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दक्षायणी वेलायुधनm Kuchh Rang Pyar ke and other Posts of 25 August 2021

अपने सभी स्कूल और महाविद्यालय के पुस्तकालय कक्ष का नाम दक्षायणी वेलायुधन होना चाहिए, (लाइब्रेरी कक्ष के नाम के लिए सिर्फ़ "दक्षायणी" नाम भी ले सकते हैं)

दक्षायणी वेलायुधन संविधान सभा में पहली और अकेली दलित महिला थीं

भारत की पहली दलित महिला ग्रेजुएट भी थीं, इनके बारे में यहाँ पढ़ सकते है


https://100extraordinarywomen.blogspot.com/2018/02/dakshayani-velayudhan.html?m=1&fbclid=IwAR1hGaAhnwHWw0jG8CMe-DAF4LFgy8AJKOWYZ4sOR9CxMBo2QYw2rNZGvyA
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रे रेट्स निम्नानुसार हेंगे आज से -
◆ एक कहानी का 15 हजार
◆ एक कविता का 21 हजार
◆ आलेख का 25 हजार
◆ फेसबुक लाइक का 100, कमेंट का 500 और शेयर का 1000 रुपये
◆ यूट्यूब झेलने के 25 हजार नगदी
◆ शोध करने का 35 हजार
◆ शोध सामग्री देने का 40 हजार
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बाकी देख लो भिया अपना अपना, अब फोन करो तो जे पढ़ लेना पेले फिरीज फोन करना अपुन कूँ
[ नोट - लाइवा वाली एड्स की बीमारी म्हणे ना है - सो बात ई मत करना लाइव की ]
[ विदेशी मित्रगण इसी भाव से डॉलर, यूरो या दीनार में देवें ]
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|| रुपया छठी इंद्री है - जो पाँच इंद्रियों को चलाती है ||
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सुना प्रसिद्ध लेखक सुरेंद्र वर्मा ने अपने ऊपर शोध करने वाले से ₹ 25,000/ - मांगे है, आज कोई भी शोधार्थी गरीब नही है - 30 - 40 से 45 हजार तक स्कालरशिप मिलती है प्रतिमाह, यदि वंचित वर्ग से हो तो और मजे है - सब फ्री और रुपया अलग, दारू के ठेकों पर इनकी कमाई स्वाहा होती है या माशूकाओं पर फिर काहे के गरीब - ये रोते इतना बुक्का फाड़कर कि इनका प्रेमचंद, निराला या कोई डबराल अभी मर गया हो, हमेशा गरीबी का रोना रोयेंगे, कई तो शादी कर लेते है और मैरिड आवास में रहते है विवि परिसरों में - आईआईटी से लेकर तमाम विवि में मैंने देखें है ऐसे बेचारे गरीब शोधार्थी
वाजिब मांग है - फोकटिये शोधार्थी, लेखक, टुच्चे पत्रकार और घटिया सम्पादकों के लिए लेखक दुधारू गाय है जब चाहे दूह लिया, अनुवाद भी फ्री चाहिये - कई कुंठित आत्मायें तो फोन करके दिमाग़ चाट जाती है - खासकरके, पीएचडी के छात्र विषय तो विषय फिर अपने चचेरे भाई बहनों, मौसी, बुआओं के मृत्यु प्रमाणपत्र कैसे बनेंगे या बाप - दादों की जमीन का नामांतरण या बंटवारा कैसे करें - तक पूछने में हिचकते नही है, इनके प्रेम मुहब्बत और ब्रेकअप के घटिया स्तरहीन किस्सों से दुनिया परेशान है ही
यह प्रवृत्ति घातक है - लेख, रचना या शोध करने का रुपया जब तक नही तब कुछ नही देना चाहिये
वेब पोर्टल या पत्रिका या प्रकाशक का सम्पादक - मालिक कमा ही रहा है - कोई भूखों नही मर रहा - दिल्ली, मुम्बई या कोलकाता में रहता है बंगलों या बड़े फ्लैट में, औलादें महंगे कॉलेजेस में पढ़ती है या बच्चे पब्लिक स्कूल्स में, घर मे चार काम वाली बाईयाँ है - ड्राईवर है, कार से लेकर हवाई यात्राओं का सुख भोग रहा है, सैंकड़ो एकड़ जमीन दबाकर बैठा है और पूरी ऐय्याशी से खुद भी रहता है, अपनी औलादों को भी रखता है - बस लेखकों के आगे नंगे - भूखे होने का रोना रोता ही रहेगा, कभी एक मुफ्त ब्रोशर भी नही भेजता - नए प्रकाशन या पत्रिकाएँ भेजना तो दूर
और सुरेंद्र वर्मा ने कालीगुला के बहाने हमें सीखाया है कि "मुझे चाँद चाहिये" तो डटे रहिये मुफ्त की संस्कृति के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद रहें
या उनपर शोध करो जो महाविद्यालयों या विवि में बैठे फोकटियों पर जो रोज़ - रोज़ और दिनभर सिर्फ फेसबुक और वाट्सएप चलाने का रूपया कमा रहे है - डेढ़ से ढाई लाख प्रतिमाह, मतलब आप कुछ लिखो कि ऑफिस टाईम में अपने माड़साब का कमेंट सबसे पेले आएगा एकदम से शानदार तरीके से
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मेरी छत पर आए बन्दर
खा गए सारे चने बन्दर
धूम धड़ाका करें बन्दर
भूखे प्यासे मरें बन्दर
आपके यहाँ छोटे बच्चे हो तो उन्हें ये वीडियो बताएँ, बात करें, कहानी बनाने जो कहें और चर्चा करें कि कैसे वन कटने से बन्दर शहरों में घूम रहें है और कितनी मुश्किल में है इन दिनों
ये वीडियो अपने आपमें त्रासदी की कहानी है एकदम छोटे बन्दर के बच्चे भी है और कैसे ममता उन्हें भूखा रहने नही देती और खींचकर खिलाती है , पानी पिलाती है
ध्यान से सुनेंगे तो आवाज़ें और उनकी बातचीत भी सुनाई देगी

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