एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते है लोग
बस ऐसा ही कुछ था वो जब में मिला था उससे हर बार वो एक नए चेहरे के साथ मिलता और उसकी विचारधारा भी कुछ ऐसी ही थी, अपनी दूकान खोलने के लिए उसने क्या क्या नहीं किया बस सिर्फ अपना धर्म जाती नहीं क्योकि वो ऊँची जाति से था है आज वो एक बड़ा समाजसेवी और प्रदेश का निर्णायक, हर बैठक में दिख जाएगा खीसे निपोरता हुआ और बिना रीढ़ की हड्डी के साथा(एनजीओ पुराण ९६)
बस ऐसा ही कुछ था वो जब में मिला था उससे हर बार वो एक नए चेहरे के साथ मिलता और उसकी विचारधारा भी कुछ ऐसी ही थी, अपनी दूकान खोलने के लिए उसने क्या क्या नहीं किया बस सिर्फ अपना धर्म जाती नहीं क्योकि वो ऊँची जाति से था है आज वो एक बड़ा समाजसेवी और प्रदेश का निर्णायक, हर बैठक में दिख जाएगा खीसे निपोरता हुआ और बिना रीढ़ की हड्डी के साथा(एनजीओ पुराण ९६)
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