँखों से

दो आंसू भी गिरे थे

लेसर की किरणे

मानो उस अंधेरी रात में

आँखों में चमक रही थी

जिंदगी भर आंसू पोछने वाला आदमी

उम्र के बावनवे साल में आंसू बहा रहा था

लोग कहते है वो खुशी के

आंसू थे- ज्योति लौट आने के

में कुछ भी नहीं कहता

क्योकि बाद में मैंने ही तो

आँखे बंद करके रूई के फोहे

रखे थे

पिता - तुम सचमुच हमें ज्योति दे गए .........





Comments

Vishal said…
Dada rulaoge kya.........kitni marmsparshi kavita hai........

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