सब इंस्पेक्टर से पुलिस में भर्ती हुए थे, धीरे धीरे जैसे नायब तहसीलदार एक दिन कलेक्टर बन जाता है वैसे ही एसआई भी ठीक ठाक कमाई करके बांटता रहें और गीत, ग़ज़ल, कहानी, कविता लिखता रहें तो एक दिन डीजीपी भी बन सकता है, साहब तो डीआईजी तक आ ही गए है
जैसे जैसे रिटायर्डमेन्ट करीब आता है - साहब का "शाहित्य पैरेम" बढ़ते जाता है, अपने कस्बे में लौट - लौट आते है और गोष्ठियों से लेकर झुग्गियों में सेवफल बांटने तक का काम कर अस्थानीय अखबारों में पापुलर होने लगते है ताकि रिटायर्ड हो तो घर, मुहल्ले और कस्बे में बोई इज्जत बनी रहें - जो पुलिस मुख्यालय में जबरदस्ती बनी रहती है मल्लब जिधर से कुत्ते लेकर घूमने निकले तो लोग सलाम ठोंके
साब को बसपन का पियार भी याद आता है, दोस्त भी और वो भी चाचा - बाबा जिनकी "सायकिल की जब्ती तो करबा ही सकते थे जब एसआई थे - मजाल कि किसी की मदद की या धार्मिक पिच्चर के फ्री टिकिट दिलवाएं हो किसी को, पर अब दोस्त भी बाइक पर है और साहब की औलादों ने भी पज़ेरो पर कब्जा कर रखा है"
रिटायर्ड होने के बाद शहर में दो चार संस्थाओं में सम्मान हो जाये, इसलिए थानेदार को अभी से हड़का रखा है और कह रखा है मनपसन्द जगह पोस्टिंग करवा दूँगा मियाँ - बीबी दोनों की, बस आयोजन झकास हो जाये, हार - फूल की कमी ना हो और कस्बे के सारे लोग और कोतवाली के सब ठोले परिवार सहित सादी वर्दी में आए जाये और मेरे हर मिसरे पर जमकर तालियां बजे, जिला कप्तान फ्रेश आयपीएस है, ससुरा आएगा नही यह पक्का है
नई कटी कॉलोनी में 5 प्लाट को इकठ्ठा करके एक गरीबखाना अर्थात बंगला बन गया है जिसमें कविता, चर्चा और गोष्ठी के लिए एक बढ़िया हाल भी बना है और ठीक हाल के पीछे सातों कुत्तों का बड़ा सा कमरा है ताकि सब सुविधाएं उपलब्ध रहें, पेड़ भी लगें है - "मुक्तिभोद से लेकर सुबदरा चौहान के नाम " तक के ट्री गार्ड लगाकर, अपना तखल्लुस तक साहब ने "वर्तुल" रख लिया है इधर
साहब तो साहब है , बस एकदम शुरू से आयपीएस बन जाते और साला घुटनों के बीच गेप थोड़ा कम होता और बस एकाध इंच ऊंचाई ज्यादा होती तो बाप को उस समय पचास हजार नही देने पड़ते, ख़ैर, अब नर्मदा किनारे होशांग शाह पर लिखी ग़ज़्ज़लों का संग्रह सबसे पेले आएगा , बस और 31 मार्च तक यह राजधानी का पिरेम, डीबी मॉल, बड़ी झील का ठहरा पानी, पुलिस मुख्यालय और यह चमक - दमक, फिर तो बस शाहित्य सेवा और कुछ नही
[होशंगाबाद की यादें ]
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