जेंडर और स्त्री स्वतन्त्रता के मुद्दे - शनिशिंगणापुर या शबरी माला तक सीमित नहीं है.
सदा सुहागन रहो, दूधो नहाओ, घर की इज्जत, पति के चरणों में स्वर्ग है, ससुराल ही स्वर्ग है, चुड़ियों से लबरेज, मातृत्व के बिना अधूरी है स्त्री, जैसे मुहावरों से मुक्ति पाओ.
आर्थिक स्वालम्बी बनो, अपने आने जाने पर पाबंदी हटवाओ, घर - परिवार से लेकर समाज के हर निर्णय में भागीदारी करो, अपनी जिंदगी अपनी मर्जी से खुलकर जियो, श्मशान में जाने की हिम्मत करो, अपने लोगों को मुखाग्नि देने का हौंसला रखो, शक्तिशाली बनो, छेड़छाड़ करने वाले को पटकनी दो, बलात्कारी को ऐसा सबक सिखाओ कि कही मुंह दिखाने लायक ना रहें, अपनी मर्जी से पसंद के आदमी से शादी करो या एकाकी जीवन बिताओ, दुनिया घूमो, राजनिती में आओ और सत्ता पर काबीज हो, आदि ऐसे मुद्दे है जिन पर लड़ाई करना है.
मस्जिद , गिरजे, गुरुद्वारे और मन्दिर में घुसकर और एक पत्थर पर तेल चढ़ा लेने से कोई क्रान्ति नही होगी, संतान को प्राप्त करने के लिए जैविक प्रबंध करो, बाबाओं के आशीर्वाद और मन्नत मनवाने बैठी पाषाणकाल से उपेक्षित और जर्जर हो चुकी पत्थर की मूर्तियों से संताने प्राप्त नहीं होती - इन्हें तो पुरातत्व विभाग भी सम्हालने को तैयार नहीं तो तुम क्यों घिस- घिसकर अपना जीवन बर्बाद कर रही हो इनके पीछे ? इसलिए इन्हें तत्काल छोड़ दो और लात मारो, ये ढकोसले है. प्यार, समर्पण और त्याग सिर्फ महिलाओं को नहीं शोभा देता, अगर ये सब मानवीय और शाश्वत मूल्य है तो पुरुषों को भी लाद दो इस तरह के प्रपंचों से तुम सब मिलकर.
सती सावित्री जैसे त्यौहार वट सावित्री, हल छट, संतान सप्तमी, संक्रांत, करवा चौथ, से लेकर हर हफ्ते भूखे रहना बंद करो तुम्हारे भूखे रहने से कुछ नहीं होने वाला है, ये मर्द बड़ा जालिम है.........
जेंडर और स्त्री स्वतन्त्रता के मुद्दे इस समय में एकदम अलग है, समाज के बनाए भरम और अपने विश्वासों पर ही सवाल खड़े करो - जो सिर्फ तुम्हारे लिए बनाए गए है, इनसे लड़ो और आगे बढ़ो, ये सब तरीके भी तुम्हे उकसाकर परम्परा और पद्धति में ही धकेल रहे है।
इनसे बचो, ये स्वतंत्रता नही - ब्राह्मणी संस्कारों से ज्यादा कड़ी बेडियाँ है तुम्हे जकड़ने को और तुम क्या सोचती हो ये वोटों का लालची और सत्ता पद प्रतिष्ठा और धन का हिमायती मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस या वो दोगला नौटंकीबाज शाणा तथाकथित श्री-श्री रविशंकर कह देगा तो सब ठीक हो जाएगा ? ये लोग समाज में पहले खुद अपने घरों और निजी जीवन में अपना कर बताएं तो जानों.
अपने आप से लडो पहले, अपने घर, समुदाय, समाज की लड़ाई है यह , इन धूर्त लोगों के कहने में मत आओ और कोई देवी कहें तो दांत तोड़ दो उस कमीने के ! जब तक तुम इंसान नही बन जाती तब तक इन सबको पछाड़ती रहो।
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