Skip to main content

रंग बिरंगे अलबम

घर छोडकर शहर आते हुए

जरूरी सामान के साथ रख लेते है

अपनी यादे, अतीत और जड़ो से जुड़े होने के एहसास

छोटे से कमरे में नीम अँधेरे के साथ

या कि खूब बदी सी हवादार बैठक में

या लाकर वाले बड़ी सी अलमारी में

रख देते है रंग बिरंगे अलबम

काम से लौटकर अवसाद के क्षणों में

दर्द भरे विरोधाभास और तनावों में

जीवन मूल्यों और संवेदनाओं को आहत होते देख

खोल देते है हम रंग बिरंगे अलबम

परिचित- अपरिचित के सामने

बिखेर देते है तस्वीरो का पुलिंदा

हर तस्वीर के साथ जुडी स्मृतिया

यकायक भावो, शब्दों और टींस के

साथ निकल पडती है

कमरे में बिखर जाती है माँ

पिता, चचेरे ममेरे भाई- बहन

जिंदगी के विभिन्न सोपानो पर बने दोस्त

साथ में पढ़ी हुई लडकिया

जीवंत हो उठते है सब

कमरे के फर्श पर अवतरित होने लगते है सब

जयपुर, सूरत, गौहाटी, त्रिवेंदृम,

बद्री, केदार, रामेश्वरम और वैष्णो देवी

ताज महल, कुतुबमीनार और लाल किले

के साथ खिचाईतस्वीरो के साथ खीज

उठती है अजंता एलोरा ना देख पाने की

खेत कूए और बड़े से दालान वाला घर

तस्वीरो में देखकर लगता है यह

कमरा कितनी छोटी और ओछी कर देगा

जिंदगी को ?

दर्द भरी मुस्कराहट होठो पर आकार गुम हो जाती है

बोलते रहते है हम

परिचितों अपरिचितो के सामने

कभी एकालाप करते है मन्नू की तस्वीर

देखकर कि क्यों नहीं लिखता बंबई से चिठ्ठी ?

रंग बिरंगे अलबम स्मृतयो की गुफा से ढूंढ लाते है

घटनाये, प्रसंग, रिश्तों की व्याख्या, दोस्ती की परिभाषा

आँखों की पोर से जब रिस जाते है आंसू

कमरे में छा जाती है नमी

आवाजो का शोर घुमडने लगता है तो

अलबम रंग बिरंगे नहीं रह जाते

धुल जाते है नमी से

कठोर हाथो की उंगलियों से स्पर्श पाते है मीठा

सन्नाटा छा जाता है कमरे में

माँ-पिता के प्रश्न, दोस्तों से किये वादे

खेत, गांव, घर को दिए गए उत्तर

सब उलझ जाता है आपस में

अलबम कब बंद हो जाता है पता नहीं चलता

देखने, सुनने , समझने और महसूसने के बाद

मौन सबसे बड़ी भाषा है जैसा दर्शन उभरता है

वास्तव में अल्बम का रोज खुलना बंद होना

जिंदगी, मौन, भाषा और दर्शन को समझने के लिए

जरूरी है

अलबम का रंग बिरंगी होना

हर जरूरी सामान के साथ होना

बहुत जरूरी है.......

( अपने उन सभी दोस्तों, रिश्तेदारों, भाईयो, बेटो और माँ पिताजी को समर्पित जो आज भी मेरे साथ मेरे रंग बिरंगे अलबम में है )

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही