मुद्दा यह नहीं है कि अकबर ने इस्तीफा दिया या नहीं दिया, मुद्दा यह भी नहीं है कि महिलाएं सही बोल रही है या गलत, मुद्दा यह भी नहीं है कि महिलाएं उस समय क्यों नहीं बोली और अब कि वे अब क्यों बोल रही हैं , मुद्दा यह भी नहीं है कि सक्षम पत्रकार 10 -15 सालों तक मुंह दबा कर क्यों बैठी रही , मुद्दा यह भी नहीं है कि "मीटू" का अर्थ व्यापक संदर्भ में क्या है और आने वाले समय में क्या होगा, मुद्दा यह भी नहीं है कि मोदी क्यों नहीं बोल रहे हैं - अकबर से पार्टी इस्तीफा क्यों नहीं ले रही और विपक्ष खामोश क्यों हैं
मुद्दा यह है कि पांच गरीब राज्यों में चुनाव है और समूचा विपक्ष चुप है , मुद्दा यह है कि पेट्रोल डीजल से लेकर सब्जियों के भाव बुरी तरह से बढ़े हुए हैं और कोई बोल नहीं रहा, मुद्दा यह है कि राफेल हमारी प्राथमिकता नहीं है और राफेल में अंबानी को फायदा मिलने से हमारा कोई भला बुरा होने वाला नहीं है - हमारा भला बुरा रोजमर्रा की छोटी मोटी चीजों में है जिसके बारे में निर्णय लेने से सरकार भी बदनाम होती है और लोगों का जीवन भी मुश्किल हो जाता है, मुद्दा यह है कि स्त्री पुरुष के मुद्दे समाज में हमेशा बने रहेंगे आप कब तक जीवन की बुनियादी चीजों को छोड़ कर इन पढ़ी लिखी सुसभ्य और सुसंस्कृत महिलाओं के और उच्च वर्गीय कुलीन पुरुषों के - जिनके लिए रोजी-रोटी कोई समस्या नहीं , उनके बारे में बकवास करते रहेंगे
हमारे समाज के स्त्री पुरुष, युवा बुजुर्ग विकलांग और बच्चे मानसिक रूप से इस समय भयानक प्रताड़ित है - उनके सामने कोई विकल्प सामने ही नहीं आ रहे और वह एक समय का भोजन पाने के लिए जिंदगी के सबसे मुश्किल दौर में संघर्ष कर रहे हैं, मुद्दा यह है कि उन्हें पटेल की चीनी प्रतिमा से कोई लेना देना नहीं है , उन्हें राफेल से कोई लेना देना नहीं है , उन्हें राहुल गांधी कहीं जाते हैं तो कोई लेना देना नहीं है - उन्हें रोजी-रोटी चाहिए - नौकरी चाहिए - काम चाहिए और खुली हवा चाहिए - जहां वे सांस ले सके, आपस में बात कर सके , अपने सुख दुख बांट सके , अपने परिजनों के साथ स्वस्थ सुखी एवं चिंता मुक्त रह सकें
मुद्दा यह है कि क्या भ्रष्ट कांग्रेस , उससे ज्यादा भ्रष्ट भाजपा, उससे ज्यादा बसपा, उससे ज्यादा सपा और सबसे ज्यादा वामपंथी लोग इस समय चुप क्यों हैं - जब दो लोग रोज एक नया मुद्दा बनाकर जनता में धकेल देते हैं और हम लोग मूर्खों की तरह से यहां बहस करते हैं - जिसका ना अंत है , न कोई ठौर ठिकाना और वे दो लोग आने वाली 70 पीढ़ियों का धन-धान्य इकठ्ठा कर अपना जीवन सुखी बना रहे हैं
क्या किसी में इतना नैतिक साहस बचा है कि इन सारे भटकाने वाले मुद्दों से अलग हटकर जीवन की बात करें और यदि नहीं तो इस समाज में अकबर हमेशा बने रहेंगे, आलोक नाथ बने रहेंगे वे बड़बोली कुलीन महिलाएं बनी रहेंगी जो ऐशो आराम करती रही और जब सुविधाएं मिलना बंद हुई तो चिल्लाने लगी
इस समाज की मूल समस्याओं को नजरअंदाज करके जो लोग यहां वहां भटक रहे हैं और एक बड़े जन समुदाय को भटका रहे हैं - वे भी उतने ही दोषी हैं जितने वे दो लोग - जो कारपोरेट के इशारे पर इस देश की महाप्रजा को वैज्ञानिक चेतना से दूर रखकर पूंजीवाद और सामंतवाद के खतरनाक खेल में शामिल करके निशाना बना रहे हैं , राहुल गांधी से लेकर मेनका, ममता, मायावती , सुषमा, जया, हेमा, अखिलेश और सारे फर्जी कॉमरेड यह सब जानते हैं कि यह क्या कर रहे हैं परंतु यह सब भी गले गले तक डूबे हुए हैं इसलिए चुप है और समय इनका इतिहास दर्ज कर रहा है
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