Skip to main content

Posts of 28 Oct 2018

कांग्रेस तो देश से खत्म हो गई भिया
अब भाजपा को ही सम्हालना हेगा अपना महान देश
और फिर आज के नेताओं - पंचों, पार्षदों, विधायकों, सांसदों और मंत्रियों के बच्चे आगे आकर चुनाव नी लड़ेंगे तो क्या सड़क छाप कार्यकर्ता लड़ेंगे - साले एक वार्ड में रहते हुए अपने घर का शौचालय बनवाने की औकात नही और चुनाव लड़ेंगे
हमारे मोई जी के मकान में रे रिये है, मोई जी के संडास में निपट रिये हेंगे और शिवराज मामा का एक रुपये वाला चावल खाके हमकू ई च डरा रिये साले हरामखोर
और मीडिया वालों सुन लो हरामखोरों , जे वंशवाद नी हेगा - वो तो कांग्रेस में था , हम तो इसे परंपरा, संस्कृति वाहक और देश के लिए हिन्दू नायकों का राजधर्म कहते हेंगे
समझे कि नी समझें , ज्यादा चूँ - चपड़ की तो वो जज का नाम क्या था रे घनश्याम, नागपुर वाला जो खत्म ईच हो गिया
ठांय .....ठांय......ठांय......
*****
कल मेरे पड़ोस में किसी का देहांत हो गया तो मैंने अपने कुछ मित्रों को फोन लगाया कि आ जाओ क्रिया कर्म कर लें इसका भी
2 - 3 प्रकाशक मित्र थे - बोले - यार अभी क्रिया कर्म में तीन चार घंटे तो होंगे और फिर अब मामला 14 दिन तक चलेगा, आने वाले तो सवा महीने तक भी आते हैं एक काम करता हूं एक स्टॉल तुम्हारे घर के पास में लगा देता हूं जो आएंगे वह देख लेंगे , कुछ खरीद भी लेंगे, पत्रिकाएं रख दूंगा - निशुल्क पढ़ने के लिए - ताकि जो बैठकर बोर होते हैं - वे पत्रिकाएं पढ़ें और कुछ किताबें ही खरीद ले, श्मशान के लिए भी कपाल क्रिया होने तक एक झोले में कुछ ताजा माल रख लूंगा - अपन तो गुरु ऐसा है कि "जिधर भीड़ - उधर हम" - "कोई बुलाये या ना बुलाये"
दूसरा प्रकाशक मित्र बोला - मेरा गोडाउन हिंदी कविता और कहानी से बुरी तरह से भर गया है, लोग दीर्घ शंका से कम और लघु शंका से ज्यादा लिख रहे है और बीस - पच्चीस हजार नगदी देकर छपवा भी ले रहे हैं, अब ये कचरा कौन खरीदेगा, अपुन को बैठे बिठाये पुण्य मिल रहा है - किताबें आम लोगों तक पहुंचाने का ; हो सकता है कल पद्मश्री भी मिल जाएं गुरु, और फिर विश्व पुस्तक मेला आ रहा है - अभी नई आवक भी अच्छी है लोग जोरदार पैसा देकर छपवा रहे हैं और मुझे भी छापने में कोई दिक्कत नहीं - क्योंकि दिल्ली में 10 दिन का खर्च बहुत हो जाता है और इस बहाने कुछ इनकम हो जाएगी, चार - पांच हजार में सौ का बंडल बंधवा लेता हूँ, 15 दिन में 20 बंडल भी निकल गए तो एक लाख किसके बाप के ; बीस हजार किताबें साली खप जाएंगी - वो अलग
दो - तीन कवियों को फोन किया तो बोले कुछ कविताएं ले आते हैं, लोग आएंगे वे नीरस बैठेंगे - इससे अच्छा है कि वे सब वाग्देवी की शरण में आएं और कुछ रचनाएं सुने , देश में इस समय जो माहौल है उसके मद्देनजर कविता का होना बहुत जरूरी है और कविता ही आदमी को जीवन देगी - मौत से दूर रखेगी
कहानीकार मित्र बोले - ज्यादा नहीं 30 - 40 पेज की 2, 3 कहानियां हैं - ले आएंगे - जिसमें जीवन एवं मौत के पश्चात के समाज, अर्थ और राजनीति के अक्स है मौत का दारुण चित्रण है, करुण दृश्य हैं और इन्हें हम सबको सुनना ही चाहिए , समाज को भी इन पर बहस करना चाहिए - ताकि हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सके
यह सब सुनकर मेरे पड़ोस में जो 95 साल का मुर्दा बांस की खपच्चियों पर लेटा था अचानक जाग गया और बोला
अभी जिंदा हूँ तो जी लेने दो ....
*****

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...