ना जाने उसकी गिलहरी से क्या दुश्मनी थी और चीटियों से प्यार, वह हर बार गिलहरी के लिए रखे फल खुद कुत्तर कर खा जाता और चीटियों के लिए रास्ते भर शक्कर के दाने बिखेरता रहता था. फिर उसे एक दिन कौवों को प्यार करते और कबूतरों से नफ़रत करते देखा, बाजों को हकालते हुए और चिड़ियाओं को पुकारते देखा, जंगल में जाने पर रास्ते में शेर के पांवों के निशानों को कुचलते और बारहसिंगों के लिए उमड़ते प्यार को देखा. मुझे लगा कि इस आदमी में कुछ बुनियादी दिक्कतें है क्योकि यह लव बर्ड्स को चिल्लाकर डराता था और तोतों को पिंजरों से उड़ा देता था, चूहों के पीछे डंडा लेकर दौड़ता था और बिल्ली को महंगे बिस्किट लाकर खिलाता था. वह आदमी बड़ा अजीब था, दरअसल में वह आदमी था ही नहीं चलती फिरती घृणा और प्यार की मशीन था, चलता था तो मानो जेसीबी की कोई मशीन चल रही हो, रुकता था तो ऐसे मानो कोई सड़क पर चलते हुए बड़ा सा रोलर रुक गया हो, बोलता था तो ऐसे मानो किसी लाऊड स्पीकर से दहाड़ रहा हो, थूकता था तो ऐसे मानो मुंह में कोई ट्यूबवेल लगा हो, किसी को घूरकर देखता तो ऐसा लगता मानो एक्सरे कर रहा हो, किसी को छूता तो मानो फेविकोल सा चिपक जाएगा और किसी को सुनता तो लगता मानो सदियों से व्योम में गूँज रही आवाज के कान पकड़कर सुनने की नाकाम कोशिश कर रहा हो. यह आदमी नहीं था एक स्वचालित यंत्र था जो इस कठिन समय में किसी झुनझुने की तरह यहाँ वहाँ हर महफ़िल में सबके लिए, सबके इशारों पर, सबको खुश करने के लिए बज रहा था - बगैर यह जाने कि यह भी एक आदमी ही है - ठीक मेरी और तुम्हारी तरह हाड मांस का पुतला जो कभी रो भी सकता है.......पर उसकी आँखों में पुतलियाँ थी ही नहीं शायद .
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ये दोपहर, शाम और रात के मिलन का समय है, एक ऐसी बेला जब धूल, धुंआ, गुबार, अन्धेरा, सर्द रात, काला आसमान, गायब हो चुका आधा - अधूरा चाँद और डूबता सूरज, उंघते से पेड़, डेरों पर लौटते पक्षी और उनका कलरव, सडकों पर भयानक सा सन्नाटा, किसी झील में ठहरा हुआ पानी, अंधेरों में गायब होती जा रही परछाईयाँ, सुनसान शहर का एक कोना, अन्दर तक भीगी हुई आत्मा का पोर जैसे सब कुछ ठहर सा गया हो. उसे लगा कि वह एक भयावह जिन्दगी के रास्ते पर चला जा रहा था, अपनी जवानी के दिनों में झूमकर गाता था "ये गम के और चार दिन सितम के और चार दिन, ये दिन भी जायेंगे गुजर, गुजर गए हजार दिन" ...........पर अब महसूस हुआ कि जिन्दगी की जीत पर यकीन होने का मुगालता खत्म हो गया है और जीवन को एक स्थाई विराम की बेहद सख्त जरुरत है.......बस वह चलता चला गया उस नदी के विरुद्ध - जिस नदी से उसने जीवन को विपरीत परिस्थितयों में तैराना सीखाया था, लहरों पर उद्दाम वेग से उछलना सीखा था, पर आज वह एकदम निराश था और मायूस फिर उसे लगा कि सब कुछ खत्म कर ही नया शुरू किया जा सकता है और वह सोच में डूबा हुआ वहाँ पहुँच गया जहां से उसे सब कुछ धुंधला नजर आ रहा था फिर उसने अपना सामान एक ओर रखा. उसके आगे पीछे कोई नहीं था, इतने सालों तक जिन्दगी को कभी गंभीरता से लिया नहीं उसने, और जो जैसा मिला - उसे स्वीकारता हुआ वह निभाता भी गया और मस्त मौलापन से जीता चला गया. आज उसे लग रहा था कि जीवन के इस बियाबान में वह कभी एकाग्र हो नहीं पाया और अब जब सब कुछ खत्म होने की कगार पर है, सारे प्रयोग फेल है, सब दूर से हार गया है तो फिर शेष क्या है. बस उसने कुछ नहीं सोचा और धीरे धीरे नदी के विपरीत बहाव में उतर गया. इधर शाम ढल रही थी, दूर कही सूरज डूब चुका था और अमावस की रात में चाँद नजर नहीं आ रहा था, झींगुरों ने क्रंदन शुरू कर दिया था, और समूची प्रकृति उसके इस विदाई पर शोक मना रही थी.............
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ये दोपहर, शाम और रात के मिलन का समय है, एक ऐसी बेला जब धूल, धुंआ, गुबार, अन्धेरा, सर्द रात, काला आसमान, गायब हो चुका आधा - अधूरा चाँद और डूबता सूरज, उंघते से पेड़, डेरों पर लौटते पक्षी और उनका कलरव, सडकों पर भयानक सा सन्नाटा, किसी झील में ठहरा हुआ पानी, अंधेरों में गायब होती जा रही परछाईयाँ, सुनसान शहर का एक कोना, अन्दर तक भीगी हुई आत्मा का पोर जैसे सब कुछ ठहर सा गया हो. उसे लगा कि वह एक भयावह जिन्दगी के रास्ते पर चला जा रहा था, अपनी जवानी के दिनों में झूमकर गाता था "ये गम के और चार दिन सितम के और चार दिन, ये दिन भी जायेंगे गुजर, गुजर गए हजार दिन" ...........पर अब महसूस हुआ कि जिन्दगी की जीत पर यकीन होने का मुगालता खत्म हो गया है और जीवन को एक स्थाई विराम की बेहद सख्त जरुरत है.......बस वह चलता चला गया उस नदी के विरुद्ध - जिस नदी से उसने जीवन को विपरीत परिस्थितयों में तैराना सीखाया था, लहरों पर उद्दाम वेग से उछलना सीखा था, पर आज वह एकदम निराश था और मायूस फिर उसे लगा कि सब कुछ खत्म कर ही नया शुरू किया जा सकता है और वह सोच में डूबा हुआ वहाँ पहुँच गया जहां से उसे सब कुछ धुंधला नजर आ रहा था फिर उसने अपना सामान एक ओर रखा. उसके आगे पीछे कोई नहीं था, इतने सालों तक जिन्दगी को कभी गंभीरता से लिया नहीं उसने, और जो जैसा मिला - उसे स्वीकारता हुआ वह निभाता भी गया और मस्त मौलापन से जीता चला गया. आज उसे लग रहा था कि जीवन के इस बियाबान में वह कभी एकाग्र हो नहीं पाया और अब जब सब कुछ खत्म होने की कगार पर है, सारे प्रयोग फेल है, सब दूर से हार गया है तो फिर शेष क्या है. बस उसने कुछ नहीं सोचा और धीरे धीरे नदी के विपरीत बहाव में उतर गया. इधर शाम ढल रही थी, दूर कही सूरज डूब चुका था और अमावस की रात में चाँद नजर नहीं आ रहा था, झींगुरों ने क्रंदन शुरू कर दिया था, और समूची प्रकृति उसके इस विदाई पर शोक मना रही थी.............
#एकअधूरेआदमीकीदास्ताँ
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जैसे महिला डाक्टर को स्त्री रोग विशेषज्ञ मान लिया जाता है चाहे वो कार्डियोलॉजिस्ट हो, ठीक वैसे ही महिला पत्रकार को घर की दुनिया और खाना-सजना संवारना वाले साप्ताहिक बुलेटिन या स्तम्भ या पेज थ्री के आध्यात्मिक वाली बीट थोप दी जाती है।
मेरी कई महिला डाक्टर मित्र है जो अच्छी भली ह्रदय रोग या शिशु रोग या आँखों की डाक्टर थी पर शादी के बाद पति परमेश्वर का नर्सिंग होम यानी दूकान के लिए अपना पेशा छोड़कर स्त्री रोग विशेषग्य बन गयी या बनना पडा...........ठीक ऐसे ही कई महिला मित्र है जो घर की दुनिया के स्तम्भ लिखती सम्हालती है.......
फेसबुक पर या वास्तविक जीवन में बिरली ही महिला पत्रकार साथी जांबाज स्टोरी करती है बाकी तो बेचारी फैशन और रसोई के आयटम की कटिंग लगाकर जी रही है और लाइर्क बटोरती रहती है।
ये अलग बात है कि बरखा दत्त, चित्रा, आकांक्षा पारे, स्नेहा खरे, आरती पांडे, मृणाल जी और सिक्ता के देश में असली दम खम वाली महिला पत्रकार इधर की पीढी में भी नही। माखन लाल शाखा भोपाल ने भी यही गृह कार्य में सुसंस्कृत और दक्ष महिला पत्रकार प्रोडक्ट / बहनों और दीदियों को भारतीय संस्कृति के संवाहक के रूप में इन बेचारीयों को बाजार को दिए है ।
अफ़सोस मगर सत्य है।
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सब स्पष्ट है अब, साहित्य जैसा गलीज और घटिया क्षेत्र एनजीओ या कार्पोरेट्स का भी नही है । विश्व पुस्तक मेले के लिए जिस तरह के घटिया तरीके ईजाद हो रहे है और लेखकों को जिस तरह से चारा डालकर धंधेबाज इस्तेमाल करते है वह शोचनीय और निंदनीय है। और ये स्थिति सबसे खराब हिंदी में है बाकी भाषा में तो इज्जत भी देते है लोग और रुपया भी, यहां तो प्रकाशक पिस्सु की भाँती खून चूस लेता है और बाद में पहचानने से भी इनकार कर देता है। हर बार नया शिकार खोजता है।
किताब छपवाने का जब कीड़ा काटेगा तो रुपया देकर प्रकाशक को घर बुला लेंगे और डंके की चोट पर कह रहा हूँ एक नही पचास आएंगे चिरौरी करते हुए। ना आकर जाएंगे भी कहाँ - मुर्गे और मुर्गियां फांसने में तो ये सब माहिर है और जो कहेंगे करेंगे। अभी ही आप किसी को कह कर देख लें कि 50 किताबें भिजवा दें बिछ बिछ जाएंगे ससुर।
नही जाना इस बार से, ना वहाँ से किताब लेना, ना वहाँ के झांसों में आना।
विपुमे सिर्फ बकवास
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#देवासकलेक्टर #एसपी मप्र हाई कोर्ट के स्पष्ट आदेश है कि ध्वनी विस्तारक यंत्रों पर पूर्णतया प्रतिबन्ध होना चाहिए. और इस वर्ष सिंहस्थ के मद्दे नजर परीक्षाएं भी जल्दी शुरू होने वाली है. सारे देवास शहर में भयानक ध्वनी प्रदूषण है और जोर जोर से सुबह से देर रात तक आरतियाँ नमाज और गुरबानी का प्रसार होता रहता है टेकडी पर भजनों का शोर होता रहता है. कोतवाली फोन करो तो कहा जाता है कि आपकी बीट पर जब गार्ड आयेगा तो देख लेगा. प्रशासन और क़ानून की जिम्मेदारी है कि कोर्ट के आदेशों का पालन करवाए, अभी नॅशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी डी जे को प्रतिबंधित किया है पर देवास में आये दिन सडकों पर डी जे पूरी बेशर्मी से बगैर भय और खौफ के बजते रहते है. कृपया कार्यवाही करें. विद्यार्थियों के हित में अब गंभीरता से इस तरह के ध्वनी विस्तारक यंत्रों पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दें और कोतवाली सहित समस्त थानों को आदेशित करें कि त्वरित कार्यवाही करके सामान जब्त कर लें ताकि कोई दूसरी बार हिम्मत ना कर सकें.
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दैनिक भास्कर भोपाल में आज बड़ी कार्यवाहियां हुई है. विज्ञापन मामले में कई लोगों को चलता किया और स्थानान्तरण किये गए है. कुछ पत्रकार जो करोडपति थे और आसामी बनकर भोपाल की प्राईम लोकेशन में डेढ़ दो करोड़ के फ़्लैट खरीदे और जमीन खरीदी और मोटे आसामी थे और जिन्होंने डी बी भास्कर में रहकर प्रापर्टी बनाई, उन्हें हकाला गया और नौकरी छोडो या रायपुर जाओ जैसे विकल्प दिए गए. मप्र में मामाजी के सूचना तंत्र का बेड़ा गर्क हुआ.
पिछले दिनों मप्र जन सम्पर्क में करोडो रुपयों के विज्ञापनों को बांटने को लेकर विधान सभा में दिए गए जवाब से प्रदेश में फर्जी लोगों का और पूरे रैकेट का पर्दाफ़ाश हुआ था असंख्य फर्जी वेब पोर्टलों ने मामाजी की छबी चमकाने के बहाने सरकार से लाखो रूपये हड़पे थे इसी क्रम में आज भास्कर में कार्यवाही हुई और मैनेजमेंट ने कई कदम उठाये. एक पूर्व मित्र से मिली प्रामाणिक जानकारी मिली कि किस तरह से पत्रकारों ने ब्लेकमेल करके भोपाल में जमीन और फ़्लैट खरीदे और संपत्ति बनाई. हम जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहते है वह इतना गलीज और गिरा हुआ होगा वह सोचा भी नहीं था. महिलाओं का इस्तेमाल, भोपाल की सितारा होटलों में कमरे बुक करके ऐयाशी करना और ना जाने कौन कौन से कामों में लिप्त ये पत्रकार बंधू और भगिनियां मिलकर क्या क्या गुल खिलाते है आज सामने आया. दस बारह वर्षों में भोपाल आकर तीन करोड़ से लेकर दस दस करोड़ के आसामी बनना क्या आसान है पर भास्कर में यह हुआ। अफ़सोस यह कि इनमे से कुछ को बहुत करीब से जानता हूँ। दुःख हुआ बहुत आज यह जानकर.
दूसरा फर्जी वेब पोर्टलों के माध्यम से और महिलाओं के द्वारा या महिलाओं को आगे करके उनके नाम पर रुपया कमाने का विज्ञापन वाला चोखा धंधा अब मंदा पड़ने लगा है क्योकि महिलायें भी अब पकड में आने लगी है. छोटे कस्बों से भोपाल में आकर वेब के बहाने से रुपया कमाने वाले और संपत्ति बनाने वाली /वाले अब सरकार की निगाह में है. कैसे कोई महिला बड़ा इवेंट कर लेती है अब समझा। महिला होने का फायदा भी महिलाये उठा रही है सही कहते थे राजेन्द्र यादव.
वैसे शिवराज जी इस समय बौखलाए हुए है और अपनी कमाई के सबसे बड़े सपुत जिला कलेक्टरों को हटा रहे है क्योकि अब पाप सामने आने लगे है, जनता के दबाव में बालाघाट, दमोह में बेदर्दी से कलेक्टरों को और कई एस पी को हटाया और अब इंदौर ग्वालियर से लेकर देवास, धार, झाबुआ और उज्जैन तक के कई कलेक्टर अब निशाने पर है. रोजगार ग्यारंटी और मुआवजे में बंटाई को लेकर शिवराज की नाराजगी साफ़ झलकती है दूसरा झाबुआ और नगरीय निकायों में हार का स्पष्ट कारण अब सामने है और जिला कलेक्टर इसके लिए सीधे सीधे जिम्मेदार है. इस सन्दर्भ में अखबारों को दिए गए विज्ञापनों में भी हुई धान्धली को लेकर वे नाराज है और भास्कर ने इसे भांप लिया है. इसके बाद भी आज ही मप्र शासन ने हिमाचल की एक वेब साईट कम्पनी को 71 लाख के विज्ञापन का रिलीज आर्डर जारी किया. मुआवजा नहीं है बांटने को पर शिवराज की छबी चमकाने के लिए अनाप शनाप रुपया है सरकार के पास.
जय हो लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की और विश्वसनीयता की और देश के सबसे बड़े अखबार के आगे बढ़ने की कहानी की.
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