Skip to main content

Kuchh Rang Pyar ke - Yash and Sarthak in Dewas , Post of 19 Oct 2021


यश फफूनकर और सार्थक सँगमनेरकर मेरे भान्जे है, दोनो युवा है और बीई कर रहें है, पर यह परिचय अधूरा है दोनो संगीत के सिद्धहस्त खिलाड़ी है गायन और वादन दोनो शैली के युवा उस्ताद है

आज देवास में कोजागिरी पौर्णिमा के अवसर पर एक निजी महफ़िल में आये और अपने युवा मित्रों के साथ ढाई तीन घण्टों की अदभुत प्रस्तुति दी, इनके साथ थे बेहद प्रतिभाशाली गायक तन्मय बोबड़े, वेदांत लकरस, डॉक्टर सलोनी शर्मा और अन्य दो तीन मित्र
यश और सार्थक की माँये भी सगी बहनें है पर इन दोनो में जो सामंजस्य है - यानी यश और सार्थक में, और आपसी समझ है वह गहरी और गम्भीर है ; सभी युवा मित्र जो "प्रयोग" नामक बैनर के तले काम करते है, सब हँसमुख परन्तु गायन - वादन में बेहद गम्भीर अनुशासन का पालन करने वाले है, शास्त्रीय संगीत के साथ इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई करने वाले ये प्रतिबद्ध युवा शानदार गायक है, ये सभी स्थानीय से लेकर राज्य स्तर तक संगीत के लिए पुरस्कृत है और आसपास इनके बड़े चर्चे रहते है


बस एक बात कि यदि "प्रयोग" समूह को आगे बढ़ना है तो अपने एंकर को बदलना होगा, जिसे ना एंकरशिप आती है - ना बोलना, अन्यथा इन सबके गुण और गायन - वादन मिट्टी में मिल जायेगा, दूसरा यश और सार्थक से एक स्थाई नाराजी रहेगी कि फरमाइश करने पर भी एक ठुमरी नही गाई जो वे बहुत बढ़िया गाते है, समय निकल जाता है और स्मृतियाँ रह जाती है और यह टींस संवेदनशील कलाकार ही समझ सकता है
बहरहाल, यहाँ कुछ चित्र इन युवा मित्रों के और यश - सार्थक का एक युगल गीत जो राग मल्हार में निबद्ध है - तबले पर संगत कर रहें हैं सुयोग्य और बेहद प्रतिभाशाली कलाकार वेदांत लकरस

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही