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पिछड़े कौन है - आइये समझे Posts of 10 to 12 Aug 2021

 पिछड़े कौन है - आइये समझे


◆ 2500 बोरे गेहूं , सोयाबीन, चने या आलू बेचने वाले और सब्जियाँ फेंकने वाले
◆ 4 ट्रेक्टर,100 से ज़्यादा भैंस रखने वाले, सौ से ढाई सौ बीघा सिंचित जमीन रखने वाले जाट, गुर्जर, विश्नोई, पाटीदार, खाती, मीणा, सिरवी, मुस्लिम, सोनी, कुशवाह, साहू और अन्य भी
◆ इनकी औलादें जो कभी कॉलेज नही आती पर स्कॉलरशिप जरूर लेती है 16000/- प्रतिवर्ष और बाकी सब सुविधाएँ भी, फीस भी नही भरती और तमाम गुंडे - मवालियों और दस किलोमीटर दूर के रिश्तेदार विधायकों को लाकर प्राचार्य पर फीस माफी के दबाव बनाती है
◆ ढाई लाख की बुलेट पर घूमती है ये औलादें या कारों में, हफ़्ते में चार बार दारू पार्टी और सबसे लेटेस्ट गजेट्स इस्तेमाल करने वाली औलादें
◆ गुंडागर्दी और दादागिरी में सबसे आगे है
◆ गांव में सबसे ज़्यादा जमीन दबाकर बैठे है और मजदूरों का ना मात्र शोषण करते है, बल्कि ब्राह्मणों से ज्यादा रीति रिवाज मानकर गांव के गरीब पंडो को पालते है
◆ शहरों में बड़े - बड़े मकान बनाकर रहेंगे अत्याधुनिक सुविधाओं वाले घरों में और अमूमन दो या तीन रखैलें रखते है - बीबी के अतिरिक्त
◆ अकूत सम्पत्ति के मालिक और लैविश लाइफ़ स्टाइल जीने वाले
◆ इसमें मप्र के मालवा, विंध्याचल, बघेलखण्ड, बुन्देलखण्ड और निमाड़ के वो पिछड़े शामिल है, मुस्लिम्स भी जिनको देखते समझते और साथ रहते हुए मेरी उम्र के 55 वर्ष गुजर गए
◆ हाल ही में मैंने लॉ पूर्ण किया है और 120 की कक्षा वाले छात्रों के बीच बहुत बारीकी से समझा है इस सबको और जो लोग स्कालरशिप डकार कर भी मुझसे रुपया मांगकर परीक्षा फीस भरें या निशुल्क मिलने वाली किताबें और कॉपी पेंसिल तक बेच दें - उसके बारे में क्या बात करना, जिनका सुनारी का धंधा है वो ₹ 15000/- स्कालरशिप ले रहे है, रहने का मकान किराया शासन से ले रहे है, जिनका धन्धा महीने में करोड़ो का है, मैंने कोर्स की किताबें 60 -70% दामों पर इनसे खरीदी है जो इन्हें शासन से निशुल्क मिली, और जो रुपया मैंने इसके बदले उन्हें दिया - वो दारू या मोबाइल में उड़ गया और यह सच कह रहा हूँ और मजाल कि इन्होंने कभी तीन सालों में एक कट चाय पिलाई हो किसी को भी या शिक्षक दिवस में पांच रुपये का चंदा दिया हो या ऑनलाइन कक्षा अटैंड की हो कभी
◆ आरक्षण का हिमायती होकर अब मुझे मूलतः लगने लगा है कि सवर्णों के लिए सभी सरकारी पद खत्म कर दो - सभी जगहों पर सभी पद दलित, आदिवासी और पिछड़ों के लिए कर दो ताकि ये लोग दबाव बनाएंगे और सरकार कम से कम नौकरियों में भर्ती तो करेगी, सरकारी दफ़्तरों में कुछ लोग तो होंगे - काम का मत पूछिये होगा या नही, पर पद खाली नही रहेंगे और यह बड़ा 85 % वर्ग सरकार में जवाबदेही पैदा करेगा, बल्कि विधानसभाओं और संसद में भी 100 % पद अजा, अजजा और पिछड़ों के कर दो - सब सम्हाल लेंगे ये
◆ अवसर में भागीदारी नही बल्कि जिम्मेदारी ही मिल जायेगी और अपने जैसे वंचित वर्ग के लिए ये लोग पूरी जवाबदेहिता और संवेदनाशीलता से काम करेंगे, अपने लोगों से रूपया नही लेंगे तो भ्रष्टाचार भी खत्म होगा और सब काम फटाफट होंगे और किसी को कोई दिक्कत नही होगी
◆ सवर्ण लोग जाकर मरें कही भी, या निजी कंपनियों में शोषित होते रहें - सालें यही डिजर्व करते है सदियों से शोषण कर रहें उपरोक्त गरीबों का, तो मरें निजी क्षेत्र में और करें वही जो कहा जा रहा है
◆ सरकारें कभी किसी का भला नही चाहती यदि सच होता तो संविधान सभा मे सबसे आख़िरी शेष गए डॉक्टर अंबडेकर के बनाये कॉपी - पेस्ट संविधान के लागू होने के पहले दस साल में ही सबका विकास हो जाता और आरक्षण जैसी व्यवस्था हमें आज तक ढोना नही पड़ती, एक बड़ा हथियार वो सत्ता को दे गए कि वोटों की भीख मांगने को इसे आजीवन इस्तेमाल करते रहो - कल्याण किसी का मत करो, वरना क्या कारण है कि जगजीवनराम से लेकर मोदी तक वर्ग विशेष के प्रधान मंत्री रहें और अब रामनाथ कोविद राष्ट्रपति है - दलित वर्ग से, फिर भी ना बैकलॉग के पद भरे जा रहें ना दलित बच्चों को दलिया भी मिल पा रहा है - हां, अयोध्या में पापों का प्रायश्चित्त करने को राम मंदिर जरूर बन रहा है - समझ रहे हैं कुछ
◆ लगभग आधे से ज्यादा ब्यूरोक्रेसी में ऊपर से नीचे तक दलित, आदिवासी और पिछड़े लोग है चपरासी हो, मास्टर, आंगन वाड़ी , आशा या हेण्डपम्प मेकेनिक या कोई और पद , मप्र में 52 जिलों में कलेक्टर्स ही देख लें या एसपी या जवान - फिर क्यों नही कल्याण हो रहा किसी का, क्यों नही वनाधिकार के पट्टे मिल रहे या मुफ्त राशन या बच्चों और गर्भवती महिला को दलिया - सबसे ज़्यादा अव्यवस्था मचा रखी है यहाँ इस पूरी व्यवस्था ने, डॉक्टर्स को पढ़ना नही आता और प्राध्यापकों को लिखना नही आता - बोलिये मत इनके पास धरना, हड़ताल, रैली से लेकर एट्रोसिटी एक्ट जैसे हथियार है - आज दलितों पिछड़ों के शोषक बामण नही ये खुद है जाकर देखिये एक बार असलियत, अकादमिक बहस मत करिए दिलीप मंडल टाईप किसी सिरफिरे नुमा
◆ ज्ञानी लोग ज्ञान ना दें, यह पक्ष - विपक्ष की पोस्ट नही, सिर्फ देखी - भाली और अलग- अलग जगह काम के दौरान आये काम के अनुभवों का निचोड़ है 35 वर्षों का - आप खारिज़ कर सकते है, पर इससे कोई गुर्जर, विश्नोई, खाती, पाटीदार, कुशवाह, साहू, धोबी, पासी, सांसी, कुम्हार या मुस्लिम अपनी जमीन गांव के दलित या आदिवासी को गोदान में नही कर देगा
◆ कमेंट्स करने के पहले यह सोच लें यह कि व्यापक बहस है, आप व्यक्तिगत हुए तो आपको उसी अंदाज में जवाब मिलेगा फिर आप कोई भी हो
◆ आपकी अभिव्यक्ति की सीमा वही तक है जहां से मेरे नाक की सीमा आरम्भ होगी

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