Skip to main content

Khari Khari and Man Ko Chithti - Posts of 18 and 19 July 2024

पूजा खेड़कर, ट्रेनी IAS, तो एक उदाहरण है हमारी 80 साल की आज़ादी, घटिया और ओछी राजनीति, प्रशासन और मूर्खताओं का नतीज़ा है और पूजा हमारी सामूहिक विफलताओं का ठोस उदाहरण है, आज वो मीडिया में ट्रोल हुई तो हमारी व्यवस्था, अक्षमता, प्रशासनिक नाकामी और मक्कारी सामने आई - वरना लाखों हरामखोर तो रिटायर्ड होकर अभी भी मलाई खा रहे है
यदि आज सही तरीके और पूरी ईमानदारी से जाँच की जाए तो 90% आरक्षित कोटे से भर्ती वाले, प्रमोशन वाले लोग फर्जी निकलेंगे चाहे वो दलित, आदिवासी,ओबीसी कोटे से आये हो या विकलांग कोटे से या भूतपूर्व सैनिक या किसी और कोटे से - भारत जैसे देश में जहाँ आप जीते जी अपना मृत्यु प्रमाण पत्र हासिल कर सकते है वहाँ इस तरह के प्रमाणपत्रों की क्या बिसात है और फिर जाँचने वाले भी तो वही सब है
इसलिये अब ना कोई सहानुभूति है ना कोई संवेदना, क्योंकि असली वर्ग और लोग जिन्हें ज़रूरत है वे तो अरबों प्रकाशवर्ष दूर है इन जानकारियों से भी, सुविधा लेना और उपभोग करना तो बहुत दूर की बात है,जिसको शक हो चले मेरे साथ बैगा, सहरिया, मवासी, भारिया, गौंड़, कोरकू या जारूवा आदिवासी के पास और पूछे कि आरक्षण के बारे में मालूम है उसे, IAS , Stanford, LSE , TAMU मालूम है
या तो कोई और व्यवस्था बने या फिर ये आरक्षण का नाटक खत्म हो,बहुत हो गया 80 साल की आजादी के बाद आपको 5 वीं से लेकर MBBS में प्रवेश के लिये बैसाखी की ज़रूरत है और पटवारी से लेकर ब्यूरोक्रेट बनने के लिये आरक्षण चाहिए तो आप विकास आदि सब भूल जाये, कब तक प्रवेश उत्सव मनाये जाये, कब तक आपको मास्टर घर आकर स्कूल ले जाये, कब तक आपको मध्यान्ह भोजन और निशुल्क सामग्री दी जाए और इस सबके बाद फिर वीआईपी ट्रीटमेंट चाहिये और उसके बाद भी सरकारी कामकाज की गति शून्य है - बेसिक लिखना पढ़ना नही आता आपको भर्ती होने के बाद भी - कभी बड़े शहर की तंग बस्तियों या दूरस्थ गाँव में जाकर देखिये कि लोग कितने चालाक, स्वार्थी, और जानकार हो गए है सच में भयानक विकास हुआ है और जनचेतना इस समय में चरम पर है - वैश्विक बाज़ार के अमेजॉन से लेकर उत्कृष्ट किस्म की शराब वहाँ है और आप कहते है देश गरीब है
हर चीज़ रेवड़ी में खाकर मठ्ठे हो गए है लोग और रही सही कसर 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन बांटकर सरकार ने पूरी कर दी है, गांवों में जाता हूँ, लोगों से बात करता हूँ तो वे पासबुक आगे कर देते है कि बताइये इसमें अलानी फलानी योजना का रुपया जमा हुआ या नही, किसान सम्मान निधि से लेकर लाड़ली बहना या पेंशन मतलब इतने अनपढ़ और गंवार है कि कुछ नही मालूम पर सारी सुविधाएँ लेने की अक्ल है और हरेक को इस्तेमाल करने का तरीका जानते है
दूसरा, NEET, PSC, UPSC, VYAPAM, JEE आदि जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में गड़बड़ करने वालों को सरेआम चौराहे पर फाँसी दी जाए - कब तक देश के योग्य और मेहनतकश युवाओं, किशोरों और बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करते रहोगे
***
कमरों में घुटन थी, बाहर अंधेरा, कमरों के बेजान सामान बरसों यूँही धूल खाते रहते, बर्तन तरसते कि किसी और जगह होते तो खड़कते और बजते, दीवारों पर कोई परछाई नही बनती, मकड़ियां सुस्त रहती और मजे से अपना साम्राज्य बढ़ाते रहती कि कोई नही आयेगा कभी परेशान करने, किताबों पर दीमक चढ़ने लगी थी - लगभग नब्बे प्रतिशत किताबों को कभी हाथों का दुलार ही नही मिला, किसी ने प्यार से पन्ने नही पलटे, उनका बिल उन्ही पन्नों में दबकर पीला जर्द हो गया और इतना कमज़ोर कि कोई हाथ लगा ले गलती से तो तार - तार होकर बिखर जायेगा, उस पर लिखी कीमत या लेखक - प्रकाशक के नाम वाले हर्फ़ मिट गये
कमरे का एक दरवाजे से कभी हवा भीतर आती यदि खुलता तो या फिर कोई आता तो मसलन कचरा उठाने वाला, सफ़ाई वाली, कोई भूला - भटका दोस्त या कोई गाँव मुहल्ले या अपने देस से बीमारी का इलाज करवाने आया मुसाफ़िर ठौर ठिकाने की तलाश में - तब रसोई गुलज़ार होती, बाथरूम से नल टपकते, बिजली के लट्टू जलते और रोशनाई से घर भभक उठता और फिर जो दिखता वो किसी प्रेत महल की कहानी जैसा होता, अवांगर्द धूल और अव्यवथाओं का आलम यह होता कि समझ नही आता कि कहाँ कमरा है, कहाँ घर और कहाँ जगहें - आराम के लिये बने बिस्तर मौत की सज़ा मांगते कि उन्हें मुक्त कर मौत दे दी जाये
एकल आदमी से कोई उम्मीद रखना कितना बड़ा खतरा है - यह आप जब मेरे घर आये तो समझ आएगा ; जब टोपली में आलू खोजेंगे तो कीड़ों से भरा बजबजाता ढेर मिलेगा, प्याज के बदले महकते सी कुछ चीज़ मिलेगी, फ्रीज़ खोलेंगे तो लगेगा पूरी आकाशगंगा आप पर उलटकर गिर पड़ी है, बर्तनों में जमा काई और बाल्टियों में दीमकों के ढूह देखकर आपको लगेगा कि आटा ही डाल दें तो पुण्य मिलें अगले जन्म में, छत के पंखों पर इतनी गंदगी कि आपको नीचे खड़े होने में डर लगें और टेबल कुर्सियां ऐसी कि बस अभी आदम हव्वा उठकर गए हो इनपर से
बाहर से लौटता हूँ तो ये नज़ारा हर बार होता है, पता नही कोई दोस्त आकर रुका होगा चंद दिन यहाँ, सिगरेट के टोटे और माचिस की जली हुई तीलियों से फर्श पर रंगोली बनी हुई है, काँच के ग्लास टूटे पड़े है और धुआँ-धुआँ घर भर में हो गया है, आधी-अधूरी पढ़ी हुई किताबों के पन्ने मुड़े रखें है - इनमें पाश है, निर्मल का अंतिम अरण्य, शंकर की चौरंगी, टैगोर की गीतांजलि, राणा अय्यूब की गुजरात फाइल्स, कृष्ण कुमार की चूड़ी वाली लड़की, टॉलस्टॉय की पुनरुत्थान, नीत्शे, काफ़्का से लेकर हीगल, अरस्तू, जिब्रान, मीर, ग़ालिब, हजारी प्रसाद का कबीर, यहाँ - वहाँ बिखरा पड़ा है
लेपटॉप खुला है - एमपी थ्री पर कुमार गंधर्व, गंगू बाई हंगल, गिरिजा देवी, किशोरी अमोनकर, राहुल देशपांडे से लेकर तलत अज़ीज़, मन्नाडे, मुकेश, बेगम अख़्तर और बड़े गुलाम अली ख़ाँ तक की प्ले लिस्ट दिख रही है , यूट्यूब पर इटैलियन, रूसी ऑपेरा, जर्मनी, बुल्गारिया, अर्बेनियन नाइट्स, इजराइली फिल्मों को देखे जाने की पुष्टि है, मराठी फिल्में, अंबेडकर पर वृत्त चित्र, श्याम बेनेगल की सँविधान पर बनी फिल्में भी देखी गई है, बस्तर और अरुंधति रॉय, राहुल पण्डिता , साईबाबा, ग़दर, वरवर राव को लेकर गूगल सर्च किया गया है, गोलवलकर से लेकर मोहन भागवत और राममाधव के बारे में प्रिंट आउट्स लिए गए है
पायोनियर, इंडियन एक्सप्रेस, टेलीग्राफ उसी ने खरीदे होंगे, रूस- यूक्रेन युद्ध की खबरों पर लाल गोले लगे हैं, ट्रम्प की वापसी को लेकर बेचैन लग रहा है, मालदीव के डूबते पर्यटन को भी रेखांकित किया है उसने, राजस्थान के ऊना में मरे दलितों को न्याय ना मिल पाने की खबर से बौखला गया शायद, काले स्केच पेन से काट रखी है खबर, क्रिकेट की खबरों पर हँसी की बड़ी-बड़ी स्माइली बनाई है और प्रतियोगी परीक्षाओं में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई वाली खबर पर लाल रंग से प्रश्न चिन्ह लगाया है, अखबार के अश्लील विज्ञापनों को और मुख पृष्ठ पर सरकार की उपलब्धि वाले विज्ञापन को फाड़कर कमरे में ही फेंक दिया है - मैं नही था तो कैसी मनोदशा रही होगी उसकी, अपने आप से बात करता रहा होगा शायद दस दिन
मैं आज लौटा हूँ और सिर्फ बैठकर यह सब देख रहा हूँ, बदलाव और बदलने की कहानी के बीच कुमार विकल्प , शमशेर की कविता भी पढ़ी गई है जो आश्वस्ति है, मैं सोचता हूँ कि शराब की बोतलें नही दिख रही कही, उसे रम बहुत पसंद थी, व्हिस्की मजबूरी में पीता था, या तो उसने शराब छोड़ दी या साथ में जाते समय खाली बोतले ले गया कि किसी अटाले वाले को देकर ठिकाने लगा देगा, बदनाम होने से हम सब बचते है
कल से यही काम करना है, अभी सो जाता हूँ, सुबह से सफ़ाई कर अपने मुताबिक दुनिया बना लूँगा और तब शायद इन उदासियों की घनी परतों में कौन आया होगा - उसका चेहरा नज़र आयेगा
जीवन उदास कहानियों में मुस्कुराहट खोजने का नाम है

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही