Skip to main content

Balaram Parmar, Drisht Kavi and other posts of 2 March 2021

 सफेदी की झंकार


अचानक फोन आता है कि संदीप मिलना है
मैंने कहा कौन, तो बोले आ रहा हूँ घर ही
और बस, थोड़ी देर में ये सज्जन घर आ गए - बालाराम परमार जी, 1992 के एमफिल के बैचमेट - स्व डॉक्टर बीके पासी के हम विद्यार्थी और देवी अहिल्या विवि इंदौर के Future Studies की पहली बैच के छात्र, कोर्स के बाद हम सब देशभर में बिखर गए उड़ीसा, गोवा, बैंगलोर, नांदेड, चित्रदुर्ग और जर्मनी, कनाडा, अफ्रीका और ना जाने कहाँ कहाँ
बालाराम जी जीवन भर केंद्रीय विद्यालयों में प्राचार्य रहे - अंडमान, पूना, बैंगलोर, सोलापुर, नान्देड़, भोपाल से लेकर नार्थ ईस्ट और अभी जम्मू में पटनी टॉप से सेवा निवृत्त होकर पुनः अपने मालवा में लौट आये है स्थाई रूप से देवास में बस गए है
बड़ी बेटी मैरीलैंड अमेरिका में कैंसर पर गम्भीर शोध करने वाली Super specialist डाक्टर है, छोटी बिटिया National Instt of Design अहमदाबाद से पीजी कर रही है और सबसे छोटा बेटा शत्रुघ्न सिन्हा के भाई जयंत सिन्हा के साथ फ़िल्म इंडस्ट्री में काम कर रहा है
खूब बातें हुईं अपने प्रोफेसर्स को शिद्दत से याद किया
Dr-Sushil Tyagi
जी
Umesh Vashishtha
जी के साथ - साथ देवराज गोयल, पीके साहू, छाया गोयल, मानवेन्द्र दास, हंसराज पाल, मीना बुद्धिसागर, डीएन सनसनवाल, विजय बाबू जी आदि को भी बहुत याद किया - साथ ही हमारे साथ पढ़ने वाले संगी साथियों को भी याद किया साधना, प्रभा से लेकर ढेरों मित्रों को
कितना सुकूनदायी है यह सब, एक शाम गुलज़ार हुई, 1991 - 93 की स्मृतियाँ याद करना कितना रूहानी था, अब मुलाकातें होती रहेंगी, ढलती उम्र में इतने पुराने मित्रों की संगत ठहाके और हंसी के साथ आंखों की कोर में आंसूओं की झलक दिख ही जाती है, प्रभा से भी बात करते समय बहुत इमोशनल हो गए हम लोग पुराने दिन याद करके
कितना प्यारा रिश्ता है दोस्ती - ताक़त, भरोसा, आस्था और बेबाकपन - वो 62 के और मैं अब 55 शुरू करूँगा अगले माह पर बचपना अभी शेष है और इंशा अल्लाह यह सहजपन और निश्चलता बनी रहें - जीने को और क्या चाहिये

***
"आपकी कविता की किताब के केश लोचन समारोह में 2 ही लोग थे, आप और मुहल्ले के वो 90 साला चक्की वाले दादाजी जिन्हें कम दिखता है, ऐसा क्यों, कोई दिख नही रहा फोटू में" - मैंने लाईवा से पूछा
"जी, वो असल मे, असल मे, असल मे यूँ हुआ कि, मतलब, कहने का आशय यह था कि, मतलब, अब क्या कहूँ, अब आपसे क्या कहना - हाँ, हाँ - याद आया कि कोरोना है ना, सरकार के आदेशों का पालन कर जिम्मेदार नागरिक का परिचय दिया मैंने, नागरिक पहले - फिर कवि हूँ, सोशल डिस्टनसिंग का पालन कर रहा था और इस्ट्रीम यार्ड से लाइव हो रहा था " - अंत में फोन पर आत्मविश्वास लौट आया था
फिर बोले "खांसी पर कविता पढ़ी थी, आपने नही सुनी हो तो अभी सुना देता हूँ......"
फोन काट दिया मैंने - पता नही साला, उल्टी - दस्त - डकार - उबासी पर भी सुना देगा कोई भरोसा नही, रिटायर्ड है और दो दर्जन रोज़ लिखता है

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही