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Posts of Sept last week and Oct First week 2018

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जाता तो कोई कही नही पर भौतिक रूप से घर परिवार और दुनिया से विदा हो जाता है तो हम सच मे बेहद अकेले रह जाते है
एक दिन हम भी चले ही जायेंगे और छोड़ जाएंगे निशाँ यहां , कोई याद करें - ना करें पर जीवन, सभ्यता के दरम्यां जो कुछ हमने किया और समय के वृहद इतिहास में दो पल गुजारे वो साक्ष्य बनेंगें
बचपन से बड़े होने तक की उन प्यार भरी लड़ाईयों, असीम स्नेह और असंख्य मधुर स्मृतियों को तलाशते हुए हर शै में खोजते है - उसे , जो अब कभी आने वाला नहीं है
संसार मे माँ - बाप के बिछोह के दुख के बाद सबसे बड़ा दुख सहोदर के बिछड़ने का होता है जिसकी कोई पूर्ति नही हो सकती
छोटे भाई को गुजरे आज ठीक चार साल हो गए पर भूलता नही कुछ भी - वो यही है पास , मुस्कुराता हुआ, बहस करता हुआ और मुझे डपटता हुआ
नमन और श्रद्धा सुमन
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कवि , लेखक , कहानीकार, उपन्यासकार, आलोचक, हिंदी का दमघोंटू प्राध्यापक या वेब से लेकर ब्लॉग या घटिया अनियमित पत्रिका का सम्पादक होना महत्वपूर्ण नही है जितना सेटिंगबाज होना , गुरु असली चीज है मार्केटिंग का उस्ताद होना - सारे पुरस्कार, साहित्य की बहस और मुबाहिसे आपके इर्द गिर्द घूमते रहें यह भरसक प्रयास जीवन रहने पर्यंत करते रहें वही सच्ची सेवा है माँ सरस्वती और वाग्देवी की
विष्णु खरे इसके मुझे ताज़ा उदाहरण दिखाई देते है - वे बड़े कवि समीक्षक भी हो पर मीडिया में रहने वाला मरने के बाद भी चर्चित है और सारी व्यवस्थाएं करके गया बन्दा
इसलिए हे लेखक - उपासक नामक भक्त मेहनती, लेपटॉप और मोबाइल के की बोर्ड तोडू प्राणी और मूरख, खल, कामी इतनी कृपा लेखन पर ना करते हुए मार्केटिंग पर करो तो अजर - अमर हो जाओगे , सेटिंगबाज होना बुरा नही और आजकल यह फैशन है तो पैशन भी रखो अमर होने का
जियो लल्ला जियो
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बच्चे सबसे बड़े सॉफ्ट टारगेट है उन्हें कही भी नचा दो, खड़ा कर दो, वृक्षारोपण की रैली में चलवा दो और यहां तक कि नसबंदी के लिए जागरूकता के कार्यक्रम में भी यूज कर लो
देवास के पर्यटन उत्सव में बच्चों को यूज़ किया जा रहा है - प्रतियोगिता के नाम पर , इस बहाने उनके अभिभावक मुफ्त में भीड़ के रूप में प्रशासन को मिल जाते है
बेहद गंभीर मुद्दें पर कोई सोचें तब तो कोई बात बने वरना तो सदियों से वे इस्तेमाल किये जा रहे हैं हुक्मरान और ब्यूरोक्रेट्स के लिए और फिर हम चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज़ और रेप की कहानियां मजे से सुनते है , यह भी बाल श्रम है
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लुटेरा
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कैसे उत्साह से
अपनी उन्नति की
खबर वह बताता है
बोलते बोलते, जैसे कि देश की
दरकी हुई धरती पर
कूदता कूदता
उससे कहीं बाहर
जान लेकर भाग जाता हो

- रघुवीर सहाय
[ ताकि सनद रहे ]
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जब राजा सिर्फ और सिर्फ निंदा रस में निर्लिप्त होकर मूल मुद्दों से हट जाए तो-
अपने राज्य के लोगों को सन्त्रास देने लगे उनके आवागमन से लेकर रोजी रोटी के लिए विपरीत परिस्थितियां पैदा कर दें तो -
राजा के दरबार के सभी नवरत्न विशुद्ध मूर्ख, गंवार और अनपढ़ों से गये बीते हो तो -
राज्य के बच्चों, किशोरों और युवाओं को नैतिक और सही शिक्षा देने के बजाय राजा और उसके गण उनके दिमाग़ में जहर भरने लगें और आचार्यों को मजदूर से गया बीता बनाकर श्रम करवाएं तो -
चरक , सुश्रुत और पतंजलि के देश में लोगों के वात पित्त के दोष निवारण के बजाय राज्य जँगली सियारों और शेरों के हवाले निर्दोष बीमार लोगों को चंद रुपयों के लिए चारा समझकर फेंक दें तो -
राज्य के न्यायाधीश, समस्त जिम्मेदार पदों पर बैठे अधिकारी भी भांग और नशे में धुत्त होकर उन्मुक्त हो जाएं तो -
जिस राज्य में किशोर, युवाओं को शिक्षा, मार्गदर्शन के बजाय उन्हें गधा मानकर भेड़ो की तरह से हांका जाएं और इस्तेमाल कर फेंक दें तो -
जिस राज्य में देवी स्वरूपा मातृ शक्ति की नित भ्रूण हत्या हो और उनके साथ बदसलूकी से लेकर बलात्कार होना प्रजा का धर्म हो जाएं तो -
जिस राज्य में सूचना संवाहक अपने काम के बजाय गलत काम करने के लिए राजा के खजाने का भक्षण कर अपने परिवार का पोषण करें और अपना जमीर बेच दें तो-
जिस राज्य में राजा को सलाह देने वाले सलाहकार, बायीं ओर बैठने वाले विद्वान भी शुद्र स्वार्थों के लिए राजा के हर काम को नजर अंदाज कर भीष्म की भांति चुप बैठकर सत्ता का चीरहरण देखते रहें तो -
शिखण्डियों की भीड़ जो आये दिन राजा के कुटिल इशारों पर वीभत्स कर्म करके अभिमन्युओं को चक्रव्यूह में घेरकर मार रही हो तो -
श्रीकृष्ण अपनी पटरानियों के साथ रासलीला रचाते हुए बांसुरी बजाकर किसी गांडीव धारी अर्जुन को मादक द्रव्यों में संलिप्त कर अनर्थ और अन्याय का सहारा देने लगे तो -
विदेशी आक्रांताओं को खदेड़ने के बजाय अपने विश्वसनीय भांड और चारणों के निजहित हेतु अपने गुप्त ठिकानों पर प्रश्रय देकर फायदा पहुंचाएं तो -
उस राज्य को शास्त्रों में नरक कहा गया है और ऐसे नरक में ज़्यादा दिन तक कोई राजा राज नही कर सकता, राजा ईश्वर का दूत ना होकर भक्षक है जो ईश्वर के नाम पर कलंक है और समूची प्रकृति का भी दोषी है जो चंद रंगे सियारों के फायदे के लिए सृष्टि का नुकसान कर विध्वंस के पथ पर अग्रसर है
इसमें राजा के साथ इस सृष्टि का हर चर - अचर प्राणी भी इसी नरक का भागी है जो चुप रहकर ईश्वर प्रदत्त जीवन का सत्यानाश कर अपने सुंदर जीवन को कष्टप्रद बना रहा है
समय आ गया है कि निंदा , पाप, दुराचार और आततायी राजा का सिंहासन बदलकर ईश आज्ञा का पालन करते हुए मनुष्य को संरक्षित और संवर्धित रखने वाली प्रणाली की स्थापना की जाएं और नर भक्षियों को राज्य से बाहर स्थाई रूप से वनवास दिया जाये
[ चौकीदारी के आधुनिक धर्म की कथाएं - 1 ]
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रायपुर में हाल ही में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सम्मेलन का बड़ा मजमा लगा
मेरे एनजीओ फील्ड के साथी पूछ रहे हैं कि मैं क्यों नही गया और वे अपने फोटो यहां शेयर कर रहें हैं - रँग, बिरँगे और हंसते- खिलते मुस्कुराते हुए
सबको बधाई और बहुत बड़ा धन्यवाद कि अपने जीवन के लंबे समय में से 5- 6 दिन आपने इस सम्मेलन, मजमे और यात्रा में दिए लम्बा प्रवास कर आप पहुंचें , इतिहास याद रखेगा आपके इस पुनीत कार्य को पर मेरे कुछ विचार है - उजबक समझकर माफ कर दीजिएगा
वही चेहरे - वही मोहरे और वही लोग जो पिछले 30 वर्षों से हर जगह देख रहा हूँ - गांव की बैठक हो, जिले से राज्य या राष्ट्रीय स्तर की - ये वही लोग और घिसे-पीटे कार्यकर्ता है जो हर जगह मौजूद है - वन अधिकार की बात हो, पोषण - कुपोषण, एच आय वी , एड्स, शिक्षा , स्वास्थ्य, नदी बचाओ, आजीविका , रोज़गार ग्यारंटी योजना, पंचायत ट्रेनिंग, महिला सशक्तिकरण, कानून की व्याख्याएं, जमीनी अधिकार, जेंडर, आदिवासी उत्थान या क्लाइमेट चेंज की - कमाल यह कि एक जीवन मे लोग इतने क्षेत्रों में महारत कैसे हासिल कर लेते है और फिर उसके बाद जमीनी स्तर पर काम
इनमे भी अधिकांश कार्यकर्ता है जो आठवीं दसवीं पास है और छह सात हजार से लेकर बीस हजार रुपया माह की नौकरी बजाते है और जो संस्थान प्रमुख है वे दिन के 24 में से 28 घँटे प्रोजेक्ट जुगाड़ने के चक्कर मे रहते है बेचारे इतने व्यस्त है कि देशभर में होने वाली गोष्ठियों सेमीनारों ने कार्यकर्ता भेजते भेजते थक जाते है, मुझे लगता है कि ये जलसे मासिक, अर्ध वार्षिक या वार्षिक जगहें है जहां लोग मस्ती में आते है और कुल मिलाकर ये सब मिलन समारोह बनकर रह जाते है
कुछ तो गड़बड़ है मेरे में या मेरी सोच में या .... वैसे सच तो यह है कि बेचारे ये सब लोग तो भले ही होते है और सक्षम, उत्साही और दबंग भी और आने जाने का तो ख़ैर जुगाड़ हो ही जाता है परियोजनाओं से
एक उत्सव सा बन गया है इनका जीवन और ये उसके भागीदार, नकारात्मक कमेंट नही पर जो कह रहा हूँ शायद तुम, हम और हम सब समझ पाएं या कोई और तो अँधेरों के बीच से रोशनी की दरार ही नज़र आ जाएं
नए सिरे से सब कुछ करने की जरूरत है बजाय इस तरह की सत्यनारायण की कथाएँ आयोजित कर प्रसाद बांटने से , देश भर के लोगों को इकठ्ठा कर थोड़ी बातचीत, मिलना जुलना, गीत संगीत की महफ़िलें और परियोजनाएँ कबाड़ने के अभ्यास से
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377 के बाद अब 497 भारतीय अपराध दण्ड संहिता से विलोपित करने के भद्दे मजाक और चुटकुले बनें
आज वाट्स एप 497 से गुलज़ार है - एक में तो यहां तक कहा गया कि 'सेवानिवृत्ति के बाद की व्यवस्थाएं की जा रही है अपने' ये कहां आ गए है हम जिसमे अपनी बात मनवाने और थोपने के चक्कर मे तानाशाह बन रहें हैं और जो नहीं सुनेगा उसे जलील करेंगें, मोब लिंचिंग करेंगे और अंत में मार डालेंगे
बहुत ही मानसिक दरिद्रता है हमारे सड़े गले समाज मे और अंततः ये सब पितृ सत्ता के ही संवाहक है ना - जो महिलाओं की समानता नही देख सकते और महिला को आज भी भोग्या और सिर्फ सम्पत्ति ही समझते है , असल मे दूसरों की इच्छा और राय को हम महत्व देना तो दूर - हम उसका सम्मान भी नही करते
फिर आज कहता हूँ कि परिवार, विवाह जैसे सामाजिक संस्थान बुरी तरह से सड़ गए है, मवाद की बदबू नथुनों तक भर गई है और फिर पितृ सत्ता और पुरुष प्रधान समाज इन जैसे बजबजाते संस्थानों को ढोते जा रहा है - बजाय यह देखें समझे नई पीढ़ी, नए मूल्य, नई संस्कृति और नए विश्व में क्या हो रहा है और इनकी जरूरतें क्या है, कब तक हम धर्म, रूढ़ि के नाम पर बकवास और सदियों पुरानी दकियानूसी बातों को थोपते रहेंगें
दुखद है , हालांकि अच्छा यह है कि निर्णयों में कही गई एक बात सबसे अच्छी थी कि "भीड़ के मन मुताबिक और जन मानस की इच्छा से न्याय और निर्णय प्रभावित नही हो सकते"
150 - 170 वर्ष पुराने शोषित करने वाले क़ानूनों से देश को मुक्ति बहुत जरूरी है और सीजेआई जस्टिस दीपक मिसरा के अन्तिम समय में लिए गए फ़ैसले पढ़ने - पढ़ाने वालों के साथ लोवर कोर्ट में बैठे रूढ़िवादी और परंपराओं को ढोते न्यायाधीशों , वकीलों, कानून पढ़ाने वाले जड़ बुद्धि प्राध्यापकों, बार काउंसिंल और अन्य मुद्दों से जुड़े व्यापक जन समुदाय के लिए नज़ीर बनेंगें यह अपेक्षा की जाना चाहिए
नई सुबहों का आगाज़ हो रहा है - बदलाव के लिए तैयार हो जाइए नहीं तो आपको पीछे छोड़कर ज़माना आगे निकल जायेगा और आप लकीर पीटते रहेंगें
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बलात्कार के लिए बालिग होना जरूरी नहीं बच्चे भी पर्याप्त है इस "नेक काम" के लिए, लगातार मोबाईल पर तमाम तरह का ज्ञान प्राप्त कर उनके हार्मोन्स ज़्यादा उत्तेजित होकर कम उम्र में सक्रिय हो रहे है, बच्चियों की मेनारकी की उम्र भी घट गई है और हम 14 - 15 साल के किशोर को बच्चा मानकर ट्रीट कर रहें हैं - यह हमारी कमजोर समझ का नतीजा है , वे हत्या, लूट, डकैती से लेकर बलात्कार में भी सहज शामिल है और हम बाल अधिकारों की बात कर रहें है
नई दुनिया की खबर है आज कि 7 साल की बच्ची के साथ तीन नाबालिगों ने गैंगरेप किया
ये नाबालिक 14- 15 साल के बच्चे हैं - जो सातवीं और नवमी में पढ़ते हैं , अच्छी बात है कि इनमें से एक उसका चचेरा भाई है
देश में मोबाइल में फ्री डाटा की बहार है , प्रातः स्मरणीय अंबानी जी, आदित्य बिरला जी और भारतीय जी के कारण डेढ़ जीबी डाटा रोज निशुल्क मिल रहा है और हम जिम्मेदार अभिभावकों ने अपने बच्चों को स्मार्ट फोन हाथ में दे दिए हैं - बेटा खूब देखो पोर्न फिल्में और मजे करो
हम में से कितने अभिभावक अपने बच्चों के मोबाइल के लॉक पेटर्न जानते हैं, कितनों को पासवर्ड पता है , कितनों ने अपने बच्चों के मोबाइल में गैलरी को झांक कर देखा है
अमा, कहां फुर्सत है - रुपया कमाए , मजदूरी करें या यह साला मोबाइल ही चेक करते रहें- बच्चे भी खुश हैं - पढ़ाई के वीडियो देखने के बहाने खूब देख रहे हैं -धार्मिक, अधार्मिक और जोशीले खेल भावना से ओत प्रोत फिल्में व्हाट्सएप चला रहे हैं और फिर मोहल्ले में लड़की अपने अड़ोस पड़ोस में है ही और कोई नहीं मिली तो साली अपनी बहन है ना - दोस्तों को भी बुलाओ - बड़ा भंडारा करो और एंजॉय करो - जीवन है तो सब सुख है- भाड़ में जाए नैतिकता और बाकी सब बातें
बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर - हमारा समाज
[ अभी तात्कालिक इलाज नज़र आता है तुरन्त वह है कि अपने बच्चो को समय दो, बात करो उनके साथ, घूमो, उनके सच्चे दोस्त बनो और दोस्तो पर नजर रखें और उनके असामान्य व्यवहार पर कड़ी नजर भी रखें और जाईये अपने बच्चों के मोबाइल खोलने की कोशिश करें - नही खुलें तो स्कूल से आने के बाद उससे कहें कि दिखाएं मोबाईल - हां अगर वो छुपाकर स्कूल ना ले गया हो तो ] 

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माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पिछले हफ्तों - दस दिनों में लिए सभी फैसलों का स्वागत है -आधार के फ़ैसले को छोड़कर - ये है 377 का आंशिक और 497 का खात्मा, आरक्षण का राज्य तय करें और शबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश का और नमाज के लिए मस्ज़िद होना जरूरी नही
ब्रिटिश कानूनों की आड़ में और उदाहरणों में हम अपने देश के लोगों को कब तक छलते रहेंगें
अभी कानून पढ़ रहा हूँ तो देख रहा कि कानून की किताबों में, उद्धहरणों में कितने सड़े गले उदाहरण और निर्णयों की व्याख्या है
इंग्लैड छोटा राज्य था और सीमित जनसंख्या और एक तरह के लोग, हमारे यहां जारूवा आदिवासी से लेकर तथाकथित स्वयंभू उच्च कुलीन लोग है, गहरे अंदर तक फ़ैली हुई अभिशप्त जाति प्रथा है जो मनुष्य मात्र का भयानक शोषण सदियों से कर रही है और यह देश सराहनीय विविधता लिए है विश्व में - जो अपने आप ने अनूठापन है
इसलिए कानून को खुला, सबके लिए समान और मनुष्य मात्र के जीवनोपयोगी होना होगा इसका अर्थ यह भी है कि जो मनुष्यता के मूल मूल्यों को कुचलकर अपराध या किसी और पर अपने निर्णय थोपने की कोशिश करेगा उसे दंडित किया जाना भी आवश्यक है, स्त्री - पुरुष समानता होनी ही चाहिए जेंडर भेदभाव एक बड़ा शोषण का पहिया है जिसने हमारी स्त्रियां सदियों से पीस रही है और यह एकदम सही समय है जब चुनाव भी होने वाले है कि वे अपनी अस्मिता को पहचानकर अपना भविष्य, वर्तमान तय करें - पुरुष की अधीनता से निकलकर स्वतंत्र होकर खुली हवा में सांस लें
मैं कोर्ट के सभी फैसलों का स्वागत और सम्मान करता हूँ अब हमें यह तय करना है कि हम कैसे संस्कार डालें और लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को ध्यान में रखते हुए सशक्त समाज का निर्माण करें
आधार के फैसले से मैं उपरोक्त कथ्य के संदर्भ में सहमत नही हूँ - इसके लिए जस्टिस चंद्रचूड़ को याद रखना चाहूँगा जिन्होंने आधार को सिरे से खारिज करने की बात की है और इसे भी दर्ज किया जाना चाहिए कि उन्होंने तमाम विरोधों के बाद अपना मत तर्कों के साथ रखा
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पटाखा - मनोविज्ञान की मनोरंजक फ़िल्म
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गम्भीर मनोवैज्ञानिक कहानी की विशाल भारद्वाज द्वारा फ़िल्म के रूप में बेहतरीन प्रस्तुति है "पटाखा"
दो बहनों की लड़ाई जो आगे जाकर एक बड़ी मनोवैज्ञानिक समस्या बनकर उनके निजी जीवन और परिवार में त्रासदी के रूप में उभरने ही वाली होती है कि फ़िल्म का केंद्रीय पात्र अर्थात कहानीकार एक अचूक हल देता है
यह फ़िल्म सिर्फ मनोरंजन ही नही - बल्कि राजस्थानी संस्कृति, भाषा, बोली, गीत , तीज त्योहार और पूरे परिवेश का श्रेष्ठ सम्मिश्रण है
आज हम 17 लोगों ने सम्भवतः पहली बार एकसाथ एक फ़िल्म को पूरे मनोयोग से देखा क्योकि यह हमारे मित्र और हिंदी के अग्रज कथाकार और देवास जिनका भी एक लंबे समय से घर है , Charan Singh Pathik की कहानी पर आधारित है
पथिक जी की पिछले एक साल की मेहनत और श्रम इसमें झलकता है , बस इतना पथिक जी कि आपका आज यहां साथ होना था तो मज़ा चार गुना हो जाता
दुर्भाग्य से पथिक जी के और हम सबके अनुज निहाल सिंह का अभी दस दिन पहले उनका आकस्मिक निधन हो गया, वे भारतीय फौज के होनहार अफसर थे

दुख की इस बेला में हम सब एक वृहत्तर परिवार के रूप में साथ है और दुआ करते है कि परिवार को ईश्वर दुख सहने की शक्ति दें
फ़िल्म की सफलता के लिए खूब दुआएँ और पथिक जी के लिए बहुत सारी शुभकामनाएं कि वे हम सबको अपनी सभी कहानियों की जीवंत फ़िल्में दिखाएँ , भाई साहब हम सब इंतज़ार कर रहें है कि अगली फिल्मों के प्रीमियर आपके साथ बैठकर देखें
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हम लापरवाह लोग
जो मन्दिर थे उनका तहस नहस कर दिया, बेशकीमती मूर्तियाँ जंगल मे पड़ी खराब हो रही हैं और नए ढाँचे बनाना चाहते है
ये चित्र देवबड़ला नामक जगह के है, देवबड़ला - अर्थात मालवी बोली में देवों का ऊँचे स्थान पर या ऊँचे ओटले पर स्थापित होने की जगह
ये मालवा की एक इतनी सुलभ जगह है कि इंदौर भोपाल मार्ग पर ग्राम मेहतवाड़ा से मात्र पन्द्रह किमी अंदर है थोड़ा दुर्गम रास्ता है पर इन परमारकालीन अवशेषों को देखने जाना, समझना और इन्हें सहेजना बहुत जरूरी है
लगभग आठ सौ वर्ष पुराना श्रीराम मंदिर, शिव मंदिर और देवियों की मूर्तियां पूरे प्रांगण में बिखरी पड़ी है, दो कुण्ड है , कोणार्क और खजुराहो की तर्ज़ पर बने मन्दिर थे जो अब जीर्ण हो गए है,
हम भारतवासी संस्कृति पर गर्व करते है, परम्परा की दुहाई भी देते है पर पूछ लो कि जनाब क्या किया - आम आदमी से लेकर, पार्टी, सत्ता या सरकार से तो कोई जवाब किसी के पास नही
आपके पास है कोई जवाब
यही से नेवज नदी का उदगम भी है और इसी नेवज नदी से जैन तीर्थंकर भगवान आदिनाथ और भगवान पार्श्वनाथ जी की मूर्तियां भी निकली है, अभी भी कई मूर्तियां निकल नही पाई है, जावर के जैन समुदाय के श्री नूतन कुमार जैन ने बताया कि इस नदी में यही पड़ी है कई मूर्तियां, अब सम्भवतः पुरातत्व विभाग सुध ले रहा है
आज का रविवार इस खूबसूरत जगह के नाम रहा , इस यात्रा में मित्र चौधरी सत्यजीत का साथ न होता तो यह सम्भव न हो पाता
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परम विद्वान न्यायमूर्ति श्री दीपक मिसरा की सेवानिवृत्ति के पहले अंत मे उनका विवेक ही जागृत हुआ और उसके आलोक में जो फ़ैसले उन्होंने सुनाएं और अंत मे जो भारतीय न्याय व्यवस्था पर टिप्पणी की वह याद रखी जाना चाहिए कि कैसे आत्मा तड़फती है और सिसकारी उठती है जो कलेजे बींध जाती है - अगर व्यक्ति मनुष्य हो
काश कि एलएलबी की कक्षाओं में विद्वान न्यायाधीशों के फ़ैसले, उद्धहरण और न्यायिक इतिहास पढ़ लें कोई शख्स - तो ना किसी प्रपंच की जरूरत होगी और ना जोकरों की तानाशाही सहने की और ना चापलूसी की, दुर्भाग्य यह है कि जज के पद पर बैठ जाने के बाद व्यक्ति यह भूल जाता है कि यह कुर्सी अर्थात माया महाठगिनी चन्द दिनों की है और सीजेआई का पद तो ओंस की बूंद या सिर्फ रात रानी का फूल है जो क्षण में गल जाने वाला है - ख़ुशबू फैलाने की दरकार है ना कि गुलशन के कारवां को समूल नष्ट करने की
खैर देश याद भी रखेगा, दुआएँ भी देगा और ........
अब अगला सवाल यह है कि देश के सबसे बड़े दलाल, सॉरी - व्यवसायियों और देशभक्ति की बेमिसाल जोड़ी जस्टिस गोगोई साहब को कैसे "कन्विंस" करेंगें - अपने एजेंडों को लेकर और हिन्दू राष्ट्र के मुद्दों को लेकर और जनहित याचिकाएं जो लंबित है उनके हित कितने देश हित मे होंगे, साथ ही मोदी सरकार ने जिन संविधानिक संस्थाओं को नष्ट किया या जिस तादाद में मोदीज़ और हमारे गुज्जु भाई लोग रुपया लेकर भागे है उनको वापिस लाने में उच्चतम न्यायालय पहल करेगा
काला धन आया तो नही पर मेरा - आपका,हम सबका सफेद धन हमें नंगा करके चोट्टे ले उड़े, इनके लिए कोई दिशा निर्देश स्वयं संज्ञान लेकर कानून बनाकर इस भ्रष्ट सरकार से अमल करवाएंगे गोगोई साहब ताकि भविष्य में कोई नोटबन्दी से लेकर संस्थाओं के मूल ढांचों से छेड़छाड़ करने की हिम्मत ना करें कभी
बड़ी चुनौती मन्दिर निर्माण के फैसले को लेकर है और रोस्टर प्रणाली जिसके लिए वे खुद कोर्ट के बाहर आये थे और देश से सीधे बात की थी
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गांधी के देश में चुपके - चुपके
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गांधी ना मरेंगे ना ज़िंदा रहेंगे - जब तक बिकेंगे जिंदा रहेंगें
हाँ, गांधी को बेचने वाले और मारने वाले उन्हें हमेंशा नोचते, खसोटते और खाते रहेंगें - संघी हो, वामी हो , कांग्रेसी या सबसे ज़्यादा गांधीवादी खुद
गांधी अब उन्ही के नाम पर बनें बड़े अड्डों में या छोटे - बड़े नोट में ही कैद है और बूढ़े खूसट खादी का आवरण ओढ़े पूंजीपति और भयानक शोषण के समर्थक गांधीवादियों के कब्ज़े में है जिनसे मुक्त हुए बिना कुछ नही हो सकता
बहरहाल , देश को गांधी की 150 वीं जयंती मुबारक, बजाओ ढोल नगाड़े कि बड़ा फंड कही से किसी को मिल जाये और तमाशे शुरू हो
गरीबों को घर देने या अस्पतालों स्कूलों या बुनियादी तालीम या घरेलू गृह उद्योगों को चलाने के लिए इन सभी गांधीवादी अड्डों को तोड़ों इनसे मुफ्त की ली हुई जमीन पर कब्जा करो और इन पोपले मुंह वाले बीमार भाईजी और दीदियों को निकालें , इन्हें कहें कि बहुत कमा खा लिए तुम लोगों ने और अब नही देंगे जब तक विचारधारा की दुकान बंद करके हाथ से काम नही करते , जब तक 71 सालों का संस्थागत हिसाब और अपनी निजी संपत्ति सार्वजनिक नही करते , जब तक अपने अनुदान के स्रोत नही बतातें और जमीन उन लोगों के नाम नही करते जिनके लिए गांधी लड़ें
ध्यान यह रहें स्वदेशी या अहिंसा के नाम पर , सौहाद्र और साम्प्रदायिकता के नाम पर किसी टुच्चे को कोई अनुदान ना दें सरकार, किसी घाघ और घसियारे को -जो किसी कारपोरेट की गुलामी कर रहा हो को एक चवन्नी ना दें कि वह कोई सड़ियल अख़बार, पत्रिका या फीचर एजेंसी शुरू कर सकें या कोई किताब प्लान कर लें चुपके चुपके , इन झोले झब्बे वालों से सबसे ज़्यादा बचने की जरूरत है जो कर कुछ नही सकते - बस बकवास और कहानियां सुनाने के लिए इन्हें एक अवांगर्द भीड़ की तलाश रहती है , इन्हें सारे आयोजन और प्रसंगों से दूर रखने की जरूरत है
गांधी को हमेंशा प्रासंगिक रखना सत्ता की मजबूरी है और यह हमें यानी जनता को तय करना है कि हम गांधी कौनसा चाहते है - गोडसे का, नेहरू का, वामियों का या वो गांधी जिसको सबसे पहली बार शोषण का सामना करना पड़ा, ट्रेन से उठाकर फेंक दिया गया - एक विदेशी मुल्क में किसी काले के साथ मेरी नज़र में वह पहली बार मोब लिंचिंग की घटना थी जो आज सत्ता के मठाधीशों ने राष्ट्रीय कर्तव्य समझकर अपना ली है - तब गांधी ने कसम खाकर अंग्रेज़ो को भगाया था -आज किसे भगाना है यह हम तय करें इसके लिए हमें खुद गांधी बनना होगा कोई आएगा नही अब मो क गांधी
पहल में छपी एक कविता याद आ रही है "गांधी मला भेटला"
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मायावती को अब सेवानिवृत्त होकर किसी ढोंगी बाबा के आश्रम [ ये दीगर बात है कि उससे और उसके नए आका से बड़ा ढोंगी कोई नही ] में या कही शंकराचार्य जी के पीठ में या वृंदावन मथुरा के महिला सुधार गृह में जाकर बचे दिन सड़ाना चाहिये, यूँ किसी हमाम में साबुन की बट्टी नुमा गल गलकर जीवन जीने से क्या फायदा
ऐसी औरतें और इनकी हरकतों के कारण ही समस्त स्त्रियां बदनाम होती है और तमाम गालियां खाती है जो अभद्रता की श्रेणी में आती है , इसकी राजनीतिक समझ इतनी खराब होगी और दलित आंदोलन के बाकी नेता इस अवसरवादी महिला के नेतृत्व में इसका साथ देंगे - यह समझ से परे था , बहुत ही कायराना और छिछोरी हरकतें करते हुए आखिर में आज इसने अपने असली रंग ढंग दिखाएं
अमित शाह की धमकी जबरजस्त है कुछ भी कहो, सारे दलितों को इस बहाने घेर लिया है और अब बाजी देखना है कि कहां जाकर बैठती है
सपाक्स और अपाक्स की भीड़ अभी और गुल खिलाएगी
तीन राज्यों में दलितों की अगर हार हुई ( जोकि अब निश्चित है) तो समझ लीजिए फिर इस देश मे दलित कभी मुंह नही उठा सकेंगे - ना आरक्षण और ना प्रतिनिधित्व - और यह मौका भी कि कांग्रेस से लेकर सपा और दलित नेता इस औरत को पहचान लें और इसे हर मुद्दे से अलग करें , मेरा यह भी डर है कि मप्र में जयस से लेकर गोंडवाना टाईप संगठन भी थोड़े दिनों में हिन्दू राष्ट्र में विलीन होकर संयुक्त हो जाएंगे और कांग्रेस को 44 सीट लाना भी मप्र में मुश्किल हो जाएगा
अफसोस कि एक डरपोक और कायर नेता ने रुपयों के लालच और सी बी आई की जांच के ख़ौफ़ से पूरे दलित आंदोलन और वंचितों की आवाज को हजार साल पीछे धकेल दिया , भाजपा तो सत्ता पाने के लिए कुछ भी करेगी ही परन्तु इस महिला की महत्वकांक्षा ने जमीनी लड़ाई को खत्म कर दिया जबकि सपाक्स के कारण भाजपा के तीन राज्यों में हाथ पांव और छाती फूल गए थे
मायावती अब दलित नही - भाजपा का चेहरा है, असली भारतीय अवसरवादिता का घटिया मलिन चेहरा
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हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही