Skip to main content

Drisht Kavi, Amir Khusaro, Shivratri 12 March Rishiraj's article, Kaml Dixit, Shrikant Telang, Amber's HOw to write Love Poems and posts of 8 to 12 March 21

कोई कवि - ववि होने का मुग़ालता नही और ना किसी से तुलना करता हूँ, ना देशभर में ढिंढोरा पीटना है, पर जो कुछ भी कविता के नाम पर लिखा और जो सौ डेढ़ सौ कविताएँ छपी यहाँ - वहाँ, उस आधार पर कह सकता हूँ कि हमें अपना खुद का सबसे ज्यादा ख्याल रखने की आवश्यकता है क्योंकि "कविता अवचेतन मन की अभिव्यक्ति है" - और यह आपके नितांत एकांत को उघाड़ भी सकती है - सतर्क रहिये लोग घी, नींबू मिर्च लेकर बैठे है

खासकरके बहनजी और दीदी लोग "तुम आये - गए, सपनो की अजन्मी अधूरी दास्तानें, तुम्हारी उशबू - खुशबू, हाथ पांव और माथे के स्पर्श, आँखों से लेकर प्रोत्साहन के दो मीठे बोल और आदर्श कवि एवं मर्दाना नेतृत्व के सामने तन समर्पित - मन समर्पित" को लेकर जो कविताएँ श्रृंगार, विरह को प्रेम के स्थाई भाव से रचती है तो बाद में जनता बड़े शानदार तरीके से चटखारे लेकर पानी पूरी के नमकीन पानी में कविता घोलकर मजे से पीती है और संग साथ वालों को भी रायता बांटा जाता है
***
इक्क ओंकार सत नाम
करता पुरख निरभऊ निरबैर
अकाल मूरत अजूनी सैभं गुर प्रसाद ॥
आदि सच सच जुगादी सच ,
है भी सच , नानक होसी भी सच
सोचै सोचि न होवई जे सोची लख वार ॥
चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिव तार
भुखिया भूख न उतरि जे बन्ना पुरिआ भार।
सहस सिआणपा लख होहि त इक न चलै नालि
किव सचिआरा होइये किव कूड़े तुटे पालि।
हुकुमि रजाई चलना नानक लीखिया नालि।
अर्थात ------
एक ही सत्ता है जिसका नाम है ओंकार... वही कर्ता पुरुष है, निर्भय है क्योंकि भय के लिए कोई दूजा नहीं, निर्वैर है क्योंकि शत्रुता के लिए अन्य नहीं। समय रहित छवि है उसकी या कालातीत मूर्ति है, अयोनि है , स्वयंभू है, गुरु कृपा से उपलब्ध होता है।
वह आदि में सत्य है, युगों के आरंभ में सत्य है, अभी सत्य है। नानक कहते हैं, वह सदा सत्य है। भविष्य में भी सत्य है।'(वही एकओंकार सत्य है। वही एक; क्योंकि वह पहले भी था, अभी भी है, कल भी होगा, सदा रहेगा, सनातन नित्य है और नित्य है इसलिए नूतन है)
'सोच-सोच कर भी हम उसे सोच नहीं सकते। यद्यपि हम लाखों बार सोच सकते हैं।'(सत्य स्वयं द्रष्टा है कोई विचार या वैचारिक निष्पत्ति नहीं इसलिए हजार लाखों विचार से भी उसे विचारा नहीं जा सकता।)
चुप होने से भी उस मौन को उपलब्ध नहीं हुआ जा सकता, यद्यपि हम लगातार ध्यान में रह सकते हैं।'(चुप होकर,मौन साधकर भी उसे उपलब्ध करना कठिन है, देह मन साधे जा सकते हैं मौन नहीं साधा जाता वह सहज घटता है)।
'भूखों की भूख नहीं जाएगी, यद्यपि हम पूड़ियों के पहाड़ ही क्यों न जमा कर लें।'(भूखों की भूख भोजन से मिटती है सामने भोजन की ढेरी लगाने से नहीं)।
लाख सयाना पन हो पर उससे क्या ? मौत को चतुराई से न ठग सकोगे, चतुराई का किया या चतुराई से संग्रहित किया कुछ भी काम न देगा।
'किस भांति हम सच्चे बनें? किस भांति झूठ के परदे का नाश हो?'
नानक कहते हैं कि उसके हुक्म, और उसकी मर्जी के अनुसार। जैसा उसने नियत कर रखा है, लिख रखा है, उसके अनुसार चलने से ही यह हो सकता है।
शिवो भूत्वा शिवं यजेत्...
***
कमल दीक्षित पत्रकारिता के चलते फिरते विश्व विद्यालय थे, नवभारत इंदौर से उनसे परिचय था शायद 1979 की बात होगी पर वे हमेशा ही सहज रहें सबके साथ - सिर्फ मेरे साथ ही नही , माखनलाल विवि में प्राध्यापक बनने के बाद भी
इधर उनके साथ दो चार प्रौद्योगिकी विवि और तकनीकी महाविद्यालयों में विज्ञान लेखन की आवासीय कार्यशालाएं की थी, अंतिम दिनों में वे प्रजापति ब्रह्म कुमारी विवि के उपासक बन गये थे, भूत प्रेत पर विश्वास करने लगें थे बोरावां इंजीनियरिंग कॉलेज में तीन दिन लम्बी बात की थी इन विषयों पर
"मूल्यानुगत मीडिया" उनके लिए पत्रिका नही मिशन था - वे उन गिने चुने लोगों में थे जिनके भीतर मालवा बसता था और भोपाल जाकर वे इंदौर भूल नही पायें
भरपूर जीवन जिया और अपनी शर्तों पर जिया, मस्त और सहज आदमी थे, "चलते फिरते विवि हो आप" - जब कहता उन्हें तो वे हँसते और कहते "नाना खूब बड़ो हुई गयो तू अबै" स्नेहिल और पितृव्रत मिला स्नेह मेरी धरोहर है अब, मीणाल अपार्टमेंट, गुलमोहर में जब उनके फ्लैट पर जाता तो एक मस्त चाय मिलती और ढेर सारी सीख, उपासना और जावेद का घर उनके फ्लैट के ठीक ऊपर था, अभी कोरोना काल के दौरान बातचीत हुई पर मिलना नही हुआ था
कमल दीक्षित जी के निधन से आज के मीडिया पर कोई फर्क नही पड़ेगा पर उन लोगों पर जरूर पड़ा है जो उस वटवृक्ष की छाँह में बड़े हुए
नमन और श्रद्धांजलि कमल जी, आप मप्र में और देश की पत्रकारिता में इंदौर से निकले शलाका पुरुष सर्वश्री राजेन्द्र माथुर उर्फ रज्जू बाबू, राहुल बारपुते, प्रभाष जोशी की पंक्ति में सदैव बने रहेंगे
ओम शांति
***
श्रीकांत तेलंग इंजीनियर है, शोधार्थी है और लगनशील युवा है, इंदौर के वैष्णव प्रौद्योगिकी विवि में कम्प्यूटर साइंस के प्राध्यापक है
इस सबके अलावा वे गम्भीर पाठक और लेखक है, दुनियाभर में घूमते है यायावरी करते है तो अपने अनुभवों को लिखकर हम जैसों को वो दुनिया दिखाते है जहाँ जाना कई बार प्रायः सम्भव नही होता, इस युवा ने पिछले वर्ष लंदन में प्रवास किया था तो अपनी सियाहत का एक अदभुत संस्मरण अपने ब्लॉग में लिखा, यह संयोग ही है कि यह संस्मरण "अहा जिंदगी" के मार्च 21 के अंक में यह छपा भी है
ट्रैवलोग इस तरह और इस मेहनत के साथ लिखे जाने चाहिये, यह शोध की दृष्टि होना चाहिये और वृहद संदर्भों की गुंजाइश होना चाहिये - भाषा का लालित्य एक समझ बढ़ाने में कारगर हो ना कि चमत्कृत ढंग से आतंक पैदा करने वाला कि पाठकों को दो चार पैराग्राफ पढ़कर नींद आने लगे और वे ऊब से भर जाए, इधर बहुत से ट्रैवलोग पढ़े उत्तराखंड से लेकर अनुराधा बैनीवाल के पर समग्र रूप से टिप्पणी करने के लिए थोड़ा और पढ़ने और समझने की ज़रूरत है पर एक बात निश्चित है कि अख़बारों के पृष्ठों पर पर्यटन को अजीब ढंग से प्रमोट करने वाले वृतांत इस विधा का ककहरा ही है
यह सुखद है कि देवास से कविता, कहानी, उपन्यास, व्यंग्य, आलोचना, संगीत और चित्रकला जैसी विधाओं के बाद सियाहती एक कद्दावर यायावर भी निकला है
खूब घूमो, खूब लिखों और खूब यश कमाओ श्रीकांत, यात्रा वृत्तांतों की भीड़ में एक किताब आना चाहिये जल्दी ही - इंतज़ार और सुकामनाएँ
***
विलक्षण युवा कवि, बहुभाषी, वृहद पाठ के संयोजक और मालवा की आन - बान और शान श्री Ammber Pandey इन दिनों यूपीएससी के हिंदी का विकल्प लेकर ब्यूरोक्रेट बनने वालों के लिए #उपकार_गाइड_पाठ लिख रहे हैं
आज उन्होंने बड़ा मार्मिक विषय लिया है प्रेम कविता कैसे लिखें, मैंने उनसे कहा कि वे मेरे प्रश्न पर भी गौर करें और इस गाइड में परिशिष्ट जोड़ें
------
यह मैंने पूछा -
उम्रदराज कवि बीबियों के होते हुए भी लगे पड़े रहते है एक शिकारी की भांति और बहुधा प्रेम कविताएँ लिखकर बेध भी लेते है, प्रायः कवि सम्मेलनों में इस नई शिकार बनी और दो चार बरस टिकने वाली आदि विद्रोहिणी कवयित्री को ले जाने की सनक भी रहती है , ले भी जाते है बड़े मंचों पर
देश भर के विवि ने इस परंपरा का निर्वाह पूर्ण जवाबदेही से किया, महाविद्यालय से लेकर केवी और नवोदय के माड़साब लोगों ने भी और बैंक, पोस्ट आफिस, अखबारों से रिटायर्ड होने के बाद बाबू टाईप लोगों ने भी युवा कहलवाकर अपने कर्तव्य पूरे किए है जाहिर है उपकार में यह सब ना आया तो क्यों खरीदे इसे कोई मेघावी aspirant ? हिंदू राष्ट्र के हिंदू विवि काशी के पूर्व प्राध्यापक के प्रसंग या यूपी के पूर्व राधा बनें डीजीपी का जिक्र यहाँ समीचीन होगा
हिंदी के तमाम बड़े कवि सोशल मीडिया क्रांति के बाद महिला कवयित्रियों के इनबॉक्स में सशरीर पाएं गए और इस तरह 90 वर्ष की उम्र तक युवा बनें फिरते रहें और उनके मरने के बाद भी इन देवियों के संग उनकी तस्वीरें शाया होती रही रिसालों में - "अल्लाह सबको मगफिरियत फरमाएं" - एक मैडम ने अभी कहा था
इस पर भी एक अध्याय या परिशिष्ट की आवश्यकता है, UPSC हिन्दी पाठ्यक्रम के अनुच्छेद 13, सर्ग 24, उपखंड 69 में इस बाबद जिक्र है और यह प्रश्न हर वर्ष आता है उपकार गाइड के प्रबोधक जी
श्री अम्बर देव पांडेय जी से नरम निवेदन है कि प्रकाश से आलोकित करें
***
कितनी खूबसूरत बात लिखी है, पढ़ते रहें - हर बार नया अर्थ खुलेगा, ये वही खुसरो है जो कहते थे - खुसरो दरिया प्रेम का...
अभी कही पढ़ा तो सोचा इतनी खूबसूरत पंक्तियों को तो शेयर करना ही चाहिये
-------
"आ पिया इन नैनन में जो पलक ढांप तोहे लूँ
न मैं देखूँ गैर को न तोहे देखन दूँ
काजर डारूँ किरकिरा जो सुरमा दिया न जाये
जिन नैनन में पी बसे तो दूजा कौन समाये"
■ अमीर खुसरो
***
वो कह रही थी कि कल उन्हें पहले शहर से 58 किमी दूर एक ठेठ आदिवासी गांव में "गौरव देवी अंतरराष्ट्रीय सम्मान" मिला - स्थानीय पंचायत से
फिर दूसरे गांव वो एक बहुत बड़े समूह में महिलाओं से मिली - कुल 7 महिलाएँ थी
फिर शाम को ब्लॉक में 12 लोगों की उपस्थिति में कविताएँ पढ़ी और अंत में रात को उनको सम्मानित किया गया एक झुग्गी बस्ती में जहाँ 22 पियक्कड़ बैठे थे ताश खेलते हुए, बाकी सब सो गए थे
हर जगह वो अपने मित्र के साथ थी - क्योंकि ना गाड़ी चलाना आता था, और उन्हें डर भी लगता था अनजान लोगों से और फिर फोटो हिंचने वाला भी कोई तो हेल्पिंग हेंड चाहिए था जो पूरे मेकअप और दिन भर में बदली 7 साड़ियों की फोटो खींच कर फेसबुक पर चैंपता रहें ताकि दुनिया को खबर मिलती रहें
महिला दिवस खत्म हुआ तो वे दुखी है हर पोस्ट को 6 से ज़्यादा लाईक नही है और कमेंट एक भी नही -ब्यूटी पार्लर का और पेट्रोल खर्च से लेकर बाकी सब खर्च बर्बाद हो गए
#दृष्ट_कवि [यित्री]

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...