कल देवास में कुछ निहायत ही घटिया लोगों और संगठनों की टुच्ची राजनीति और प्रशासनिक लापरवाही से एक युवा की मौत हो गयी। वह नरेंन्द्र अभी एम बी ए पढ़ ही रहा था। उसके माँ बाप को प्रशासन ने एक लाख रूपये दिए है।दंगों के ठेकेदारों और मौत के सौदागरों तुम लोग डूब क्यों नही मरते या अपनी जवान औलादों को झोंक दो इस हिन्दू - मुस्लिम लड़ाई में। जाकर पूछो उन माँ बाप से जो गाँव से बच्चे को पेट काटकर पढ़ने भेजते है और तुम्हे शर्म नही आती मस्जिदों - मन्दिरों में तुम षड्यंत्र रचकर मौत का हैवानियत भरा खेल खेलते हो।
देवास का पूरा प्रशासन और मुस्लिम हिन्दू संगठन इस मौत के लिए बराबरी से जिम्मेदार है। देश का प्रधानमंत्री स्टार्टअप करता है और तुम देश के युवाओं को एन्ड अप कर रहे हो, तुम सब निकम्मे और कायर हो - जो लोगों की रोजी रोटी, संताने और देश का भविष्य छिनकर अपनी घटिया राजनीती चला रहे हो। इतिहास, तुम्हारा खुदा या ईश्वर कभी माफ़ नही करेगा।
कहाँ हो संवेदनशील मुख्यमंत्री सिंगापुर में बैठकर उद्योगपतियों से हाथ मिला रहे हो, अरे तुम्हारे प्रदेश में युवा ही मर जाएंगे तो तुम्हारा मेक इन मध्यप्रदेश या इंडिया क्या तुम इन ओछे और टुच्चे लोगों से बनवाओगे। शर्म मगर उनको आती नही, किस कुरआन या धर्म ग्रन्थ में हत्या जैसा जघन्य अपराध लिखा है, किस हिन्दू राष्ट्र की संकल्पना कर रहे हो। सिर्फ एक बार सोच कर देखो कि वह अबोध नरेंद्र जो पार्ट टाइम मेहनत करके पढ़ रहा था, तुम्हारा बेटा होता तो !!!
भाड़ में जाए ऐसा धर्म, राष्ट्र और संगठन, जिसमे युवा और गरीबो की जान की कीमत नही। शर्म आती है कि ये रज्जब अली खां और कुमार गन्धर्व का शहर है जिन्होंने गंगा जमनी तहजीब सीखाई, नईम और अफजल का शहर है जो कभी जीते जी मुस्लिम ना हुए, और तुम नाकाबिल लोग .... देवास के प्रताप पवार या प्रकाशकांत हिन्दू हो जाते तो ....
शर्म करो - प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभाये या फिर घर बैठे।
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"नोट का महत्व जानो पर उसके पीछे दौड़ो मत इस दौड़ का कोई अंत नही है संसार के सारे राजा, सम्राट और नेता इसके उदाहरण है, ना कफ़न में जेब होता है ना जन्म लेते समय जो झबला पहनते है उसमे। बहरहाल, जिससे खुशी मिलती है वह करो, बस जीवन में खुशी मिलना चाहिए और इसके लिए कोई समझोता नही क्योकि अगर हम खुश नही तो ना हम खुद ठीक रह पाएंगे ना अपने लोगों का ध्यान रख पाएंगे".
आज सुबह Sachin Naik, जो लाड़ला अनुज है , से वाट्स एप पर चर्चा हुई, उसने कहा कि जीवन में आनंद नोट कमाने के बाद ही आता है तो फिर क्या था अपुन ने अपना तीस साल की नोकरी और तथाकथित समझ का ज्ञान उंडेल दिया बेचारे पर, खुदा खैर करें।
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आत्मा तक पंहुचती कविताएँ
कविता कवि की आत्मा से आती है और यदि श्रोता की आत्मा तक पंहुच पाए तो सार्थक हो उठती है. कविता इतनी पारदर्शी हो जाए कि कवि और श्रोता एक ही भाव भूमि में चले जाएँ तो यह कविता की सार्थकता ही है. कुछ ऐसा ही आज शाम कविताएँ सुनते हुए लगा. कविताओं का एक - एक शब्द जैसे छू रहा था कहीं अंदर तक और कविताएँ खुल - खुल रही थी अपने अबूझ अर्थों में. वैसे तो शनिवार की सुबह देवास जैसे शांत और सोहार्द शहर के लिए धुंध भरी थी और अफवाहों की धुंध ने इसे और भी स्याह बना दिया था, लेकिन सूरज की धूप जैसे - जैसे चढती गई, वैसे -वैसे धुंध भी छंटती गई. मौसम की भी और अफवाहों की भी. दोपहर तक तो तीखी धूप के साथ प्रशासन और अमनपसंद लोगों ने शहर की फिजां को फिर रोनक कर दिया था.
शाम तक मौसम और फिजा दोनों ही सुहाने हो चले थे. ऐसी ही सुहानी शाम लखनऊ के मित्र नलिन रंजन सिंह, भोपाल के अजीज वसंत सकरगाए और इंदौर के हमारे पुराने साथी आशुतोष दुबे को सुनना इतना सुखद और आल्हादकारी रहा कि कविताओं का दौर जब खत्म हुआ तो लगा कि हम किसी सपने से लौट रहे हों. ओटला के इस आयोजन में संचालन किया मित्र संदीप नाईक ने. सुनील चतुर्वेदी, बहादुर पटेल, ओम वर्मा, मोहन वर्मा, दिनेश पटेल, इकबाल मोदी, ज्योति देशमुख, अमित पिठवे, नरेंद्र वर्मा, मेहरबान सिंह, सोनल शर्मा, शकुंतला दुबे, नरेंद्र जोशी, मिश्रीलाल वर्मा, नरेंद्रसिंह गौड़ व अम्बाराम चावड़ा सहित बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी उपस्थित थे. कुछ तस्वीरें आपके लिए भी ताकि सनद रहे.
कल की शाम एक अप्रतिम शाम थी, एक तरफ शहर के एक हिस्से में कर्फ्यू के बहाने कुछ लोगों को बन्द कर दिया गया था, आसमान से मावठे के रूप में नेह की बूंदे बरस रही थी, वही तीन दिशा से आये तीन कवियों ने अदभुत रचनाएँ पढी- तृप्त हुआ मन और बारीकी से कविता के पेंच और दांव समझे। हिंदी कविता मुकम्मल इसलिए हो जाती है कि बहुत श्रम से भाषा को साधकर, विचारों को एकाकार करके एक सम्पदा, और थाती बनाने का, जमीन बनाने का काम हमारे मित्र करते है।
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मालवा भीतर ही भीतर सुलग रहा है और स्थितियां बिगड़ती जा रही है, प्रशासन यद्यपि मुस्तैद है फिर भी खुफिया तंत्र को मजबूत करने की जरुरत है......कही ऐसा ना हो कि कल कोई बड़ी घटना हो जाए और हम कुछ ना कर पायें........
देवास भी इसी तरह से अन्दर से सुलग रहा है ध्यान दें जिम्मेदार लोग, एक बात तो है देवास के पूर्व विधायक स्व तुकोजीराव पवार का दबदबा गजब का था उनके रहते पिछले पच्चीस सालों में फिजां नहीं बदली और उन्होंने सबको दबाकर रखा था. मजाल कि दंगा या फ़ालतू का तनाव शहर में बढ़ जाए.....आज उन्हें इस दहशत भरे माहौल में याद करना स्वाभाविक है.
जनप्रतिनिधियों को पूर्वाग्रहों से मुक्त, सशक्त और दबंग होना बेहद जरुरी है और प्रशासन पर पूरा नियंत्रण भी होना चाहिए इनका जोकि अब खत्म होता जा रहा है. मप्र के मुख्यमंत्री इस मामले में तुरंत दखल दें और यहाँ आकर सभी लोगों के साथ बैठक लेकर प्रशासन को कड़े निर्देश दें, रोज कमाकर खाने वालों के लिए ऐसा दहशतगर्द माहौल भयानक है और आवागमन, शिक्षा, स्वास्थ्य और फेक्टरियों में उत्पादन जैसी बुनियादी सेवाएँ प्रभावित होती है.
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कुछ व्यवसायों में राजनैतिकीकरण का हो जाना बहुत दुखी है - डाक्टर इंजीनियर, वकील, चार्टेड अकाउंटेंट, पत्रकार, शिक्षा और दीगर बात यह है कि जिन लोगों से स्वस्थ चर्चा की उम्मीद की जाती है वे बेहद घटिया किस्म के निकले, इनका देश प्रेम सिर्फ और सिर्फ हिंदुत्व के अजेंडे पर, मोदी और अमित शाह या संघ के आसपास ही घूमता है और मजाल कि ये अपने दिमाग के जले कही और साफ़ कर लें....
अफसोस बेहतर वे निकल जाए मेरी सूची से या एक दिन निकाल बाहर फेंकना पडेगा.............
फेस बुक से लेकर अखबारों में लगभग 70 % दिव्यांग वाले पत्रकार है
खुदा खैर करें......
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