उस्ताद रज्जब अली खां समारोह, देवास 8 एवं 9 जनवरी 16
अंशुल प्रताप सिंह
रामेन्द्र सोलंकी
रज्जब अली खां समारोह में आज भोपाल के अंशुल प्रताप सिंह का अप्रतिम तबला वादन हुआ। सिर्फ यही कह सकता हूँ कि इस बच्चे को मेरी उम्र लग जाए। Anshul Pratap Singh
दुखद यह था कि देवास के पूर्व सांसद स्थानीय कांग्रेसी नेताओं के साथ आये और चलते कार्यक्रम में स्व रज्जब अली खां साहब के चित्र को हार पहनाकर चले गए। बेहद अशिष्टता पूर्ण तरीके से जनता के बीच अपनी छबि चमकाने का यह बेहद भौंडा प्रयास था। जनता के प्रतिनिधि से इतनी तो उम्मीद की जाती है। कम से कम दस मिनिट बैठ जाते, मंच पर कलाकारों का अभिवादन कर देते। दिक्कत यह है कि हम ही अगर कला संस्कृति को सहेजेंगे नही तो आने वाली पीढी को कैसे हम समृद्ध विरासत सौपेंगे।
संस्कारवान भाजपा और संवेदनशील प्रशासन तो अनुपस्थित था ही।
सज्जन भिया आपसे इतनी सज्जनता की उम्मीद तो थी ही !!
Anshul Pratap Singh तुमने आज जो तबला बजाया है वह दस साल बाद मैंने सुना बस इतना कहूँगा कि खूब यश कमाओ , कीर्ति की पताकाएँ फहराओ।
मेरी उम्र तुम्हे लग जाए।
Just amazing performance
रज्जब अली खां समारोह की अंतिम प्रस्तुति तीन मेधावी युवाओं के नाम रही। कोलकाता के अरशद अली खां का अप्रतिम गायन और मेरे बेहद करीबी परिचित और बच्चों के समान उपकार गोडबोले ने हारमोनियम पर जहां सुर सँवारे वही रामेन्द्र ने तबले की थाप से समूचे सदन को गूंजायमान कर दिया।
आज के दिन अंशुल, अरशद, उपकार और रामेन्द्र की अप्रतिम प्रस्तुतियों ने इस साल की बेहतरीन शुरुवात की, शायद इससे अच्छा कुछ हो नही सकता था। सबके लिए अशेष शुभकामनाए और दुआएं ।
और नमन, तुम्हे आज फिर इस गरिमामय कार्यक्रम में बहुत मिस किया।
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सरकारी स्कूलों की व्यवस्था को तहस नहस करके अधकचरे ज्ञान से अपने साम्राज्य को बढ़ाकर बाजार में शिक्षा का धंधा चलाना इन भारतीयों से सीखना चाहिए और अजीम प्रेम ने क्या किया - सिर्फ ऊपरी जेब का रुपया टैक्स बचाने के लिए धंधा खोला और सारा रुपया नीचे की जेब में खोंसा, और देश भर के रिटायर्ड थके हारे चुके हुए और बटठर हो चुके चावलों को इकठ्ठा करके एक और मठ ही बनाया है ना !
और भारतीय मीडिया उसे देश का सबसे बड़ा दानी बता रहा है, ये शिक्षा नही कर रहे बल्कि देश के बाजार के लिए नए स्किल्ड मजदूर तैयार कर रहे है, छग, मप्र, राजस्थान जैसे तमाम पिछड़े राज्य इनकी चपेट में है और ये चालीस पचास बच्चों पर सत्तर अस्सी स्रोत व्यक्तियों के नवाचार बनाम शैक्षिक व्याभिचार थोप रहे है। किताबों के नाम पर पुरानी जुझारू काम कर चुकी संस्थाओं से चोरी माल कॉपी पेस्ट कर उंडेल रहे है।
पोर्टल से लेकर तमाम तरह के कामों की गूँज है पर असली काम शून्य है। लोग भी इसलिए कर रहे है क्योकि जब अनुदान ना मिलने से बड़ी संस्थाएं बन्द हो गई तो कहाँ जाए, दूसरा अपनी पैतृक संस्थाओं को ज़िंदा रखने के लिए बेचारे बन्धुआ बने हुए है और डुगडूगी पीट रहे है।
दानी ..... उफ़.... माय फुट
यह पूर्णतः मेरे व्यक्तिगत विचार है ज्ञानी, शिक्षाविद् यहां अपना कूड़ा कचरा और कार्पोरेटी कल्चर ना उंडेले ।
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पुस्तक मेले के लोकार्पण शुरू नही हुए क्या या मुर्गे यानी लेखक बेचारे पहुंचे नही है अभी तक , फोटु की बाढ़ नही आई है अभी अगल बगल या अनर्गल अखल .... से
😊😊😊😊😊
मने यूँही पूछ रहे है, अभी तो सज रही होंगी दुकानें ग्राहकों के लिए
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रविन्द्र कालिया का निधन. हिन्दी का गंभीर अध्येता चला गया, साल की शुरुवात में हिन्दी का बड़ा नुकसान .
नमन
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