|| तू साधन कर लें रक्षा के - पंख लगाकर शिक्षा के ||
आपको उच्च शिक्षा के अंतिम संस्कार में शामिल होना है, कांधे को अर्थी देना हो तो एकाध कोर्स कर लीजिए - आपको सब समझ आएगा, मसलन
◆ पाठ्यक्रम जिसका सदियों से बदलाव नही हुआ है - लॉ में सोलहवीं शताब्दी के इंग्लैंड के उदाहरण भरे पड़े है कि स्मिथ का घोड़ा पेड़ से टकरा गया, या मृत्यु पर मुआवजा एक हजार देना होगा या संविदा के लिए फलाना सक्षम है, आईपीसी या सीआरपीसी से लेकर तमाम कानूनों का ना कोई रखवाला है ना देखभाल करने वाला, विश्व विद्यालयों में अभी भी किसी मे साहस नही कि हिंदी, फिजिक्स, इतिहास, गणित या स्पेस टेक्नॉलॉजी के पाठ्यक्रम से छेड़छाड़ कर कुछ आधुनिक समय के हिसाब से बदलाव कर दें और यह नैतिकता की बात है इस पर जब तक हमारे कुलीन प्राध्यापक समझ नही बनाएंगे तब तक पाठ्यक्रम का यही तियाँ पाँचा होता रहेगा
◆ महाविद्यालयों से लेकर विवि के पुस्तकालयों में 57 - 67 - 77- 87- 97 की किताबें पड़ी धूल खा रही है जबकि गंगा में इतना पानी बह चुका है कि कल्पना नही की जा सकती, न किताबों का बजट है ना पत्रिकाओं या शोध जर्नल्स के लिए रुपया है जिसके अभाव में परीक्षा बोध से लेकर 20 क्वेशन्स की बाजार में भरमार है जो दो तीन घण्टे की पढ़ाई अर्थात नकल में आपको सिविल इंजीनियरिंग , अंग्रेजी में एमए, भूगोल में एमफिल या एमबीबीएस तक करवा देते हैं - इसमें टेक्स्ट बुक्स का औचित्य ही समाप्त हो गया है
◆ महाविद्यालयों से लेकर विवि में बारहो मास निर्माण, रिनोवेशन चलते रहते है पर अंत में छात्रों को ना पढ़ने के लिए कमरे है ना गतिविधियों के लिये तो ये निर्माण कार्य किस काम के - ना लैब्स है ना खेल के मैदान और ना पुस्तकालय तो फिर क्या करें कहां जाएं छात्र या प्राध्यापक, देवास जैसे जिला मुख्यालय पर लीड लिखूँ या लीद कालेज में तमाम स्वच्छता अभियान के दावों के बावजूद भी ढंग के शौचालय नही और छात्राओं के लिए और लड़कियों की बात तो छोड़ ही दीजिये - कोई एक बार स्टाफ रूम ही देख लें तो सिर पीट लें
◆ महाविद्यालय में सब काम ऑनलाइन होने लगा पर कक्षाओं में ना डिजिटल व्यवस्था है ना वाईफाई और ऑनलाइन पढाने वाले जेब से दो जीबी डेटा इस्तेमाल करके परेशान है सारे सीसीटीवी कैमरे बन्द पड़े है , फर्नीचर प्राथमिक स्कूल से गया बीता है, पुस्तकालय भी डिजिटल नही आज भी पुस्तकों के आवक जावक की एंट्री मैन्युअली हो रही है पर बोलेगा कौन
◆ परीक्षा मतलब सामूहिक नकल का समुद्र जिसमे से मंथन करके प्राध्यापकों को विष पीना है और गधे घोड़ो को % रूपी अमृत, मैंने भी नकल की और लॉ में 60 % लिए हालांकि यह शासन ने ही कहा था कि बेटा घर बैठो और नकल करके कॉपी भरो और जमा कर दो, विवि चूंकि फीस लेता है तो किसी को भी फेल करने का नैतिक साहस नही उनमे और कर भी देंगे तो बाबू या कम्प्यूटर आपरेटर को सेट करके अंक बढ़वा लें आप पुनर्मूल्यांकन में
◆ ढेरों परते है शिक्षा के वीभत्स रूप की, अकादमिक स्टाफ कॉलेज मर गए है उनमें रिफ्रेशर के लिए वही जाते है जिन्हें बड़े शहर में मेडिकल जांच करवानी है, सम्बन्ध गाँठना है, साड़ियों की शॉपिंग करना है, विभाग के ब्यूरोक्रेट्स के तलुए चाटना है, ट्रांसफर की जुगत भिड़ानी है या साथियों के साथ 15 दिन दारू मुर्गा पार्टी करना है
◆ शोध से लेकर लिखने पढ़ने का कोई माहौल ही नही है, ना कोई पढ़ना चाहता है ना लिखना कॉलेजेस की वार्षिक स्मारिका ही नही छपती तो बाकी छोड़ ही दीजिये पीएचडी की डिग्री अब विशुद्ध चाटुकारिता, दलाली और निंदा पुराण से मिलती है - छात्र पढ़ने - समझने के बजाय अपने गाइड के साथ "स्पैम" की तरह अटैच रहते है और उनके हर हगे मूते को फेसबुक पर उल्टी करके आपस मे होड़ लेते रहते है, इन प्राध्यापकों को स्वयं कड़ा मन करके पहल करते हुए अपनी बकवास, फोटो या कविता - कहानी - समीक्षा - आलोचना छर्रों से शेयर करने को रोकना चाहिये और यह उन्ही के हित में है, सोशल मीडिया पर अब जिस तरह से ये प्राध्यापक लोग उघड़ गए है - उससे उनका सम्मान खत्म हो गया है, नए बच्चे कहते है "कल नत्थूलाल की पोस्ट देखी - साला डीयू में प्रोफेसर है उसकी छमिया भी साथ थी, या रामलाल घटिया कविता लिखता है पर साला एचओडी है क्या करें झेलना पड़ता है, या डॉक्टर चम्पाकली आजकल अपने ही छात्र से फंसी है या प्रोफेसर यक्षणी क्या माल है उसको एक बार निपटाने की इच्छा है मौका तो मिलें " - यकीन ना हो तो घूम लीजिये दुनिया और सुन लीजिये इन एकलव्यों को जिनका अंगूठा आप दबाकर बैठे है
◆ अपनी इज्जत अपने हाथ, बहरहाल उच्च शिक्षा पर लिखना मतलब काजल की कोठरी में हाथ डालना है जहाँ से आप बचकर नही आएंगे और अपना ही मुंह काला करके लौटेंगे
◆ स्कालरशिप अलग पंगा है जिनको चाहिये वे पात्रता में नही पर जो बुलेट पर घूमते है, सौ बीघा जमीन वाले है वे ₹ 16,000/- मिलने पर मजे करते है, अभी एलएलएम में नाम आने पर कई मेघावी लड़कियाँ नही पढ़ पाएंगी - क्योंकि स्कालरशिप नही मिलती दूसरी बार प्रोफेशनल कोर्स करने पर और मामा कहता है मेरी जयकार करो
◆ विभाग के प्रमुख सचिव या कमिश्नर को कल मछली या खनिज विभाग सम्हालना है या मुख्य मंत्री के संडास की व्यवस्था देखनी है, प्रधानमंत्री आएगा तो हेलीपेड पर डामरीकरण कराना है - इसलिये वो कुछ नही करेंगे , विभागीय मंत्री तो है ही कुपढ - उससे क्या आशा - बचा समाज तो वो डरता है क्योंकि उसे ये दुष्चक्र मालूम नही
आप को कुछ कहना है, क्या हिम्मत है, अपने ही बच्चों को पूछ लीजिये या उनकी टेक्स्ट बुक्स कहाँ है पता कीजिये - यदि नही तो घण्टा बजाइये, थाल बजाइये और जय जय सियाराम करिये
हरि अनंत - हरि कथा अनंता
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