कांग्रेस तो देश से खत्म हो गई भिया
अब भाजपा को ही सम्हालना हेगा अपना महान देश
और फिर आज के नेताओं - पंचों, पार्षदों, विधायकों, सांसदों और मंत्रियों के बच्चे आगे आकर चुनाव नी लड़ेंगे तो क्या सड़क छाप कार्यकर्ता लड़ेंगे - साले एक वार्ड में रहते हुए अपने घर का शौचालय बनवाने की औकात नही और चुनाव लड़ेंगे
हमारे मोई जी के मकान में रे रिये है, मोई जी के संडास में निपट रिये हेंगे और शिवराज मामा का एक रुपये वाला चावल खाके हमकू ई च डरा रिये साले हरामखोर
और मीडिया वालों सुन लो हरामखोरों , जे वंशवाद नी हेगा - वो तो कांग्रेस में था , हम तो इसे परंपरा, संस्कृति वाहक और देश के लिए हिन्दू नायकों का राजधर्म कहते हेंगे
समझे कि नी समझें , ज्यादा चूँ - चपड़ की तो वो जज का नाम क्या था रे घनश्याम, नागपुर वाला जो खत्म ईच हो गिया
ठांय .....ठांय......ठांय......
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कल मेरे पड़ोस में किसी का देहांत हो गया तो मैंने अपने कुछ मित्रों को फोन लगाया कि आ जाओ क्रिया कर्म कर लें इसका भी
2 - 3 प्रकाशक मित्र थे - बोले - यार अभी क्रिया कर्म में तीन चार घंटे तो होंगे और फिर अब मामला 14 दिन तक चलेगा, आने वाले तो सवा महीने तक भी आते हैं एक काम करता हूं एक स्टॉल तुम्हारे घर के पास में लगा देता हूं जो आएंगे वह देख लेंगे , कुछ खरीद भी लेंगे, पत्रिकाएं रख दूंगा - निशुल्क पढ़ने के लिए - ताकि जो बैठकर बोर होते हैं - वे पत्रिकाएं पढ़ें और कुछ किताबें ही खरीद ले, श्मशान के लिए भी कपाल क्रिया होने तक एक झोले में कुछ ताजा माल रख लूंगा - अपन तो गुरु ऐसा है कि "जिधर भीड़ - उधर हम" - "कोई बुलाये या ना बुलाये"
दूसरा प्रकाशक मित्र बोला - मेरा गोडाउन हिंदी कविता और कहानी से बुरी तरह से भर गया है, लोग दीर्घ शंका से कम और लघु शंका से ज्यादा लिख रहे है और बीस - पच्चीस हजार नगदी देकर छपवा भी ले रहे हैं, अब ये कचरा कौन खरीदेगा, अपुन को बैठे बिठाये पुण्य मिल रहा है - किताबें आम लोगों तक पहुंचाने का ; हो सकता है कल पद्मश्री भी मिल जाएं गुरु, और फिर विश्व पुस्तक मेला आ रहा है - अभी नई आवक भी अच्छी है लोग जोरदार पैसा देकर छपवा रहे हैं और मुझे भी छापने में कोई दिक्कत नहीं - क्योंकि दिल्ली में 10 दिन का खर्च बहुत हो जाता है और इस बहाने कुछ इनकम हो जाएगी, चार - पांच हजार में सौ का बंडल बंधवा लेता हूँ, 15 दिन में 20 बंडल भी निकल गए तो एक लाख किसके बाप के ; बीस हजार किताबें साली खप जाएंगी - वो अलग
दो - तीन कवियों को फोन किया तो बोले कुछ कविताएं ले आते हैं, लोग आएंगे वे नीरस बैठेंगे - इससे अच्छा है कि वे सब वाग्देवी की शरण में आएं और कुछ रचनाएं सुने , देश में इस समय जो माहौल है उसके मद्देनजर कविता का होना बहुत जरूरी है और कविता ही आदमी को जीवन देगी - मौत से दूर रखेगी
कहानीकार मित्र बोले - ज्यादा नहीं 30 - 40 पेज की 2, 3 कहानियां हैं - ले आएंगे - जिसमें जीवन एवं मौत के पश्चात के समाज, अर्थ और राजनीति के अक्स है मौत का दारुण चित्रण है, करुण दृश्य हैं और इन्हें हम सबको सुनना ही चाहिए , समाज को भी इन पर बहस करना चाहिए - ताकि हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सके
यह सब सुनकर मेरे पड़ोस में जो 95 साल का मुर्दा बांस की खपच्चियों पर लेटा था अचानक जाग गया और बोला
अभी जिंदा हूँ तो जी लेने दो ....
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