जीवनभर समाज में बदलाव लाने वालों के साथ काम किया बोले तो कॉमरेड टाईप लोगों के साथ , सभी के बच्चे प्राईवेट स्कूल्स में अंग्रेजी माध्यम में पढ़े और ये कॉमरेड लोग सरकारी स्कूल्स में माथा खपाते रहें - आज इन सबके बच्चे देश के बड़े शहरों में एक डेढ़ करोड़ के सालाना पैकेज पर या विदेश में डालर यूरो कमा रहें है और ये लोग अब बुढ़ापे में अभी भी रुपये को दाँत के नीचे पकड़कर बैठते है, नए मुर्गे खोजते है जिनको दूह सकें
इनके बच्चे इतने खुदगर्ज है कि मजाल किसी भिखारी को चवन्नी भी डाल दें या किसी गरीब वंचित की फीस भर दें एक माह की भी
शिक्षा सरकारी स्कूल्स में हो, हिंदी या मातृभाषा में - इसकी पैरवी करते करते ये कॉमरेड लोग बूढा गए और अब खब्ती हो गए है, इनकी बीबियाँ अब सिवाय ज्ञानी - ध्यानी के अलावा कुछ नही है और सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय रहती है और इनकी अपनी औलादें इनको पलटकर नही पूछती
अंग्रेजी सिर्फ माध्यम नही था, बल्कि अंग्रेजियत के संस्कारों ने इन्हें अब जीते जी मार डाला है, इन कॉमरेडों या शिक्षाविदों की औलादों को आज हरामखोर और बेहद नालायक व्यक्तित्व के रूप में देखना - मेरे जीवन का सबसे बड़ा सदमा है
ठेठ गांवों में खादी पहनने का नाटक करके झोले उठाने वालों ने अपनी गंवार औलादों को ऋशिवेल्ली या मिराम्बिका या जेएनयू में पढ़ाया और अपने फर्जी कामों का हवाला देकर फीस भी बचाई और नाटक भी बहुत किये
Bring back Pride to Govt Schools - जैसा नारा देने वाले बेहद भ्रष्ट, और नीच लोगों को अनुदान बटोरते देखा और ये वो लोग निकले जो दिल्ली, मुम्बई, लखनऊ के सम्भ्रान्त रिहाईशी इलाकों में बंगले बनाकर बैठ गए और आज इनके पास बनारस, नाशिक से लेकर जयपुर - उदयपुर या गाजियाबाद में सैंकड़ों एकड़ जमीन है, जिनपर इनके मजार बनेंगे क्योंकि औलादें तो विदेशों से लौटेंगी नही - इनका अंतिम कर्म भी पड़ोसी ही करेंगे
बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी
[ किसी ने अभी पूछा कि 1987 - 2000 तक के तुम्हारे पुराने संगी साथियों के बच्चे सरकारी स्कूल्स में पढ़े थे क्या, कोई रंजो गम नही अपन तो ठेठ हिंदी वाले है सरकारी स्कूल्स की पैदाइश - अंग्रेजी सीखी और उस अंग्रेजी को ही गुलाम बनाया, गुलाम नही बनें ना गुमान किया उस पर, और जैसे है खुश है - जीवन अपनी शर्तों पर जिया और आज भी जी ही रहा हूँ, मरूँगा भी अपनी शर्त पर ]
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हाँ तो मेरे पियारे भाईयो, बैनो और मित्रों,
सबकूँ याद है ना कल है बापू की जयंती मल्लब 2 अक्टूबर
पिरेस करबा ली खाड़ी के झब्बों की, टायर की चप्पल ले ली, चस्मा साफ कल्ल लिया, झोला हेड लो बिस्तर की पेटी में से और अपने चेहरे को आज पार्लर पे जाके गांधी इस्टाइल करबा लो
दूसरा, लेख लिख लिया पेलने लायक, किसी अख़बार से सेटिंग हुई कि नी - देखना कल लगा रिया है कि नई, और कोई नी छापे तो फेसबुक है ही - पूरी थीसिस दे मारना यहाँ
आप सबके हिंसात्मक और भयंकर किसिम एवं बिस्तृत तरीके से गांधी की दृष्टि, विचार, दिशा, दशा और दर्शन पर लिखें आलेख, कबिता, कहानी, प्रेरक पिरसंग, शोध, प्रासंगिकता और सन्दर्भ का सुबू सुबू इंतज़ार रैगा
साला दिल्ली में नई हूँ , नी तो आज रात कूँ ग्यारह बजे से ई राजघाट पे जाकर बैठ जाता एकाध खम्बा फंसाकर
एडभान्स में हिंदुओं, हरिजनों, बनियों, बिडलाओं, गुजरातियों, मुसलमानों और दुनिया के बंचितों के बाबा उर्फ गांधी जयंती की जै जै सबकूँ [अम्बेडकर बाले भी कल हाथ जोड़ लेना पूना पैक्ट और महाड़ तालाब को याद करके ]
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देवास में मशहूर चित्रकार स्वर्गीय अफजल साहब की उपस्थिति हमेशा बनी रहती है, यद्यपि वे भौतिक रूप से वे अब इस संसार में नहीं है, परंतु उनकी कला, उनका वृहद काम, नाम और उनका परिवार यहां मौजूद है और शिद्दत से परिजन कलाकर्म में लगे रहते हैं
अफ़ज़ल साहब के अनुज और कला के उस्ताद हमारे रईस भाई के बेटे शादाब और बिटिया आमेला हुनर के उस्ताद हैं, बिटिया आमेला ने फाइन आर्ट्स में एमए किया है और चित्रकला पढ़ाती हैं एक निजी विद्यालय में, जबकि महज बीस साल के प्रतिभाशाली शादाब मियाँ स्थानीय महाविद्यालय से फाइन आर्ट्स में बीए पढ़ रहे हैं
दोनों भाई - बहन की लगन, कौशल, दक्षता और प्रतिभा के बारे में कहना बहुत मुश्किल है ; दोनो नवाचारी है और लगातार नया रचते बुनते रहते है, कल जब हम लोग उनके घर बात कर रहे थे इस प्रदर्शनी के बारे में तो शादाब और आमेला ने अपने काम को बहुत विस्तृत ढंग से समझाया - दोनों भाई - बहन एक दूसरे से प्रेरणा लेते हैं, दोनों में स्पर्धा नहीं - बल्कि एक - दूसरे को मदद करके अच्छा काम करने की होड़ लगी रहती है दोनो में, खूब मदद भी करते है आपस मे एक दूसरे को और इस समय इनके पिता रईस भाई रात को दो - तीन बजे तक उनके साथ बैठकर, जब तक चित्र पूरा ना हो जाए, साथ बैठे रहते हैं
आमेला देवास में पहली बार पेपर कटिंग से कोलाज का काम प्रस्तुत कर रही हैं - जबकि शादाब अपने वाटर, पोस्टर, आयल पेंट और एक्रेलिक कलर से चित्रों की एक श्रृंखला प्रस्तुत करेंगे, रंगोली से लेकर कला के हर क्षेत्र में माहिर ये दोनों भाई - बहन आज देश के जाने-माने उभरते कलाकार हैं, शादाब ने हाल ही में रंगोली से राजीव गांधी के बड़े - बड़े चित्र बनाकर राहुल गांधी के साथ साथ दिल्ली वासियों को चमत्कृत कर दिया था, आमेला ने दस हजार रंग - बिरंगे बटनों से शिवाजी की बहुत बड़ी कृति बनाई है जो कल प्रदर्शित की जाएगी
उम्मीद की जाना चाहिए कि ये दोनों भाई - बहन कला के क्षेत्र में इतने आगे जाएंगे कि हम कल्पना भी नहीं कर सके - देवास के स्थानीय विक्रम सभा भवन जवाहर चौक में कल से यह प्रदर्शनी 3 दिन के लिए रहेगी, आप सभी लोग आए और इन युवा दोस्तों का मनोबल बढ़ाएं तो अच्छा लगेगा
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या तो पूंछ रख लो या रीढ़ - दोनों बेच दोगे यारी दोस्ती में तो कैसे चलेगा साहित्यकारों, सीधी अलबत्ता दोनो नही है तुम्हारी - विशेषकर युवा फर्जी आलोचकों और कवियों - कहानीकारों की, बस कोई भी बुलाये - नगदी, दारू, सेकेंड एसी के टिकिट और एयरफेयर के फायदे के लिए साला सब कुछ करेंगे
ज़मीर तो है नही तुम्हारा, सब बेच खाये हो तो अब समझोगे भी क्या
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