Skip to main content

Kuchh Rang Pyar ke - Post of 25 Oct 2021

सब इंस्पेक्टर से पुलिस में भर्ती हुए थे, धीरे धीरे जैसे नायब तहसीलदार एक दिन कलेक्टर बन जाता है वैसे ही एसआई भी ठीक ठाक कमाई करके बांटता रहें और गीत, ग़ज़ल, कहानी, कविता लिखता रहें तो एक दिन डीजीपी भी बन सकता है, साहब तो डीआईजी तक आ ही गए है

जैसे जैसे रिटायर्डमेन्ट करीब आता है - साहब का "शाहित्य पैरेम" बढ़ते जाता है, अपने कस्बे में लौट - लौट आते है और गोष्ठियों से लेकर झुग्गियों में सेवफल बांटने तक का काम कर अस्थानीय अखबारों में पापुलर होने लगते है ताकि रिटायर्ड हो तो घर, मुहल्ले और कस्बे में बोई इज्जत बनी रहें - जो पुलिस मुख्यालय में जबरदस्ती बनी रहती है मल्लब जिधर से कुत्ते लेकर घूमने निकले तो लोग सलाम ठोंके
साब को बसपन का पियार भी याद आता है, दोस्त भी और वो भी चाचा - बाबा जिनकी "सायकिल की जब्ती तो करबा ही सकते थे जब एसआई थे - मजाल कि किसी की मदद की या धार्मिक पिच्चर के फ्री टिकिट दिलवाएं हो किसी को, पर अब दोस्त भी बाइक पर है और साहब की औलादों ने भी पज़ेरो पर कब्जा कर रखा है"
रिटायर्ड होने के बाद शहर में दो चार संस्थाओं में सम्मान हो जाये, इसलिए थानेदार को अभी से हड़का रखा है और कह रखा है मनपसन्द जगह पोस्टिंग करवा दूँगा मियाँ - बीबी दोनों की, बस आयोजन झकास हो जाये, हार - फूल की कमी ना हो और कस्बे के सारे लोग और कोतवाली के सब ठोले परिवार सहित सादी वर्दी में आए जाये और मेरे हर मिसरे पर जमकर तालियां बजे, जिला कप्तान फ्रेश आयपीएस है, ससुरा आएगा नही यह पक्का है
नई कटी कॉलोनी में 5 प्लाट को इकठ्ठा करके एक गरीबखाना अर्थात बंगला बन गया है जिसमें कविता, चर्चा और गोष्ठी के लिए एक बढ़िया हाल भी बना है और ठीक हाल के पीछे सातों कुत्तों का बड़ा सा कमरा है ताकि सब सुविधाएं उपलब्ध रहें, पेड़ भी लगें है - "मुक्तिभोद से लेकर सुबदरा चौहान के नाम " तक के ट्री गार्ड लगाकर, अपना तखल्लुस तक साहब ने "वर्तुल" रख लिया है इधर
साहब तो साहब है , बस एकदम शुरू से आयपीएस बन जाते और साला घुटनों के बीच गेप थोड़ा कम होता और बस एकाध इंच ऊंचाई ज्यादा होती तो बाप को उस समय पचास हजार नही देने पड़ते, ख़ैर, अब नर्मदा किनारे होशांग शाह पर लिखी ग़ज़्ज़लों का संग्रह सबसे पेले आएगा , बस और 31 मार्च तक यह राजधानी का पिरेम, डीबी मॉल, बड़ी झील का ठहरा पानी, पुलिस मुख्यालय और यह चमक - दमक, फिर तो बस शाहित्य सेवा और कुछ नही
[होशंगाबाद की यादें ]

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...