लगता है पूरा देश एक रंगमंच बन गया है और सब लोग कलाकारी कर रहे है प्रजा, प्रधानमंत्री, मीडिया, एनजीओ, मुख्यमंत्री, उद्योगपति, अफसर, बाबा और समाजसेवी, सब साले रंगे सियार है और में भी इस भीड़ में शामिल एक आदमी हूँ जो मजमे में जाता हूँ ताली पीट कर घर लौट आता हूँ और एक सपना देखता हूँ कि देश सब प्रपंचो से मुक्त हो गया है सुबह फ़िर पानी, गेस और सड़क की किल्लत ..अब तो हर तरह के बदलाव से डर लगता है नेताओं से, बाबाओं से, मीडिया से, अफसरों से, पड़ोसी से, एनजीओ से, गांव वालो से, शहर वालो से, युवाओं से, बूढों से, बच्चो से, और यहाँ तक कि अपने आप से भी डर लग रहा है .
पता नहीं ऊंट किस करवट बैठेगा..........और बदलाव की बयार क्या गुल खिलायेगी........???
पता नहीं ऊंट किस करवट बैठेगा..........और बदलाव की बयार क्या गुल खिलायेगी........???
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