" शिक्षा से कार्पोरेट्स को हटाओ " Khari Khari , Kuchh Rang Pyar Ke Modi and Afganistan - Posts of 21 to 22 August 2021
शिक्षा से कार्पोरेट्स को हटाओ
शिक्षा का जितना नुकसान स्वैच्छिक संस्थाओं जैसे चेतना, केएसएसपी, एकलव्य, प्रथम, रूम टू रीड, एजुकेट ए गर्ल, एक्शन एड, लोक जुम्बिश, दूसरा दशक, यूनिसेफ, एड एट एक्शन या अन्य ने किया - उससे ज़्यादा अब अज़ीम प्रेम, रिलायंस या और बड़े वाले कार्पोरेट्स कर रहें है
कुछ तड़फती आत्मायें जो भोग विलास करने के लिए शिक्षा में आई और ब्यूरोक्रेट्स ना बन पाने के अपराध बोध में आकर शिक्षा में नवाचार के नाम पर व्याभिचार शुरू किए थे - वे आज कहते है कि "अलाना - फलाना पोलिटिकल व्यक्ति है", और इन गंवारों और ढपोरशंखियो को यह सरल बात समझ नही आती कि शिक्षा, साक्षरता या विकास में काम करना ही पोलिटिकल होना है
मज़ेदार यह कि जो बर्तन, झाड़ू - पोछा और चाय बनाने का काम करते थे, वे कालांतर में शिक्षाविद बन गए, जो लोग ग्यारहवी या नवमी में फेल होकर घर से भागे थे और इन व्याभिचारी संस्थागत घरानों में तथाकथित बुद्धिजीवियों, रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स या उनकी निकम्मी औलादों के पोतड़े धोने को रखे गए थे वे मूर्ख अपने आपको नॉन पॉलिटकल कहकर संस्थाओं में गुलामी करते रहें और जब बुरी तरह से हकाले गये या चवन्नी - अठन्नी का गबन करते रंगे हाथ पकड़े गए तो इन्हें जूते मारकर शिक्षा के नवाचारों से भगा दिया गया तो बुद्धम शरणम की तरह पूंजी को खुदा मानकर ये लोग कार्पोरेट्स की शरण में जाकर रीढ़विहीन हो गए और इतने गुलाम कि सच कहने सुनने या बोलने का डर इनकी हड्डियों में समा गया - कार्पोरेट्स के सीएसआर वृद्धाश्रम के सिवा क्या है और
ये उजबक लोग वामपंथी विचारधारा की डुगडुगी बजाकर सड़कों पर नाटक करके शिक्षा में घुसे थे, मजदूर एकता के नारे लगाते थे, दलित उत्थान की बात करते थे, भोपाल गैस त्रासदी के बहाने विकास - विनाश और विज्ञान की चर्चा करते थे, अम्बेडकर या कबीर को बेचकर दुकान चलाते थे, गले में लाल पट्टा डालकर दिल्ली या विदेशों से आये ऐयाश लोगों के इशारों पर नुक्कड़ भी करते थे - यही लोग बाद में पूंजीपति बनें और आज करोड़ो की बिल्डिंग में सैंकड़ो एकड़ जमीन पर शिक्षा के मठ बनाकर धँस गए है - ऐशो आराम के साथ
जिस कार्पोरेट्स के ख़िलाफ़ शिक्षा में प्रश्न पूछने को बच्चो को तैयार करते थे - वो ही आज यूनीसेफ, टाटा, रिलायंस और अजीम प्रेम के बंधुआ मजदूर है और इस रुपये से पेट पाल रहें है और जो हम्माल किस्म के लोग थे वे बापड़े यह आज भी नही समझ पायें कि "पोलिटिकल होना क्या होता है"
अजीम प्रेम सरकारी स्कूल बंद करके अपने स्कूल खोल रहा है, अपने पोर्टल पर गंवार लोगों को बैठाकर व्यर्थ के बकवास किस्म के शैक्षिक आलेख का कूड़ा परोसवा रहा है उन लोगों से जो बेसिक मानवीयता नही जानते या जीवनभर बदतमीजी करते रहें लोगों से
इन गंवारों को यह अभी भी समझ नही - जब रिटायर्ड हो गए या कब्र में पांव लटकाये बैठे है कि कोई भी बदलाव का काम पोलिटिकल ही होता है, और जो लोग यह करते है वे विचारधारा से पुष्ट होते है रुपये के गुलाम नही - समझिये कि जहाँ निर्णय है वहाँ राजनीति है, जहाँ दो में से एक चुनना है वहाँ राजनीति है
शिक्षा का काम किसी सघन जंगल मे 7 - 8 स्कूलों में शुरू करके लाखों रुपये की ग्रांट हडफ़ लेना या बाद में 25 + 7 स्कूलों में जीवन भर काम करके दुनिया को बेवकूफ बनाना विशुद्ध मूर्खता के अलावा क्या है - ऊपर से कचरा किताबें या पत्रिकाएँ छापते रहना वो भी बंदरों के हाथ में उस्तरा पकड़ा कर जो खुजाल के अलावा कुछ नही जानते
मेरा यह पक्का मानना है कि एकलव्य, प्रथम, रूम टू रीड, कैवल्य, पिरामल, संधान, दूसरा दशक, एजुकेट ए गर्ल, शिक्षान्तर, यूनिसेफ समर्थित शिक्षा के प्रकल्प, रिलायंस या अजीम प्रेम जैसे घोर स्वार्थी और निकृष्ट एनजीओ के नाम पर कार्पोरेटी मानसिकता के लोगों को सरकारी शिक्षा, शिक्षक प्रशिक्षण और सामग्री निर्माण से बिल्कुल दूर रखा जाए - इन जगहों पर निहायत ही ऐय्याश और कमज़र्फ लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए बैठे है और कार्पोरेट्स को भी दीमक की भांति कंगाल कर रहें है, इन लोगों ने स्वैच्छिक संगठनों को तो बर्बाद कर ही दिया - स्वयं सेवी संस्था बनाकर या सोशल सेक्टर बनाकर , अब ये आने वाले समय में उद्योग धंधों को भी खा जाएंगे
इनमें दम है तो ये घुसकर बताये मीराम्बिका, अरविंदो, डीपीएस, जे कृष्णमूर्ति, डॉन बॉस्को, दून स्कूल, डेली कॉलेज या मिशनरी के स्कूलों में, या संघी शिशु मंदिर टाईप स्कूलों में - क्योंकि यहां आपको वो लोग मिलेंगे - जो आपको दो मिनिट में चलता कर देंगे - पर ये यहां नही घुसेंगे सरकारी चरागाह सुरक्षित है ना इन जैसो के लिए क्योंकि सरल है और विरोधाभास यह है कि इनकी औलादें इन्ही महंगे स्कूलों में पढ़कर निकली किसी की भी सरकारी में नही गई
और ईमानदारी की बात तो यह है कि अब देश को शिक्षा की ज़रूरत है ही नही, बहुतों ने बेवकूफ बनाकर अपने निजी विवि खोल लिए और स्वयं भू कुलाधिपति बन गए या ज्ञानी पर देश को क्या चाहिये - यह आज तक किसी को नही मालूम, - "नवाचार 30 सालों में परंपरा बन जाता है यह होता है पोलिटिकल होना समझे उलूकराज"
मप्र से लेकर राजस्थान, गुजरात, उप्र, बिहार, दिल्ली, आसाम, कर्नाटक और तमाम जगहों पर इन ऐय्याश लोगों की कमी नही जो तमाम तरह के काम करते है शिक्षा और नवाचार के नाम पर
ज्यादा उत्साह में लोगों को लेबल देना और चरित्र प्रमाण पत्र देना बंद करो, हमें मालूम है जन्नत की हक़ीक़त - समझ रहे है ना मित्रों, पर्सनल नही हो रहा और पर्सनल होना भी मत पर अगली बार सुना तो पानी पीना भूल जाओगे - एक चाय बनाने वाला का प्रधान मंत्री बनना उतना नुकसान दायक नही जितना शिक्षाविद या किसी थर्ड क्लास पत्रिका या वेब पत्रिका का सम्पादक बन जाना - यह मोटी मोटी समझ है मेरी
[ यह पोस्ट मैंने अपने लिए विशेष सन्दर्भों और प्रसंगों को लेकर लिखी है - ताकि कुछ मूर्खों को मैं इस बहाने याद रख सकूं, आलतू फालतू लोग यहाँ ना विचरण करें ]
लाल मिर्च है खाओगे तो लगेगी ही मिर्ची
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अफगानिस्तान की भयावह विभीषिका में ना मात्र 500 के करीब भारतीयों, बल्कि नेपाल और अन्य सिख नागरिकों, वहाँ के कई सांसदों और अन्य देश के नागरिकों को भारतीय वायुसेना ने जिस तरह से अलग - अलग जगह से पुनः देश मे लाया है उसके लिए भारत सरकार , विदेश मंत्री और नरेंद्र मोदी के साहस की मैं प्रशंसा करता हूँ, भारतीय दूतावास के साथ इस महती काम में जान जोखिम में डालकर काम करने वाले सभी कर्मचारियों को दिल से
बधाई
और मोहब्बतें, दुआएँ
एक मजबूत राष्ट्र के रूप में भारत देश का यह कदम सराहनीय, मानवीय और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है
मुझे याद है सन 2002 - 03 में अफ्रीका में कुछ राजनीतिक अस्थिरता के चलते मेरे एक मित्र का अपहरण हो गया था - जो वही काम करता था, उसकी पत्नी और वयोवृद्ध माता पिता को सम्हालना मुश्किल था मेरे लिये, 13 दिन तक वो और उसके साथी अपहतकर्ताओं के चंगुल में थे और इस दौरान उन्हें बुरी तरह पीटा गया था, भूखा रखा गया और संत्रास में उनका जीवन था, हम सब यहां चिंता में थे - आखिर 17 वें दिन वो लोग भारत लौट कर आये थे - अपनी संपत्ति, आदि गंवाकर ; इंदौर आकर एक नया जीवन "क - ख - ग - घ" से शुरू किया था और आज वो उस मंजर को सोचकर ही सिहर जाता है
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