Skip to main content

Man Ko Chiththi - Posts of 23 and 24 July 2024

जिस काम से हम प्रेम करते है और जीवन भर मशीनीकृत ढंग से करके ख़ुश होते है - क्योंकि उससे आजीविका चलती थी, हमारी सांसारिक ज़रूरतें पूरी होती थी - वही काम एक दिन जीवन का दुश्मन बन जाता है और आपको वही सबसे गलीज़ लगने लगता है, फिर आप भागते हो उस माहौल, उस काम और उन लोगों से जो उस प्रक्रिया या काम का हिस्सा है
शायद यही मनुष्य होने की मेरे लिये पहचान है, जल्दी उकता जाना, नये प्रयोग करना, अनुशासनहीनता, अचानक सब छोड़कर उठना और कही दूर निकल जाना, बगैर सोचे-समझे बोल देना, वर्जनाएँ तोड़ना, अपने निर्णय अपने हाथ में रखना, किसी विचार या व्यक्ति को अपने मन-मस्तिष्क पर हावी ना होने देना और अपनी मन की करना - यही सब हर कोई करता है या कामना करता है करने की कि हम सब रचनात्मक है, उद्यमशील है, जानवरों से सर्वथा भिन्न है, क्योकि हमारे पास भाषा, सम्प्रेषण और अभिव्यक्ति की दक्षता और कौशल है - कम, ज़्यादा होने से फ़र्क नही पड़ता
बस इस सबके लिए थोड़ी सी कुशलता, थोड़ी सी तड़फ, बेचैनी, खुलापन, स्वार्थ की समझ और सब कुछ स्वीकार कर लेने की शिद्दत से तमीज़ होनी चाहिये ताकि हम बाकी सारे सन्जालों को गाँठते हुए सहज होकर निर्मल मन से द्वैष, कपट रहित जीवन जी सकें
हमेंशा याद रहता है कि मैं आपकी या किसी की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए नही जन्मा हूँ - आप महान है तो होंगे मेरे ठेंगे से, आपको भी उसी मिट्टी में मिलना है जो मेरा गंतव्य है, आपमें यदि मनुष्य के भेष में आकर भी इंसानियत की तमीज़ नही तो निकलिये मेरे जीवन से, दुनिया बहुत बड़ी है और मजेदार यह है कि बहुधा यह द्वन्द, यह लड़ाई, यह बहस अपने आपसे ज़्यादा होती है
मैं अपने जीवन में नित नये नूतन प्रयोग करूँगा और सीखता रहूँगा, उम्र के उस मोड़ पर हूँ कि अब ज्ञान नही - मौके और कुछ कर गुजरने की सहूलियत चाहिये ; स्पेस नही, नाम और यश नही, पर छूट चाहिये और जैसा कि रूसो कहता है "मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है" फिर हथकड़ी में पिरोने वाले या डालने वाले आप धूर्त कौन, चरित्र प्रमाण पत्र बाँटने का ठेका किसने दे दिया आपको
बहुत थोड़ा समय शेष है, बस जीना है, घुटना नही, साँसों पर नज़र रखते हुए जीना है, समय गुज़रता जा रहा है...
***
चार रोटी खाने के लिये जीवन के सम्पूर्ण समय और पाँचों इंद्रियों का उपयोग करना ही जीवन का आमूल चूल उद्देश्य है क्या - इस समय हममें से हरेक को जिस तरह के संघर्ष करना पड़ रहे है, जीने के लिए जो दो रोटी की जद्दोजहद है, अपमान, उपेक्षा और प्रताड़ना है हर स्तर और हर जगह पर कि अपने ज़मीर को गिरवी रखकर समझौते करना पड़ रहे है - उसे देख - समझकर तो यही लगता है कि हम सिर्फ़ दो रोटी कमाने की मेहनत करने के लिए ही पैदा हुए है
पता नही यह इस देश की समस्या है या वैश्विक
यदि सिर्फ़ यही सब करना है हरेक को तो, निरर्थक है सारे दर्शन, धर्म, और आध्यात्म, विज्ञान, राजनीति, समाज और दृष्टि तथा विज़न - यदि हमारा मनुष्य के रूप में जन्म लेना महज़ इसी बात पर केंद्रित हो जाये तो फिर कोई अर्थ नही है
जन्म यदि कुछ बड़े कामों को करने के लिये हुआ है तो उसका खांका भी जन्म के साथ हाथ - पाँव या कपाल पर छपा होना चाहिये, ताकि जीवन के समाप्त होते-होते हम अपने उद्देश्य के करीब पहुँच सकें, उन महान कामों की किसी और के द्वारा पुनरावृत्ति ना हो और मरते समय संतुष्टि रहें कि "जन्म सफल और सार्थक रहा", साथ ही जीवन में कोई एषणा शेष ना रहें
पर दिक्कत यह है कि हममें से किसी के पास कोई जवाब नही है - बल्कि मेरा तो अनुभव है कि हमारे पास प्रश्न भी नही है, सिवाय कुछ सेट या पैटर्न टाईप प्रश्नों के जिनका उत्तर सिर्फ़ हाँ या ना है, व्यापक प्रश्न कोई पूछना भी नही चाहता ना ही सुलझाना चाहता, बल्कि इस पचड़े में भी नही पड़ना चाहता
प्रश्नों का स्थान जब समाप्त हो जाता है तो हम खत्म हो जाते है, पूरी सभ्यता खत्म हो जाती है और इस जीवन के कोई मायने नही रहते

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...