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Showing posts from July, 2011

प्रशासन पुराण १५

पुरे प्रशिक्षण की गंभीरता को इस बात से समझा जा सकता है कि गणित के हिसाब से सारे अधिकारी लगभग ६५% समय तक अपने मोबाइल पर बात कर रहे थे जबकि उच्चाधिकारी बार बार निवेदन कर रहे थे कि सब अपने मोबाइल वाइब्रेशन पर रख दे कुल मिलाकर मजा आ रहा था बड़े बूढ़े "धूम मचा दे से लेकर सेनोरिटा" जैसी धुन लगाए हुए थे, सीखना बदस्तूर जारी था और बीच में उठती संगीत की स्वर लहरिया पूरे वातावरण को मदहोश बना रही थी और योजना पर समुदाय को इन्वोल्व कर जिले को श्रेष्ठ बनाने का काम जारी था( प्रशासन पुराण १५ )

प्रशासन पुराण १४

उम्र की ढलान पर शक्कर रक्तचाप और किडनी की बीमारी से ग्रसित वो सिर्फ अपने रूतबे से अधिकारी था जब यहाँ राजधानी में आता तो सारी जांचे करवा कर लौटता था हर बार उसे कहा जाता कि बस अब छोड़ दे और भजन पूजन करे पर मासिक तनख्वाह, ३-४ लाख की आमदनी फ़िर गाड़ी घोड़ा, हर बार वो सोचता पर फ़िर बिफर जाता एक जतन और कहकर खींचता रहता काम होता नहीं बस सरकारी था तो सब धक् रहा था बस डीएम के सेट करना होता था (प्रशासन पुराण १४)

प्रशासन पुराण १३

इन दिनों देश में प्रशासन के कई बड़े अधिकारी इस्तीफा देकर समाजसेवा में लग गए है, बीस साल बाद जब पेंशन और ग्रेज्युटी का जुगाड हो गया तो यकायक समाजे के प्रति आस्था जाग गयी और वो सब एनजीओ के कंसल्टेंट बन गए अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के दल्ले क्योकि सरकार में रहकर नियम कायदे जानते थे जिस आदमी से घिन करते थे उसे गले लगाकर वो अब अपने प्रोडक्ट और वेबसाईट की मार्केटिंग करते नजर आते है देश सुधर रहा है ये सब मलाई का मतलब अच्छे से जानते है(प्रशासन पुराण १३)

प्रशासन पुराण १२

यह राज्य की एक बड़ी कार्यशाला थी जहां सभी जिलो की योजना बनाने पर सिखाया जाना था प्रदेश की राजधानी में जिलो के सबसे बड़े अधिकारी मौजूद थे, दूर से प्रशिक्षक आये हुए थे कुल मिलाकर महँगा सौदा था, पर हाल में नींद ने अपना साम्राज्य पसार दिया था, बूढ़े और लाचार कंप्यूटर से अनभिग्य, अंगरेजी में लूले, हाल के एसी में बैठकर नींद आना स्वाभाविक था बस सब हो रहा था सिर्फ योजना की बातें ऊपर से उड़ रही थी और सबसे बड़ी खीज यह थी कि साला लोगो के समुदायों को इस सबमे इन्वोल्व करना था अब इतने बड़े अधिकारी और दो कौड़ी के लोगो के पास जाकर चिरौरी करे सत्यानाश हो इन पैरवीकारो का (प्रशासन पुराण १२)

प्रशासन पुराण ११

she was a voluptuous woman and use to work with office of Government but every one used to look at her with a lust and she would use this opportunity to do her own work in premises as she knew that she was the Woman and very fluent in English and except her no one was aware of this Language and every one was banking upon her for all works and I-Net. She is close to each heart from lowest to highest person in the system. (प्रशासन पुराण ११)

प्रशासन पुराण १०

दफ्तर के फोन से सारे दिन बड़े आधिकारियों की जी हुजूरी करता फ़िर पेपर और फ़िर सबके टेबल पर काम ना करने के नुस्खे बताता और फ़िर अपने इअर फोन से रेडियो मिर्ची के गाने सुनता फ़िर तीन चार बार चाय एक राउंड नीचे के दफ्तरों में हो आता बस वो एक ही काम में माहिर था पेंशन प्रकरण बनाने में उसका कोइ सानी नहीं था और उसके वो १० प्रतिशत के हिसाब से लेता था बस काम के नाम पर यही करता था और सब उससे बुढापे के बाद की चिंता से डरते थे(प्रशासन पुराण १०)

प्रशासन पुराण ९

अजीब सी मक्कारी थी उसके खून में, वो जब भी मुस्कुराता था तो एक शैतानी उसके चेहरे पर चमक जाती थी और फ़िर वो किसी को निलंबित किये बिना मानता नहीं था, उसे लगता था कि बाद नियंत्रण हो राशन की दूकान परिवहन हो या मत्स्य अधिकारी सबको वो एक ही घेरे में लेकर एक लाठी से हांकता था और फ़िर बाद में वसूली एजेंट अपना जाल बिछाते और सब सुलट जाता वो बस एक ही बात से डरता था शहर के पुराने गणेश मंदिर में नित्य बुधवार को जाकर लड्डू चढ़ा देता(प्रशासन पुराण ९)

प्रशासन पुराण ८

उसे लगता था कि वो सबको डाट फटकार के सब सुधार देगा पर ये निठल्लो की फौज थी जो बरसो से जिले में डटी थी और इनके चलते ना सफाई होती ना जनता के काम सब कमाने में लगे थे और शहर की कमान एक टाकीज, दारू के ठेके, रिसार्ट और बार चलाने वाले के हवाले थी. सारे कर्मचारी और दलाल इस परिवारों के भडवे थे और इस तरह से ये शहर प्रशासन के नाम पर मुखिया का जिला कहलाता था सो कोइ हाथ नहीं डालता था किसी काम में, नामर्द और निरापदो का प्रशासन(प्रशासन पुराण ८)

प्रशासन पुराण ७

यह देश के स्वतन्त्रता दिवस के पूर्वे तैय्यारी बैठक थी जिले के अधिकारी जमा थे और अब यह गुपचुप चर्चा हो रही थी कि किसको क्या प्रोग्राम मिलेगा, जैसे जैसे जिलाधीश ने कार्यक्रमों का दायित्व बांटा वैसे ही हंसी और गम दोनों हाल में पसर गए, आखिर बड़े माल वाल काम दूसरों को मिला था और कुछ को तो सिर्फ साले बूढ़े स्वतन्त्रता सेनानियों को घर से लाने ले जाने का और कुछ को शहीदों की विधवाओं को लाने का, साला मजा ही किरकिरा हो गया.(प्रशासन पुराण ७)

जिंदगी ना मिलेगी दोबारा

जिंदगी ना मिलेगी दोबारा एक बेहद उम्दा फिल्म है जो ३ इडियट्स का विस्तार है जहां वे जीवन की शिक्षा और करियर की बात करते है यहाँ ये तीन दोस्त जिंदगी में सेटल होने की जद्दोजहद में अपने सपने और रोज हैरानी से भरी एक चुनौती पूर्ण जिंदगी की बात करते है फिल्म बहुत ही बढ़िया है बड़े दिनों बाद दिल को छूने वाली फिल्म देखी. तमाम माफियों के साथ यह फिल्म समर्पित है तुम्हे.....अपने पूर्वाग्रहों और Possessiveness को छोड़कर....

कल छुट्टन कह रहा था -धीरज कुमार सिंह की एक बेहतरीन कविता

मुंबई में हमले हुए और राजनीति शुरू हो गयी. हर जगह ये बहस शुरू हुई. मेरे मन भी एक बहस आरंभ हुई लगा कोई मन के अन्दर एक बच्चा है जो मुझसे कई सवाल कर रहा है और इस बच्चे का नाम मैंने छुट्टन दिया. हुए हैं कई ब्लास्ट मरे हैं कई लोग सूनी हो गयी कई गोद , उजड़ गयी कितने मांग फिर से सो गयी हैं कई साँसे फिर से इस पर तुम कुछ लिखोगे नहीं भैया कल छुट्टन कह रहा था बाबूजी भी कह रहे थे मिश्रा के पान की दुकान पे भी सबकी बैठक बंद हो गयी है शर्माजी के चौपाल पे ताँता था लोगो का पर आवाजाही ख़त्म हो गयी है अपनी गली भी सूनी-सूनी हो गयी न भैया कल छुट्टन कह रहा था टीवी पे देखत रहे एक नेता बोलत रहा की मुसलमानों का हाथ है कोई बोला की हिन्दुओं की सियासी चाल है पर जो मरे वो इन्सान है न उसकी फिक्र किसे है भैया कल छुट्टन कह रहा था सलमा के अब्बू का पता नहीं है राधा की अम्मा भी गुम है कही खन्नाजी के घर में भी कोई घायल हुआ हर तरफ रोना-धोना जारी है मन बड़ा अशांत हो रहा है मेरा जिम्मेदार कौन है इन सबका भैया कल छुट्टन कह रहा था बड़ा अजीब लगे यहाँ तो लाशों की भी राजनीति है सबमें है गुस्सा पर चुप सारी आबादी है कुछ...

कचोरिया, चाय, घरेलू और बाहरी कुत्तों के बीच चंद्रकांत देवताले के मार-पिटाई के सपने

कचोरिया , चाय , घरेलू और बाहरी कुत्तों के बीच चंद्रकांत देवताले के मार-पिटाई के सपने ( सन्दर्भ -उज्जैन की एक शाम- यार दोस्त के नाम १७ जुलाई २०११ कालिदास अकादमी ) सीहोर में था फेसबुक पर अशोक ने सन्देश दिया कि में उज्जैन में हूँ -कल परसों, मिल लो और इसकी पुरानी आदत है कि ये लोगो को टेस्ट करता है जैसे दिल्ली जाना नहीं पर लिखेगा दिल्ली में हूँ बुला लो जिसको बुलाना हो.....सो मैंने पूछा अपने बहादुर से! साला संसार में एक ही बहादुर है जो नौकरी के साथ कविता भी लिखता है ढेर सारे लोगो से बातचीत और फ़िर देवास में आयोजन आसपास के क्षेत्र में जाना और सबकी लड़ाई सुलझाना, यह सब बहादुरी के ही काम बाकी कामो का चर्चा फ़िर कभी, बहरहाल मैंने पूछा कि क्या माजरा है उसने बताया कि उज्जैन में रमेश दवे का अमृत महोत्सव है और निरंजन क्षोत्रिय कार्यक्रम कर रहे है बारह युवा कवियों की कविताएं, जो इन्होने ने समापवर्तन में छापी है, का विमोचन भी है सब लोग आयेंगे तो आ जाओ, मैंने सोचा चलो अपने बेटू से भी मिल लूंगा और सब दोस्तों से भी मिलना हो जाएगा बस यही सोचकर देवास चला गया और बस दोपहर में बहादुर तीन बजे दि...