मप्र में तमाम प्रयासों के बाद भी जमीनी स्थितियां सुधरी नही है, 18 वर्षों से मामा भांजी और भांजों के नेक, पवित्र रिश्तों के बावजूद भी मामा का साम्राज्य बढ़ा और भान्जे भांजियों को अकाल मौत मिली ये आंकड़े यही कहानी कह रहे है, अब यह मत कहना कि कांग्रेस दोषी है या बसपा या सपा या कोई और
स्वास्थ्य और महिला बाल विकास विभाग के बीच ना समन्वय है और ना Convergence और ऊपर से #Unicef जैसी मक्कार संस्थाएँ पत्रकारों को रुपया दे देकर बकवास की सफलता वाली कहानियाँ छपवा कर अपना अस्तित्व यहाँ बनाये रखती है, उजबक किस्म के कंसल्टेंट घर बैठकर समुदाय प्रबंधन पर काम कर रहें हैं, सिवाय आंकड़ेबाजी के कुछ नही होता, भोपाल की पलाश होटल से लेकर जहाँनुमा या नूर उस सभा में रंगीन चमकीले पीपीटी के प्रदर्शन के कुछ नही होता ; मप्र के गुना, शिवपुरी और श्योपुर यूनिसेफ के जहागिरदारी वाले जिले है और सबसे ज़्यादा कुपोषण और मृत्यु के केस यही से आते है, यह शासन, सत्ता का असली चेहरा है जिसे सुशासन कहते है और minimum govt & maximum governance कहते है
मजेदार कहूँ या दुखद कि जवाबदेही लेने को कोई तैयार नही है - जबकि आंगनवाड़ी से लेकर आशाओं का संजाल बिछा हुआ है पूरे प्रदेश में, पिछले दो - तीन वर्षों में कोविड के दौरान हालात बिगड़े है - संस्थागत प्रसव हो, जच्चा बच्चा देखभाल हो , या कुपोषण का बढ़ना हो, राशन की अनुपलब्धता हो आंगनवाड़ी केंद्रों पर, प्रसव पूर्व की तीन जांचें हो, मध्यान्ह भोजन का कबाड़ा हो या टीकाकरण हो, मप्र सरकार भी आपदा और नियंत्रण की आड़ में सब कुछ दबाकर बैठी है
अभी 3 - 4 माह पूर्व ही शिवराज सरकार ने प्रदेश की नई पोषण नीति जारी कर देश का पहला राज्य जो समुदाय प्रबंधन आधारित पोषण व्यवस्था लागू कर रहा है - की घोषणा की थी, महिला बाल विकास विभाग की तत्कालीन कमिश्नर स्वाति मीणा ने प्रदेश के विशेषज्ञों के साथ मिलकर अथक परिश्रम से इस नीति को बनवाया था, लागू करवाने की बात की थी, एक भव्य समारोह में मुख्यमंत्री ने इसे जारी किया - पर क्या हुआ, स्वाति मीणा का ट्रांसफर हुआ और वह दस्तावेज़ विभाग के किसी पुस्तकालय में या किसी बाबू के दराज में महज़ एक जिल्द या दस्तावेज़ बनकर रह गया - इससे ज्यादा शर्मनाक क्या हो सकता है
मप्र कुपोषण, शिशु एवं मातृ मृत्यु दर के लिए कलंकित था, है और रहेगा - आप निगेटिव कह लें या प्रदेश द्रोही - पर सच यही है, गत 35 वर्षों से सामाजिक क्षेत्र में हूँ, हम सबने बहुत किया किताबें लिखने से लेकर प्रशिक्षण, भ्रष्टाचार उजागर करना, कोर्ट कचहरी और पैरवी तक परन्तु हर बार लगता है कि आख़िर यह काम तो सरकार का है, हम एक छोटे पेंच में काम करके नीतिगत सुझाव दे सकते है, आख़िर इसे लागू करना तो सरकार को ही पड़ेगा - हमारे पास ना इतना मानव श्रम है, ना संसाधन और ना प्रशासनिक अधिकार
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एक जीवंत, प्रेरक और आजीवन युवा रहने वाले सुब्बाराव जी को श्रद्धांजलि
स्काउट के कैम्प हो या राष्ट्रीय एकता के युवा शिविर, उनकी ऊर्जा, प्रार्थना सभाएँ और उदबोधन बहुत सकारात्मक और उल्लेखनीय होते थे, जीवन में दर्जनों बार उनसे मुखातिब हुआ और हर बार लगा कि इस आदमी में कितनी ऊर्जा और जोश है, सर्दियों में भोर के समय मैदान में सैंकड़ों युवाओं या बच्चों को एक झीनी खादी की बण्डी और हॉफ नेकर में प्रार्थना करवाते सुब्बाराव या मैदान में बराबरी से दौड़ते सुब्बाराव जी की स्मृतियाँ हमेंशा ज़ेहन में बनी रहेंगी
सन 1982 में जब राष्ट्रपति पुरस्कार लेने तत्कालीन मद्रास गए थे तो पहली बार उनसे मिला था, बाद में कई शिविरों और कार्यक्रमों में मिलता रहा वर्धा, नागपुर, दिल्ली, नाशिक, मुंबई, विजयवाड़ा, खम्मम, वारंगल, त्रिचूर, अहमदाबाद, वेड़छी, आनंद या इंदौर के कस्तूरबा ग्राम या दूरस्थ ग्राम बनेडिया में
वे गांधीवाद को मानने वाले और खत्म होते गांधीवाद के उन गिने - चुने लोगों में थे, जो आजीवन न्यूनतम चीजों पर निर्भर रहें और अपनी बात दम से कहते रहें, गांधीवादी सुब्बाराव जी का यूँ चले जाना देश में ढहते गांधीवाद के लिए नुकसानदाई तो है ही पर लाखों युवाओं की वे प्रेरणा भी थे, अब कोई ऐसा व्यक्तित्व नजर नही आता
हार्दिक श्रद्धांजलि सुब्बाराव जी , आपका नाम हमेशा रहेगा इस कालखण्ड में
ओम शांति
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