बाज़ार से लौटा हूँ
अभी 5 -7 साल पहले ट्राफिक की इतनी समस्या नही थी, भीड़ नही थी, रँग बिरँगे करवें नही थे, चलनियाँ नही थी, सिंदूर के इतने आकर्षक पैकिंग नही थे , साड़ियों - चूड़ियों की दुकानों पर ऑफर नही थे
देवास जैसे कस्बे में दस पुलिस के जवान चार पहिया रोकें ट्रैफिक कंट्रोल कर रहें थे, बाजार में रौनक भयानक किस्म की थी , तमाम गरीबी और भुखमरी का रोना रोने वाले निम्न और मध्यम वर्ग से लेकर उच्च वर्ग की महिलाएं बाजार में चक्कर घिन्नी बनी हुई है - यह कहाँ आ गए है हम , क्या दलित क्या सवर्ण सब इस खेल के शिकार हो गए है सड़क छाप गाने और श्रृंगार की सामग्री और चोंचलें यही पहचान है तभी विश्व सुंदरी भी बनेगी, ब्लेड और जॉकी के विज्ञापन में बाजार इस्तेमाल करता है तो हो भी जाती है और प्रगतिशील कामरेड से लेकर पति परमेश्वर भी त्याग समर्पण की देवी बनी पत्नी को रात अपना मुंह चलनी में से दिखाते है, इन महिलाओं को यह धूर्तता समझ नही आई 2018 में भी, तो बन्द कर दो बराबरी और जेंडर की बहस
कुल मिलाकर अभी पांच साल पहले बाज़ार नही था और पति पहले भी सात जन्मों तक पत्नियों के थे और आज भी उन्हीं के रहेंगें - बस मख़ौल कैसे बनाना चाहिए पवित्रता और संस्कृति का यह सीखना चाहिए
करवा चौथ भी मनाना है, जेंडर बराबरी भी करना है, मी टू भी करना है, स्त्री आरक्षण भी चाहिए, इमोशनल भी रहना है, ममता की मूर्ति भी रहना है , बॉस को ख़ुश भी करना है, मेट्रो में सीट भी अलग रखना है, अलग लाईन भी लगाना है और पति परमेश्वर भी मानना है - भारतीय स्त्री कुल मिलाकर बाजार के हाथों में एक कठपुतली है जो फिल्मों से लेकर आज की भीड़ में करवा चौथ के नाम पर गोल गोल घूमती रहती है और समय आने पर बकवास भी करती है , उपवास भी और स्वतंत्रता भी - लगता है पूरी जेंडर की बहस और समझ आज से कल रात बारह बजे तक कही चूल्हे में चली जाती है
फालतू की बहस वाले लोग यहां विष वमन ना करें
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जस्टिस रंजन गोगोई के लिए आज का दिन बड़ा है
देखें उनकी अगुवाई में क्या फैसला लिया जाता है, आज यह भी समझ आएगा कि कानून की किताबों में पढ़ाये जाने वाले सदोष लाभ और हानि या आशय को वो सरकार और आलोक वर्मा के बरक्स किस तरह लेते है
यह एक आधार भी सुनिश्चित करेगा कि आखिर आने वाले दो वर्षों में न्याय की दिशा और दशा क्या है, जस्टिस लोया की हत्या /मौत से अपेक्स कोर्ट कितना अभी तक सहमा हुआ है या सब भूलकर पूरी आजादी और निष्पक्षता से न्याय के पक्ष में खड़ा होता है कोर्ट
यह सिर्फ एक व्यक्ति, एक प्रधानमंत्री की नीयत, रात को एक बजे दफ़्तरों में घुसकर दस्तावेज खंगालने , नष्ट करने या भ्र्ष्टाचार की बात नही वरन दुनिया के दूसरे नम्बर के लोकतंत्र में एक व्यक्ति के भ्रष्टाचार में डूबे होने, महज चार साल में देश को गुमराह करके निज स्वार्थ वश अपने आका को देश बेचने की भी बात है
यह अम्बानी के राफेल डील को बचाने के लिए आधी रात की खब्त में एक संविधानिक व्यक्ति के दफ्तर में घुसकर सारे कागज़ ले जाने,मनमाने तरीकों से काबिल लोगों के स्थानांतर कर अपना उल्लू सीधा करते हुए खुद को बचाने की भी जिद है
आज यदि सुप्रीम कोर्ट आलोक वर्मा को पुनः चार्ज दिलवा देता है तो नरेंद्र मोदी सरकार सहित 22 राज्यों के मुख्य मंत्रियों को कोई नैतिक अधिकार नही कि वे शासन प्रशासन में बनें रहें
और यदि फैसला नही भी आता है आलोक वर्मा के पक्ष में तो भाजपा और संघ को मोदी के गुजरात कार्यकाल, हीरेन पंड्या, माया कोडनानी, एक भद्र महिला के पीछा करने से लेकर गोधरा और केंद्र में आने तक के पूरे कार्यकाल , आनंदी बेन के कामों में दखल और ततपश्चात केंद्र में नोटबन्दी से लेकर इस सीबीआई कांड में जो पार्टी एवं संघ की छबि लोगों में बर्बाद हुई उसको 2019 के व्यापक सन्दर्भ में देखकर विश्लेषण करना चाहिए और भाजपा के अन्य मंत्रियों से लेकर वरिष्ठ ब्यूरोक्रेट्स तक से राय मशविरा कर नई लीडरशिप के बारे में सोचना चाहिये
कुल मिलाकर अगला एक घण्टा भारतीय लोकतंत्र का बड़ा इतिहास बनने जा रहा है और इसकी पूरी गरिमा और बड़प्पन आज जस्टिस गोगोई के हाथ मे है
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