मप्र में मत देने वाले युवा से लेकर प्रौढ़ का करीब 35% मप्र के बाहर नौकरियों में है और वे मुंबई दिल्ली बैंगलोर से लेकर विदेशों में कार्यरत है
वे चाहकर भी सिर्फ वोट देने के लिए छुट्टी लेकर अपना किराया खर्चकर अपने शहरों, कस्बों या गाँवों में नही आ सकते
ये अधिकांशतः शिक्षित है और सूचना प्रौद्योगिकी से लैस है क्यों ना चुनाव आयोग इन जैसों के लिए और जो उस दिन किसी जरूरी काम से बाहर है - को ऑन लाइन मतदान की व्यवस्था करता है , अब तो मोबाइल भी सबके पास है एक एप से यह सम्भव है और इनके मत की गोपनीयता भी ये रख सकते है
यह होना चाहिए यह इनका अधिकार है और इन्हें वंचित नही किया जा सकता इससे
एक सामान्य दिनचर्या में टीवी देखना बहुत ही सामान्य बात है आज भी इंडियन आइडल देख रहा था, बल्कि बिस्तर पर लेट कर देख रहा था
संगीत मनीषी प्यारेलाल जी ने जब वायलिन थामा और " इक प्यार का नगमा है, मौज़ों की रवानी है " धुन बजाई और यकीन मानिये पता नही क्या हुआ खड़ा हो गया - बिस्तर से हटकर
चुपचाप आसपास का कोलाहल भी स्तब्ध रह गया , कुछ सूझ नही रहा था, इस गीत को सैंकड़ों बार सुना है पर आज जब धुन सुनी तो होश ही नही था, मानो दिल - दिमाग़ कही और था - इस गीत की धुन ने आज जीवन की कुंजी दे दी है - 'बस तेरी मेरी कहानी है' और हर कहानी को मुकम्मल होना ही होता है - एक दिन
आंखों से अश्रु कब बह निकलें और सारा गुबार निकलने लगा - यह जादू सिर्फ एक परिपक्व एवं अनुभवी संगीतकार के हुनर से ही सम्भव है, रोना आनंददायी भी हो सकता है यह महसूस किया, शिद्दत से रोया हूँ आज अरसे बाद
गायक, संगीतकार और वादक ज़िंदा रहें हमेंशा - सिर्फ यही कह सकता हूँ , हम इस सृष्टि में कुछ नही है - अपने को नष्ट करके ही कुछ पाया जा सकता है, अगर हम एक गीत को जीवन में समझ पाएं तो सार्थक हो जाएंगे जीवन के सारे मकसद
प्यारेलाल जी आपको सौ सौ सलाम, और अगर सच में अपनी उम्र किसी को दे सकते है तो आज मैं अपनी शेष उम्र का हर क्षण आपको देता हूँ , आशीष बनाएं रखें ताकि मर्म, भावनाएं और आस्थाएं बनी रहें, संगीत की यह अक्षुण्ण धारा बहती रहें
[ तटस्थ ]
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महिला विरोधी है भाजपाई
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शबरीमाला में महिलाओं के मंदिर प्रवेश को लेकर संघी और दक्षिण पंथी मित्र हिंदुओं को सड़क पर आकर कोर्ट के फैसले को चुनौती देने की बात कर चुनावों के समय उकसाने और भड़काने का काम कर रहे है जो कि घृणास्पद कृत्य है, किसी महिला का फोटोशॉप्प्ड फोटो लगाकर उसे मुस्लिम नाम देकर शराब के जाम पीते फोटो लगा रहें है
अपनी जमीन चुनावों में हिलती देख पगला गए है और इस तरह की हरकतों पर उतर आए हैं मजेदार यह है कि ये अर्ध शिक्षित है कानून की पेशागत ठेकेदारी करने वाले लोग है जिनसे मैंने कहा कि मित्रों, न्यायालय बन्द करवा दो, सवाल मंदिर, महिला प्रवेश और मान्यता का नही है, कल अयोध्या का फैसला भी आया तो क्या, 22 से ज्यादा राज्यों में भगवा और भ्रष्ट सरकारें चल रही है और केंद्र में भी , एक राज्य में कम्युनिस्ट बर्दाश्त नही हो रहें इनसे
और फिर दोगली नीति क्यों बाकी जगह सुप्रीम कोर्ट और केरल में हिन्दू कार्ड, मतलब गजब की समझ और फोटोशॉप किये किसी भी महिला के फोटो लगाकर धार्मिकता की आड़ लेकर कुपढ़ों की भांति बेवकूफ बना रहे है , संयम रखो मित्रों 2019 के बाद अपने 100 % सांसदों से कोर्ट का आदेश पलटवा देना अब तो आदत और अनुभव है तुम्हारे पास कांग्रेसियों की तरह - एट्रोसिटी एक्ट को पलट ही दिया है निज स्वार्थ के चलते और क्या तुम्हारा ब्राह्मणवादी दलित विरोधी चेहरा सबको मालूम नही
मुझ पर आरोप लगाते है कि मैं हिन्दू विरोधी और एक पक्षीय हूँ पर बिल्कुल एक पक्षीय नही हूँ, मेरे लिए सबसे बड़ा धार्मिक ग्रन्थ संविधान है और उसी फ्रेमवर्क में मैं देखता हूँ, लोकतांत्रिक व्यक्ति हूँ , लोग अपनी कमजोर समझ के चलते आमी वामी पता नही क्या क्या कहते है, मन्दिर के लिए तो मैं भी पक्ष में हूँ सवाल यह है कि जो सरकार हर जगह रहकर भी कुछ पहल ना करें क्योंकि मन्दिर बनते ही सारी राजनीति वोट बैंक की घटिया तिकड़म और वर्षों से दबाया हुआ अलिखित रुपया खत्म हो जाएगा
मैं तो कहता हूँ कि जब पुराने जमाने मे एक हफ्ते में किले और खजुराहो जैसे शिल्प बन गए तो मन्दिर बना लो ना एक माह में पर फिर वोट का क्या होगा 71 वर्षों से चली आ रही राजनीति का क्या होगा सिर्फ भाजपा ही नही इस पाप में सब शामिल है जो हम हिंदुओं की भावनाओं से छल कर रहे है
कश्मीर में सरकार थी क्यों नही 370 हटाने या कश्मीरी पंडितों को बसाने की बात की , संघ प्रमुख गत 4 वर्षों में एक बार भी कश्मीरी पंडितों की बात बोल रहे है - यह बताओ वे क्यों चुप है , आखिर क्या कारण है कि चुनाव आते ही मन्दिर का मुद्दा सामने आता है और चुनाव खत्म होते ही फिर सब भ्रष्टाचार में, व्यापमं, खनिज में लग जाते है
योगी जी तो खुद महंत है क्यों नही पहल कर बनवा देते, हिंदुओं का शोषण जितना भाजपा ने अपने हिसाब और फायदे के लिए किया है उतना किसी ने नही यह तुम भी जानते हो भाई संघी होने के नाते पर अब सामने नही बोल सकते क्योकि कमजोर पड़ती पार्टी को और पांच राज्यों में में देशहित में समर्थन देना जरूरी है यह संघ की मजबूरी है इसलिए भी मोहन भागवत को कानून की बात कहना पड़ी मज़बूरी में क्योकि जमीन पर भाजपा के पास कुछ नही है और हालात मनमोहन सरकार के आखिरी दिनों जैसे है
तुम सारे संघी परिपक्व और अनुभवी आदमी हो, समझ रहे हो ना क्या कह रहा हूँ, मराठी में एक कहावत है कि मुंह बंद कर मुक्के की मार सह रहे हो, मैं भी हिन्दू हूँ पर प्रमाणपत्र इस कारपोरेट की गुलाम और कठपुतली बने भाजपा के दो लोगों से नही लेना है, मेरा धर्म और मेरी जाति मुझे इनके घटिया व्यवहार और देश बेचने वालों के हक में समर्थन करने की इजाजत नही देता, अभी ही कोर्ट ने कहा था भीड़ के दबाव से न्याय पर प्रभाव नही डाला जा सकता, कमाल यह है कि कानून के जानकार और पेशेवर इस तरह की बात करेंगे तो न्याय का क्या होगा
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देवास के चुनाव पर उम्मीदवारों के लिए कुछ सवाल और जनता के लिए कुछ सलाह
सामंतवाद से मुक्ति बिना देवास का उद्धार नही
कब तक राजे - रजवाड़ों को ढोते रहेगा देवास शहर, यहां की रईस और जड़ मानसिकता की सामंतवादी ताकतों ने शहर को अभी भी गुलामी के अंधेरे गलियारे में रखा है - संघ हो या भाजपा इनके नेता और कार्यकर्ता मानसिक रूप से इतने दबे है कि देवास महल के आगे ना सोच पाते है ना इनकी अक्ल काम करती है
गत 30 वर्षो में इस सामंतवाद और जागीरदारी ने क्या किया - पूरा शहर मरने की कगार पर, गंदगी के कगार पर, भ्रष्टाचार और चरम निकम्मेपन के कगार पर - प्रदेश की जो औद्योगिक राजधानी था आज वह नपुंसक हो गया है विकलांग श्रद्धा के दौर में
पानी , सड़क, रोज़गार के लिए 30 सालों में कुछ नही किया बल्कि जो उद्योग थे वो बन्द कर बर्बाद कर दिये, नर्मदा के नाम पर जनता के रुपयों से नगर निगम इंदौर से पानी खरीदती रही और यहां के नेता लोग अमर होने की रट लगाए रहें, नायक बनते रहें , सारे बड़े उद्योग बर्बाद कर दिए, यहां के घटिया नेता ना मजदूरों को नेतृत्व दे सकें ना फैक्ट्रियां बचा सकें और आज हर घर मे दस बेरोजगार है
अस्पताल से लेकर शिक्षा विभाग में वही लोग है जिन्हें 40 बरसों से मैं देख रहा हूँ, सारे डाक्टर और शिक्षक और अधिकारी यही कमाते खाते रहें और अब दुकानें खोलकर बैठ गए है मंगतों की तरह , इन्हीं लोगों के आश्रय से, बल्कि अनपढ़ गंवार और अर्ध शिक्षितों ने स्कूल कॉलेज या अस्पताल खोल लिए बावजूद इसके यहां के लोग अभी भी "जॉकी" की चड्ढी लेने इंदौर का रुख करते है
जो लोग नाक नही पोछ सकते थे - वे आज ठेकेदार है, जमीन हड़फ कर गार्डन, स्कूल और दुकानें सजाकर कमा रहे है - नगर निगम से लेकर लोक निर्माण के ठेके लेकर करोड़ों कमा लिया और अब दलाली में लगें है, नालों और सार्वजनिक जमीनों पर कब्जा कर कॉलोनियां कट गई और प्रशासन भी कुछ नही कर पाया इनके कारण
ट्राफिक के नाम पर कुछ नही, एक ढंग का सब्जी बाजार जो लोग नही बनवा सकें वो नेतृत्व की बात करते है , जो लोगों की मूल समस्या जैसे बसों, आवागमन, गैस रिफिल, राशन की दुकानें, फल बाज़ार, पार्किंग की व्यवस्था 30 सालों में नही करवा सकें - वो पार्टी सुविधा की बात करती है, इन निकम्मों को क्या पता कि भोपाल जाने की बसें शहर में नही घुसती और बस स्टैंड पर इनके एजेंट नुमा गुंडे कितना सताते है यात्रियों को और सामने ही ट्राफिक चौकी है जहां पुलिस नींद लेती रहती है, हाँ - मूर्तियों को लगाने की होड़ है इनका बस चलें तो कुत्तों बिल्ली की भी लगवा दें
पूरा शहर सड़क के नाम पर कलंक है - एक भी सड़क ढंग की हो तो बता दें बल्कि कॉलोनियों में लोगों ने जो अपना रुपया लगाकर रोड बनवाया था वो नगर निगम परिषद ने तोड़ दिया जगह जगह और इनका ठेकेदार भाग गया करोड़ो खाकर
शहर की ना कोई विकास योजना है , ना मास्टर प्लान - ऐसे में इनकी भी ना दृष्टि है - ना समझ, बस रुपया कमाओ और अपनी औलादों और चमचों को पिलाओ - यही काम कुल मिलाकर रह गया है, एक पॉलिटेक्निक कॉलेज ही है और केपी कॉलेज से लेकर लॉ कॉलेज में पढ़ाई के नाम पर शून्य बटे सन्नाटा है - हाँफती हुई उच्च शिक्षा की सरस्वती रोज गुंडों मवालियों से बेइज्जत होती है और प्राध्यापक ही ही ही करके खैनी फांकते है , घोर अयोग्य और मक्कार किस्म के लोग बरसों से यहां जमे बैठे है और शर्मनाक यह है कि देवास रियासत के पूर्व महाराज के नाम पर है लीड कॉलेज - कभी अंदर आकर देखिये क्या मवालिपन है छात्र नेताओं और असामाजिक तत्वों का , 90% प्राध्यापक अप डाउन करते है जिनका ना छात्रों से लेना है ना देना बस सातवें वेतन आयोग का डेढ़ से दो लाख हर माह जेब मे डालना है और अपनी कोचिंग क्लास चलाना है , इनकी ना प्रतिबद्धता है ना विषय की समझ - गेले बावले लोग जनभागीदारी से भर रखें है जो गुंडे मवालियों के साथ काकी की चाय की दुकान पर सिगरेट पीते है और मानिकचन्द चबाते है इन्हें प्राध्यापक कहते भी घिन आती है
सारी कॉलोनियों में ना पार्षद ध्यान देते है , ना विधायक, ना सांसद - सांसद और विधायक तो कभी जनता में नजर नही आते सिवाय नवरात्रि में आरती पूजन के, इनका शहर में कोई कार्यालय नही, कोई सम्पर्क नम्बर नही और बाकी लल्लू पंजू टाईप नेता इनकी दलाली करते चमचमाती गाड़ियों में घूमते रहते है जिनके मुंह खुलते ही सारा गन्द बाहर गिरने लगता है
30 सालों से सारा विकास अवरुद्ध है वो तो संघ है - जिसके कार्यकर्ता बेचारे देश के नाम पर बलि का बकरा बनते है और लाज शर्म ने पार्टी को जीता ले जाते है "वरना शहर में गालिब की आबरू क्या है"
अबकी बारी बदलाव जरूरी है, अबकी बार जनता को सोचना चाहिए कि वे गोबर नही खा रहे और महंगा गेहूं चबा रहे है, तब तक ना ये सुधरेंगे ना कोई और
कांग्रेस भी सामंतवाद के लपेटे में है और महल की ही गुलाम है, शर्म आती है कि इस शहर के लोग बल्कि यूँ कहूँ कि पूरा मालवा जो सिंधियाओं से शुरू होकर धार के पंवारों तक फ़ैला हुआ है - अभी भी गुलामी के अँधेरों में बजबजा रहा है और भयानक गंदगी और बदबू के बीच चिल्लाकर कहता है मेरा प्रदेश महान और सौगन्ध फलां फलां की खाते है...
बाकी पार्टियां या तो लोप में है या गुमनामी के स्याह घेरों में
#खरी_खरी
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नेताजी का जन्म 1897
विवेकानंद की मृत्यु 1902
एक शर्मनाक समय है जब राष्ट्र का अनपढ़ और अर्ध शिक्षित लोकसेवक झूठ बोलकर झूठ फैलाता है और समूची जनता में हंसी का पात्र बनता है, प्रधान ने कहा कि विवेकानंद ने नेताजी को ट्रेंड किया
प्रधान का पद इतना कभी कलंकित नही हुआ जब इतिहास के साथ झूठ पर झूठ ,गलत उद्धहरण, निरर्थक व्याख्याएं और उस पर से अफसोस भी नही - यह भीषणतम समय है
क्या अर्थ है शिक्षा और उच्च अध्ययन संस्थाओं का जब स्वांग कर और बहुरूपिया बनकर एक ही व्यक्ति पूरे 126 करोड़ लोगों को मूर्ख बनाकर अपनी मन मर्जी से इतिहास और देश के लिए जान देने वाले शहीदों के नाम पर भद्दे कमेंट कर बेढंगी प्रतिमाएं तक बनवाने में लगा है, पूरे देश की मेहनत का रुपया इसके सूट, घूमने और स्वांग में बर्बाद हो गया,सबको कंगाल बना गया मात्र चार साल में
सच मे अब कुछ भी कहना बेमानी है, इसे कौन मूर्ख भाषण लिखकर देता है और कौन दिमाग से पैदल इसको ब्रीफ करता है , अखिल भारतीय परीक्षा पास करके आये अनुभवी और परिपक्व ब्यूरोक्रेट्स इतने गंवार और निठल्ले तो नही या सारे एकदम गधे हो गए है
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