अपने घर की बीबी, बेटियों के वीडियो वायरल करो हिम्मत हो तो
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मप्र राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में 8 मार्च को महिला दिवस के भोपाल दफ्तर में आयोजित समारोह का वीडियो वायरल हो रहा है, राज्य महिला आयोग अब एकआदेश दे स्थानीय पुलिस को कि जहां से भी या जो भी समूहों में, फेसबुक पर या ट्वीटर पर यह वीडियो पोस्ट करें - उसके खिलाफ पुलिस में एफआईआर अविलंब दर्ज करें और उसे मानहानि, अपकृत्य, उपताप या हिंसा से महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले गैर जमानतीय अपराध में पंजीकृत करके सीधा न्यायिक हिरासत में भेजें
अभी हम लोगों के एक ग्रुप में एक पढ़े - लिखे व्यक्ति ने यह वीडियो भेजा तो मैने आपत्ति ली और कहा कि अपने समूह की जो "लड़कियां" जो अब सास और दादी बन चुकी है, और ठुमके लगाकर डांस करती है - उनके भी वीडियो वायरल करो, घर परिवार में बहु बेटियों के भी वाइरल करो और फिर मजे देखो कि जमाना कितना ख़ुश होता है
जिन सज्जन ने यह भेजा वो निहायत ही पुरुष प्रधान समाज के प्रतिनिधि है, दिनभर में माचो मैन स्टाइल के बेसिर पैर के फोटो और घटिया शायरी डालकर आत्म मुग्ध होते रहते है, ग्रुप की लड़कियों को इंप्रेस करने के लिए और दो विशुद्ध उजबक किस्म के लोग हर फोटो को लाइक मारते है, 58 वर्ष की उम्र पूरी करने जा रहे ये सज्जन कुतर्क में सबसे आगे है और अपने को ज्ञान में खुदा से कम नही समझते है
इसके साथ ही यह कहूँगा कि मिशन से निकाले और हकाले गए लोगों ने भी सारी मर्यादाएं तोड़कर वो वीडियो वायरल किये, अपने कुकर्म भूल गए, साथ ही यह भी भूल गए कि इन्हीं महिला कर्मचारियों ने गत 20 वर्षों में दसियों बार इन्हे बचाया, इनकी नौकरी बचाई कि परिवार पर असर ना हो
नाचना, खुशी मनाना कोई गुनाह नही है, सड़कों पर दारू पीकर बारात में नाचना और पुरुष का हंगामे करने के बजाय महिलाओं का एक आयोजन में सबके साथ मिलकर खुशियाँ बांटना गुनाह नही है
जब मैने समूह में सवाल पूछा कि क्या तुम्हारे अपने घर की औरतों के नाच वाले या कार्यक्रमों के वीडियो वाइरल कर दूं जो सुरक्षित है तो एक बोला - "बस कर" - मैंने कहा - क्यों बस कर, जब महिलाओं की बात आती है, अश्लीलता की बात आती है, तो बस कर की बात आती है - इस तरह की बातें और वीडियो वाइरल करने में शर्म आनी चाहिए, अपने ग्रुप की कई महिलाएं जो हैं उन्होंने अपने वीडियो यहां पर डाले हैं तब तो सब लोगों ने बड़े चटखारे लेकर देखा और कहा कि बाहर नही जाने चाहिए, तब बस कर नहीं बोला और ये मिशन की औरतें क्या मंगल ग्रह से आई है, किसने छूट दी तुम्हे यह वाइरल करने की, मैं इसलिए कह रहा हूं मैं राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के एक महत्वपूर्ण विषय की कार्यकारिणी सदस्य हूं और हम लोग स्वास्थ्य क्षेत्र में जेंडर भेदभाव से लेकर आशाओं की लड़ाई लड़ रहे है, अब इस मुद्दे से भी जूझ रहे हैं, पूरे प्रदेश की मीडिया से लड़ रहे हैं और लगता है कि अब जो भी इस तरह के मैसेज वाइरल करेगा उनके खिलाफ लगातार एफआईआर भी करना पड़ी तो करेंगे, आख़िर कब तक चुप रहेंगे
आप लोग जो भी ये वीडियो वायरल कर रहे है - जरा अपने घर की माँ, बीबी, बहनों के भी वाइरल करें, वो भी तो माल है, हम भी तो देखें जरा, वाट्सअप पर जो परिवार के विभिन्न आयोजनों के वीडियो डालते है मज़े लेकर - उन्हें भी वाइरल करें जरा हम भी तो देखें कितनी हॉट है आपकी बीबियाँ - बेटियां और आपकी माँये
मजाक - मस्ती के नाम पर अश्लीलता फैलाने का काम भी अपकृत्य है; इसमें शामिल सभी मीडिया समूह या अन्य टटपुँजिया अख़बारों से लेकर मीडिया के दलालों की कितनी अक्ल है - जो ब्लैकमेलिंग कर रुपया उगाने के लिए क्या कुछ नही करते, शर्म आना चाहिए ऐसे लोगों को और मेरे उस समूह के लोगों को भी जो बड़े उद्योगों में वरिष्ठ पदों पर काम कर रहे है और मानसिक समझ दो कौड़ी की नही है, यदि इतनी ही समझ होती तो इनके अपने घर बर्बाद नही होते
मैं मिशन की इन सहकर्मियों के साथ 15 साल से काम कर रहा हूँ , सब कोरोना ग्रस्त हुई चिरायु में भर्ती रही, फिर काम पर लौट आई और मेहनत कर रही है, अधिकांश सुलझी हुई प्रतिबद्ध महिलाएं है, कुछ MD/ MS /DM है, बेहद होशियार डॉक्टर्स है, आयएएस है, तंत्र में काम करके तंत्र चला रही है, वे अपने से ज्यादा ज्ञानी है और अनुभवी हैं और नौकरी में लगी है
उम्मीद है मित्र लोग यह बात समझेंगे और ऐसे सभी लोगों के नाम यहाँ सार्वजनिक करेंगे जो किसी भी प्लेटफॉर्म पर आपको यह वीडियो या कोई भी वीडियो जो महिलाओं के खुशी, नाच गाने या उत्सव मनाने के हो - वाइरल करें, हम उनका सामाजिक बहिष्कार करके कानूनी कार्यवाही करेंगे - हद होती है नीचता और मूर्खता की
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'विसर्जन' कहानी पर
संदीप नाईक
की यह टिप्पणी मेरे लिए ऊर्जादायी है:बहुत ही जरूरी कहानी है, आधी आबादी की समस्या को सामने बेधड़क रखते हुए जिस साफ़गोई से कड़वा सच, समाज का नज़रिया, आधारभूत ढांचों में कमी और शारीरिक मानसिक उहापोह का जिक्र है वह दुखद भी है और सुखद भी
इस बात की तारीफ करूँगा कि निसंकोच होकर महिलाओं की समस्या को उठाया है वह काबिले तारीफ है
सच में यह कहानी मेरे बस में होता तो 11 से एमए तक की कक्षाओं में बतौर पाठ्यक्रम लगाता और इससे ना मात्र लड़कियों को हिम्मत मिलती बल्कि शासन प्रशासन से लेकर निजी नौकरी में आने वाली लड़कियों की भी हिम्मत खुलती और वे स्वयं संवेदनशील होती और बोल्ड होती
जब TISS में पढ़ रहा था तो मराठवाड़ा के उस्मानाबाद जिले की पंचायत विभाग की सीईओ से मिलने गए थे हम लोग तो उसने कहा था कि जब वो आई थी तो शौचालय नही था दफ्तर में और जब पुरुषों के बने बाथरूम में संडास नुमा गंदे से शौचालय का इस्तेमाल करती तो बाबू से लेकर चपरासी ना मात्र हंसते बल्कि अंदर दीवारों पर भद्दे चित्र भी बनाते थे
उसने सबसे पहले महिला शौचालय बनवाये और फिर काम किया जबकि वो खुद एक IAS थी
आज भी शहरी, ग्रामीण क्षेत्रों में किशोरी लड़कियाँ आठवी के बाद स्कूल इसलिये छोड़ रही कि शौचालय नही
बहुत बढ़िया कहानी, मैं इसे सेव कर रहा हूँ किसी कार्यशाला में पाठ्यवस्तु की तरह इस्तेमाल करूँगा
बधाई
और इस हौंसले हिम्मत को सलाम और खूब स्नेह कि यह दिलेरी बनी रहें
Vineeta PArmar 's post on 20 March 2021
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पिछले वर्ष 16 से 20 मार्च तक शिवपुरी में था और 21 की सुबह लौटा था, शायद 22 को रविवार था, 24 से लॉक डाउन का पहला चरण था - अपने प्याले प्याले मोदी जी के कहने पर साल भर तक खूब थाली, झाँझ, मजीरे बजाए, पटाखे फोड़े, रैली निकाली डॉक्टरों के लिए और तमाम लोगों के सम्मान में हवाई पुष्प बिखेरे और अस्पतालों को घेरकर पुलिस ने भी सायरन बजाए और भारतीय सेना ने भी बैंड बजाए
टीके का इंतज़ार था, वो भी कमाल की तरह से एक साल में आ गया और लगभग दो ढाई करोड़ लोगों को लग भी गया पर सवाल है
क्या हम सुधरे - नही
क्या अस्पताल ठीक हुए - नही
क्या डॉक्टर को इज्जत मिली - नही
पैरा स्टाफ को इज्जत मिली - नही
टीकों पर हुए खर्च का फायदा हुआ - नही
क्या इस पर पर्याप्त शोध हुआ - नही
क्या हड़बड़ी हुई लगाने में - हाँ
अभी ये झाँकी है - हालात बिगड़ेंगे अभी और, इस बार सरकार नही - अबकी बार हम दोषी है, सम्हल जाईये घर में रहिये, इस बार कोई मदद करने की स्थिति में नही है ख्याल रहें , पलायनवादियों घर निकल लो, अपना जुगाड़ करके रख लो, निम्न मध्यम वर्गियो किराना, आलू प्याज भर कर रख लो
हम सबकी गलती है और हमें ही भुगतना है
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बंगाल में नारा लगाया महामात्य ने "अबकी बार"
जवाब आया "फिर से कोरोना सरकार"
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अभी धुली हुई धूप को देखा है जो छत पर बिखरी पड़ी सूख रही है
(बरसात हुई अभी)
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