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Man Ko Chiththhi, and other Posts from 10 to 13 July 2024

सच को स्वीकार कर लेना और फिर ज़िंदगी की राहों पर चलने का हौंसला बुलंद करना ही असल हिम्मत है, दुर्भाग्य हममें से अधिकांश लोग आधा-अधूरा सच स्वीकारते है, इसलिये रोते कलपते ज़िंदगी घसीटते जाती है
अपने आपको स्वीकारों, सच को सच की तरह से मान लो और फिर चल पड़ो - तो राहें आसान हो जाती है, पर इसके लिये बहुत जोखिम लेना होंगे, अनुसंधान करना होंगे और जीवन में सहजपन एवं खुलापन रखना होगा - तभी यह सब हम कर पायेंगे
मैं हूँ - इसलिये यह सृष्टि और दृष्टि है, अन्यथा आप मरें और जग डूबे, जीवन एक ही है, उन लोगों को छोड़ दो - जो दो मुंहे है, और आपके रास्ते में बाधा हैं, जीवन एक है और इसके आगे - पीछे कुछ भी नही, खुलकर जियो और अपनी शर्तों पर जियो, सारे बंधन तोड़कर उन्मुक्त होकर जियो, बस जीवन के सारे सच आईने के समान हमेंशा स्वच्छ और हमेंशा सामने होने चाहिये
इस सबमें एक बड़ी बाधा सिर्फ़ अपने - आपको समझने और समझाने की है, बाकी जीवन में कोई भय नही - अपने आपसे स्वीकारना और खुद के बनाये हुए भ्रमजालों से डरना ही सबसे बड़ा भय है
13 जुलाई 24/ प्रात: - 09.00
***
चलते चलते वो भी आख़िर भीड़ में गुम हो गया
वो जो हर सूरत में आता था नज़र सब से अलग
सब की अपनी मंज़िलें थीं सब के अपने रास्ते
एक आवारा फिरे हम दर-ब-दर सब से अलग
सरमद सहबाई
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एक थकी शाम में जब काया जीर्ण शीर्ण हो जाये तो ढलती शाम एक अँधेरे में तब्दील हो जाती है
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मेरी दास्ताँ को ज़रा सा बदलकर
मुझे ही सुनाया सवेरे सवेरे
जो कहता था कल शब संभलना संभलना
वही लडखडाया सवेरे सवेरे
कटी रात सारी मेरी मयकदे में
ख़ुदा याद आया सवेरे सवेरे
कोई पास आया सवेरे सवेरे
मुझे आजमाया सवेरे सवेरे
* सईद राही
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तेरी यादों की परछाइयां इतनी गहरी है
कि डूब भी जाऊँ तो अक्स तेरे ही उभरते है
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