पुस्तक मेला आते ही लेखकों की आत्म मुग्धता बढ़ते जा रही है - मेरे विचार, मेरी कविता, मेरी कहानी, मेरी बीबी, मेरे बच्चे, मेरी नौकरी, मेरे कुत्ते, मेरी ईमानदारी, मेरी विदेश यात्राएँ, मेरी तारीफ़, मेरे दोस्त, मेरी कार, मेरे रिश्ते, मेरे अनुयायी, मैं - मैं और मैं
बेहद शर्मनाक माहौल हो गया है, उम्मीद न रखें कि आपके इस मैं - मैं - मैं पर मैं कोई लाईक या कमेंट करूँगा, शेयर करूँगा या लिखूँगा - लिखना, पढ़ना, छपना और छापना, बेचना और नौकरी करना - आपके पेशे के हिस्सा है, इसे इतना महिमा मंडित मत कीजिये कि कै आने लगे ; पढ़ - लिखकर, पढ़कर या नौकरी करके किसी पर एहसान नही कर रहें - अपना पेट पाल रहें है या अपने बीबी - बच्चे ही पाल रहें है, और अगर यह भी समस्या है तो वो आपकी है मेरी या किसी पाठक की नही, अब जो भी करें वो बेईमानी से करें या ईमानदारी से - मुझे या किसी को कोई चवन्नी नही दे रहें कमाई से
अला - फलाँ कविता या किताब या पत्रिका पर आपकी क्या राय है - पेलते रहिये वो आपका निजी मामला है, घण्टा फर्क नही पड़ रहा किसी को आपके घटिया विचारों से, जब तुर्रे खाँ मिट गए तो तुम क्या हो बै, पर इनबॉक्स में घुसकर जबरन उस पर लाइक या कमेंट या शेयर करने का दबाव मत बनाईये - ना अपने स्टॉल के नम्बर भेजिए , ना आने वाली किताबों की कचरा जानकारियां
और जिन्हें फालतू का ज्ञान देना है वे निकल लें - मेरी भीत पर ना आये और ना पढ़ें, आलमारी से किताबें बेचकर सब्जी भाजी खाऊँ यह ज्ञान देने के बजाय अपने गिरेबाँ में झाँके एक बार
जय राम जी की
#खरी_खरी
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