सफेदी की झंकार
अचानक फोन आता है कि संदीप मिलना है
मैंने कहा कौन, तो बोले आ रहा हूँ घर ही
और बस, थोड़ी देर में ये सज्जन घर आ गए - बालाराम परमार जी, 1992 के एमफिल के बैचमेट - स्व डॉक्टर बीके पासी के हम विद्यार्थी और देवी अहिल्या विवि इंदौर के Future Studies की पहली बैच के छात्र, कोर्स के बाद हम सब देशभर में बिखर गए उड़ीसा, गोवा, बैंगलोर, नांदेड, चित्रदुर्ग और जर्मनी, कनाडा, अफ्रीका और ना जाने कहाँ कहाँ
बालाराम जी जीवन भर केंद्रीय विद्यालयों में प्राचार्य रहे - अंडमान, पूना, बैंगलोर, सोलापुर, नान्देड़, भोपाल से लेकर नार्थ ईस्ट और अभी जम्मू में पटनी टॉप से सेवा निवृत्त होकर पुनः अपने मालवा में लौट आये है स्थाई रूप से देवास में बस गए है
बड़ी बेटी मैरीलैंड अमेरिका में कैंसर पर गम्भीर शोध करने वाली Super specialist डाक्टर है, छोटी बिटिया National Instt of Design अहमदाबाद से पीजी कर रही है और सबसे छोटा बेटा शत्रुघ्न सिन्हा के भाई जयंत सिन्हा के साथ फ़िल्म इंडस्ट्री में काम कर रहा है
खूब बातें हुईं अपने प्रोफेसर्स को शिद्दत से याद किया
Dr-Sushil Tyagi
जी Umesh Vashishtha
जी के साथ - साथ देवराज गोयल, पीके साहू, छाया गोयल, मानवेन्द्र दास, हंसराज पाल, मीना बुद्धिसागर, डीएन सनसनवाल, विजय बाबू जी आदि को भी बहुत याद किया - साथ ही हमारे साथ पढ़ने वाले संगी साथियों को भी याद किया साधना, प्रभा से लेकर ढेरों मित्रों कोकितना सुकूनदायी है यह सब, एक शाम गुलज़ार हुई, 1991 - 93 की स्मृतियाँ याद करना कितना रूहानी था, अब मुलाकातें होती रहेंगी, ढलती उम्र में इतने पुराने मित्रों की संगत ठहाके और हंसी के साथ आंखों की कोर में आंसूओं की झलक दिख ही जाती है, प्रभा से भी बात करते समय बहुत इमोशनल हो गए हम लोग पुराने दिन याद करके
कितना प्यारा रिश्ता है दोस्ती - ताक़त, भरोसा, आस्था और बेबाकपन - वो 62 के और मैं अब 55 शुरू करूँगा अगले माह पर बचपना अभी शेष है और इंशा अल्लाह यह सहजपन और निश्चलता बनी रहें - जीने को और क्या चाहिये
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"आपकी कविता की किताब के केश लोचन समारोह में 2 ही लोग थे, आप और मुहल्ले के वो 90 साला चक्की वाले दादाजी जिन्हें कम दिखता है, ऐसा क्यों, कोई दिख नही रहा फोटू में" - मैंने लाईवा से पूछा
"जी, वो असल मे, असल मे, असल मे यूँ हुआ कि, मतलब, कहने का आशय यह था कि, मतलब, अब क्या कहूँ, अब आपसे क्या कहना - हाँ, हाँ - याद आया कि कोरोना है ना, सरकार के आदेशों का पालन कर जिम्मेदार नागरिक का परिचय दिया मैंने, नागरिक पहले - फिर कवि हूँ, सोशल डिस्टनसिंग का पालन कर रहा था और इस्ट्रीम यार्ड से लाइव हो रहा था " - अंत में फोन पर आत्मविश्वास लौट आया था
फिर बोले "खांसी पर कविता पढ़ी थी, आपने नही सुनी हो तो अभी सुना देता हूँ......"
फोन काट दिया मैंने - पता नही साला, उल्टी - दस्त - डकार - उबासी पर भी सुना देगा कोई भरोसा नही, रिटायर्ड है और दो दर्जन रोज़ लिखता है
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