|| मन हे दगड असावे ||
•••••••••
कधी कुणी प्रेमा ने पहावे
कधी देव आणि कधी दानव बनवावे
कधी दगड पाण्यात फेकावे आणि
पाण्यात बुड बुडतानां पहावे
मन हे दगड असावे
कधी मुरूम होऊन डांबरात टाकावे
मुसाफिर चा मार्ग मोकळा करून द्यावे
कधी तरी माणसाचे घर बांधावे
कधी देवळातल्या देव व्हावे
मन हे दगड असावे
--------
◆ सौ. मेघा किशोर धर्माधिकारी
इंदुर
***
यह देखिये टेलीग्राफ की न्यूज और एक आलेख - हमारे आधुनिक काले शासक जो नागरिक होने के नाम पर कलंक है, कल इस युवा प्रशासनिक अधिकारी ने जो किया उससे देश का सिर शर्म से झुक गया है और अफसोस कि राष्ट्रपति ( जो सच में रबर का मोहरा है और दुर्भाग्य से जिसके हस्ताक्षर से इस नालायक का चयन हुआ ) प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री ने एक शब्द भी नही बोला और सीजेआई रमन्ना साहब को तो स्वतः संज्ञान लेकर इसे तुरन्त बर्खास्त करना था ताकि इस मरे हुए कौव्वे को तार पर उल्टा लटके हुए और मरा देखकर बाकी सारे कौव्वे सुधर जाते और कोई डंडा चलाने का हुक्म देने की हिम्मत नही करता भविष्य में
कहता हूँ ना कि जब तक लबासना पर बम फोड़कर उस सामंती प्रशिक्षण की पूरी प्रक्रिया को नष्ट नही किया जाता जो इन्हें pamper करके बिगाड़ती है - तब तक ये ब्यूरोक्रेट्स सुधरेंगे नही, मतलब 28 - 30 साल का युवा किस गर्व और अधिकार से यह सब कहने की हिम्मत जुटाता है, उसे ना कानून का ज्ञान है - ना संविधान का, किन गधों को चुन लिया है - यह चयन प्रक्रिया पर भी सवाल है और योग्यता पर भी, सम्पूर्ण प्रशिक्षण पर तो है ही
जब भी किसी युवा का भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन होता है तो उसका प्रशिक्षण लबासना, मसूरी में होता है - यह हम सब जानते हैं ; प्रशिक्षण में पहले वर्ष में उनका एक काउंसलर होता है और बैच में प्रशासनिक सेवा, पुलिस सेवा, रेवेन्यू सेवा आदि के अखिल भारतीय स्तर पर चुने हुए अधिकारी मिश्रित समूह में होते हैं और प्रत्येक अधिकारी / अधिकारियों के छोटे समूहों के लिए एक काउंसलर होता है - जो साल भर तक उनकी मेंटरशिप करता है ; दूसरे साल में ये लोग अपने-अपने सेवा संवर्ग में बंट जाते हैं - जैसे प्रशासनिक सेवा अलग, रेवेन्यू सेवा अलग और पुलिस सेवा अलग और इनके समूह को और व्यक्तिगत भी एक दूसरा मेंटर सह काउंसलर दिया जाता है
सवाल यह है कि आयुष सिन्हा जैसे लोगों को जिस भी मेंटर ने दूसरे साल में प्रशिक्षित किया - क्या उसे छोड़ दिया जाना चाहिए, क्योंकि प्रशासनिक सेवा के असली गुण ये उसी से सीखते है और यह मेंटर बहुत ही घाघ किस्म का शख्स होता है जो इन्हें पट्टी पढ़ाता है
मुझे लगता है कि इस मेंटर पर भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए - ताकि उनके प्रशिक्षित किए हुए यह ये छर्रे जो समाज में आकर शासन, प्रशासन और जनता के बीच में एक तरह का अघोषित गुरिल्ला युद्ध छेड़ देते हैं, जनता को परेशान करते है और नित नए गुल खिलाते है, इन मेंटर्स पर भी सख्त कार्रवाई होना चाहिए
आयुष सिन्हा के दूसरे साल में जो भी मेंटर रहे हो - उसकी पड़ताल करके उसको भी लबासना में तुरन्त प्रभाव से बर्खास्त किया जाना चाहिए - अन्यथा वहां पर वो नालायक एक रोल मॉडल बनकर रहेगा और आने वाली प्रशासनिक अधिकारियों की पीढ़ी को बर्बाद करता रहेगा
***
सूचना, सूचना और सूचना
◆ 65 साल तक के युवा
◆79 तक के अधेड़
यह घोषणा सुनकर हिंदी के तमाम बड़े - बूढ़े, रिटायर्ड, कब्र में पैर लटकाये और इष्टों के चाटुकार कवि बौरा गए है और आयोजकों से कह रहे है "खबरदार जो वरिष्ठ, अग्रज या स्थापित कवि लिखा तो, अब सिर्फ युवा ही लिखना निमंत्रण पत्र पर "
***
शासकीय विधि महाविद्यालय, देवास में पिछले 30 - 40 वर्षों से ज्यादा एलएलबी का पाठ्यक्रम संचालित किया जा रहा है अब यहां पर शासन ने 10 करोड़ से ज्यादा की लॉ कॉलेज की आलीशान पृथक बिल्डिंग बना दी है
कमिश्नर, उच्च शिक्षा, भोपाल के पास में एलएलएम की अनुमति के लिए मामला 1 साल से से पेंडिंग है परंतु शासकीय महाविद्यालय को भी अनुमति देने में मध्यप्रदेश शासन आनाकानी कर रहा है - जिसकी वजह से यहां के विद्यार्थियों को इंदौर, उज्जैन या कहीं और जाकर पढ़ाई करना पड़ती है
यह बहुत दुखद स्थिति है - सभी छात्र - छात्राएं, लीड कॉलेज के प्राचार्य, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन तथा सब चाहते हैं कि देवास में कानून में परास्नातक का पाठ्यक्रम लागू हो जाए ताकि यहां के वकीलों और जिले के छात्र - छात्राओं के लिए पढ़ने की सुविधा हो जाए - परंतु मुख्यमंत्री जी ध्यान नहीं दे रहे और उच्च शिक्षा विभाग के सचिव, कमिश्नर, प्रमुख सचिव - कोई भी इस पर ध्यान नहीं दे रहा
काउंसलिंग का दूसरा चरण चालू हो चुका है और शासन की मंशा निजी महाविद्यालयों को अनुमति देकर सीट भरने की है, क्या देवास विधायक, देवास के सांसद जो खुद न्यायाधीश रह चुके है - इस दिशा में कोई प्रयास करेंगे क्योंकि यहां के स्थानीय नेताओं को तो शिक्षा से कोई लेना देना नहीं है
Comments